ईश्वर दो प्रकार के होते हैं: सरकारी और गैर-सरकारी

सरकारी ईश्वर वह है जो मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों, दरगाहों, तीर्थों में विराजमान हैं और माफियाओं, सरकारों और धर्मों के ठेकेदारों की कृपा और दया पर आश्रित है। अपनी समस्याएँ, पीड़ा व्यक्त करने के लिए, मन्नतें मांगने के लिए उनके दरबार/दफ़तर/ऑफिस में हाज़िरी लगानी पड़ती है, रिश्वत/कमीशन चढ़ानी पड़ता है।
सरकारी ईश्वर सरकारी आदेशानुसार कार्य करता है।
जबकि गैर सरकारी ईश्वर वह है, जो समस्त प्राणियों का ही नहीं, समस्त ब्रह्माण्ड का ईश्वर है। यही वह ईश्वर है जिसके लिए कहा जाता है कण-कण में ईश्वर का वास है। अर्थात सूक्ष्म से सूक्ष्म और विराट से विराट में जो समाहित है, जो इलेक्ट्रॉन और न्युट्रोन में विराजमान है। जो सम्प्रदायों, प्रान्तों, देशों और भाषाओं में बंधा हुआ नहीं है, जिसका ना तो कोई ठेकेदार है और ना ही कोई दलाल (#agent)।
अधिकांश लोग सरकार और धर्मों के ठेकेदारों के गुलाम ईश्वर की स्तुति-वंदन में लिप्त रहते हैं। दुनिया के सभी धर्मों के ठेकेदार, धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु भी अपने-अपने अनुयाइयों को सरकारी ईश्वर की स्तुति वंदन के लिए प्रेरित करते हैं।

और सरकार, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों के व्यवहार और कार्यशैलियों से भला कौन परिचित नहीं है ?
कोई सरकारी काम करवाना हो, या अदालत से न्याय पाना हो, आपको पता ही है कि क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़ते ?
न्याय पाने की आस में कई बार तो पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं, घर के गहने जेवर से लेकर बर्तन तक बिक जाते हैं और न्याय की नौटंकी खत्म होने को नहीं आती।
बहुत ही कम लोग इस दुनिया में ऐसे हैं, जो गैर-सरकारी ईश्वर से जुड़ना चाहते हैं, क्योंकि समाज में धारणा ही ऐसी बना दी गयी है कि सरकारी है तो सम्मानित है, भले वह आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, राजनैतिक पार्टियों और गोदीमीडिया की तरह जनता और देश को लूटने और लुटवाने वालों का गुलाम ही क्यों ना हो।
और जो गैर सरकारी ईश्वर से जुड़े हैं, उन्हें ईश्वर को खोजने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता। जैसे मछली को जल खोजने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता, जैसे पंछी को उड़ने के लिए हवा खोजने के लिए भटकना नहीं पड़ता।
गैर-सरकारी ईश्वर से जुड़ने के बाद न तो आपको मंदिर-मस्जिद, तीर्थों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और ना ही किसी भी प्रकार का रिश्वत/कमीशन या चढ़ावा देना पड़ता है। आप किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता कर देते हैं बिना कोई अपेक्षा किए, गैर-सरकारी ईश्वर उसी से संतुष्ट हो जाते हैं। और जो दूसरों की सहायता निःस्वार्थ भाव से, बिना बनिया बुद्धि लगाए करता है, ईश्वर उसे अधिक से अधिक समृद्ध बनाता है। क्योंकि गैर सरकारी ईश्वर उसकी सहायता करना ही अधिक पसंद करता है, जो दूसरों का सहयोगी हो।
स्वार्थियों, लोभियों, कपटीयों, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों और उनके सहयोगियों, समर्थकों की मनोकामनायें पूरी करने के लिए सरकारी ईश्वर हैं ही मंदिरों, तीर्थों में विराजमान। सरकारी ईश्वर स्वयं एलोपैथी डॉक्टर और फार्मा माफियाओं पर आश्रित है और प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर मंदिर, मस्जिद, तीर्थ बंद कर मास्क लगाकर दुबक जाता है ?
यदि मेरी बात का विश्वास न हो, तो मंदिरों, तीर्थों, धार्मिक स्थलों के बाहर खड़े भिखारियों, कोढ़ियों, बीमारों को देख लीजिये। जो प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर प्रायोजित सुरक्षा कवच ले चुके हैं, वे भी आपको सरकारी ईश्वर के सामने हाथ जोड़े खड़े मिलेंगे, यज्ञ हवन करवाते मिलेंगे। क्योंकि वे भी ईश्वर पर उतना ही विश्वास करते हैं, जितना मेरे जैसे सरफिरे लोग सरकारों, सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और राजनैतिक पार्टियों पर विश्वास करते हैं।
तो तय आपको करना है कि सरकारी ईश्वर के पीछे दौड़ना है, या गैर सरकारी यानि उस ईश्वर से परिचित होना है, जो सर्वत्र विद्यमान है, सर्वशक्तिमान है ?
~ विशुद्ध चैतन्य
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