सभी दड़बों का मूल उद्देश्य स्तुति-वंदन करते हुए भेड़ों का जीवन जीना

क्यों करते हैं लोग प्रचार अपने-अपने गुरुओं, धार्मिक ग्रंथों और पंथों संप्रदायों का ?
कभी बैठकर गणना तो करिए कि समस्त विश्व में कुल कितने रिलीजन यानी संप्रदाय व पंथ हैं ?
और सभी के भीतर झांककर देखिए तो जरा कि स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ, रोजा-नमाज, व्रत-उपवास, यज्ञ-हवन के सिवाय कुछ अलग क्या कर रहे हैं ?
जरा पता तो करिए कि ऐसा कौन सा रिलीजन, पंथ या सम्प्रदाय है, जिसके सदस्य भेड़, बत्तख, गुलाम और #zombie बनने से बचे हुए हैं ?
और जब यही सब करना है, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की गुलामी ही करनी है, तो क्या फर्क पड़ता है कि कोई आस्तिक है या नास्तिक है, कोई हिंदू है या मुस्लिम है, कोई आनन्द-मार्गी है या परमानन्द-मार्गी है, कोई कबीर-पंथी है या रहीम-पंथी है, कोई मोदीवादी है या गांधीवादी या अंबेडकरवादी ?
सभी दड़बों का मूल उद्देश्य तो यही है ना कि उनके आराध्यों की स्तुति वंदन हो, जय जय हो और अधिकाधिक दुधारू भेड़ बकरियां बाड़े में कैद हों ?
सभी आश्रित हैं, माफियाओं, सरकारों और सरकारी ईश्वर/अल्लाह/परमेश्वर पर। तो फिर जब अपने ही दड़बे की भेड़ों और बकरियों का भला नहीं कर पा रहे, तो फिर प्राइवेट बस कंडक्टर की तरह आवाजें क्यों लगाते फिर रहे हैं कि हमारी गाड़ी में आ जाओ, पूरी गाड़ी खाली जा रही है ?
कहां लेकर जाओगे इन गुलामों, भेड़ों और बकरियों को ?
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
