समाज व सरकारों द्वारा थोपी गयी बहुत सी भ्रांतियाँ दूर हुई 2014 के बाद

प्रायोजित महामारी काल में बहुत से ऐसे भ्रम दूर हुए मेरे, जो समाज ने थोपा हुआ था बचपन से। उदाहरण के लिए:
समाज, परिवार ने सिखाया, समझाया था कि सरकारें और राजनैतिक पार्टियाँ देश व जनता के हितों के लिए होती हैं। लेकिन पिछले आठ वर्षों में हमने जाना कि ये यदि महंगाई और एफडीआई का भी विरोध करती हैं, तो भी केवल सत्ता और कुर्सी के लिए करती हैं, न कि जनता की समस्याएँ व पीड़ा सुलझाने के लिए।

समाज ने बताया था कि पत्रकार, डॉक्टर, साधु-संन्यासी ही ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो निर्भीक होते हैं और जिन्हें ना सरकारें डरा सकती हैं, न माफिया डरा सकते हैं, और न ही अन्य कोई डरा सकता है व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए। लेकिन प्रायोजित महामारी के काल में जाना हमने कि ये दुनिया के सबसे कायर और लोभी प्राणी होते हैं। पूरे देश की जनता को बंधक बनाकर लूटा जा रहा होता है, बेमौत मारा जा रहा होता है और ये सब लुटेरों और माफियाओं के सहयोगी बने उनकी फेंकी हड्डियाँ चूस रहे होते हैं।
आज यदि कोई गर्व से बताता है कि उनका बेटा या बेटी आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर या पत्रकार बन गया है, तो मुझे रत्तीभर भी प्रसन्नता नहीं होती। क्योंकि मेरी नजर में माफियाओं और लुटेरों का गुलाम बन जाना गर्व की बात हो ही नहीं सकती।
आज यदि कोई गर्व से कहता है कि वह प्रोफेसर है, लेक्चरर है, तो मुझे उससे मिलने में रत्तीभर भी रुचि नहीं होती, बल्कि जल्दी से जल्दी उससे पीछा छुड़ाना चाहता हूँ। क्योंकि रट्टू तोतों, माफियाओ और सरकारों के गुलामों में मेरी कोई रुचि नहीं।
ईश्वर भी जानता था कि पढे-लिखे लोग प्रायोजित महामारी के आंतकियों के सामने नतमस्तक हो जाएंगे और देश व जनता को लूटने व लुटवाने वालों की गुलामी करेंगे। इसीलिए उसने मुझे अनपढ़ रखा, ताकि मैं शिक्षित बन पाऊँ ना कि डिग्रीधारी मूर्ख। और इसीलिए ईश्वर पर सर्वाधिक विश्वास करता हूँ। और मेरा विश्वास उन आस्तिकों जैसा कच्चा विश्वास नहीं है, जो मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ते हैं, ईशनिन्दा के नाम पर हत्या और आगजनी करने में भी संकोच नहीं करते, लेकिन प्रायोजित महामारी का फर्जी सुरक्षा कवच लेकर यज्ञ और हवन करवा रहे होते हैं, आस्तिक और धार्मिक होने का ढोंग कर रहे होते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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