यही कारण है कि मैं पूजा-पाठ, व्रत-उपवास से विमुख हो गया
माफियाओं और लुटेरों ने साधु-संन्यासियों को भी अपना गुलाम वैसे ही बना लिया सैंकड़ों वर्ष पहले, जैसे आधुनिक सूचना व प्रसारण संस्थाओं को बना रखा है।
जैसे सूचना और प्रसारण संस्थाएं जनता की समस्याओं और शासकों द्वारा किए जा रहे शोषण, अत्याचारों को सामने लाने की बजाय हिन्दू-मुस्लिम, कॉंग्रेस-भाजपा, सवर्ण-दलित, मंदिर-मस्जिद और क्रिकेट जैसे परम्परिक राष्ट्रीय खेलों में व्यस्त रखकर जनता का मन बहलाये रखती है, वैसे ही आध्यात्मिक गुरु, साधु-संत, कथावाचक, पादरी, मौलवी आदि भी पौराणिक किस्से कहानियाँ, स्वर्ग, जन्नत के ऐश्वर्य व हूरों की कथा सुनाकर, मोक्ष, जीवन मरण के चक्र से मुक्ति की काल्पनिक कथाएँ सुनाकर, आसमानी, हवाई, ईश्वरीय और गुरुओं की वाणी सुनाकर जनता का मनोरंजन करते रहते हैं। ताकि जनता अपनी मूल समस्याओं को भूल जाये और देश व जनता के लुटेरों का विरोध करने की बजाय भजन, कीर्तन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास को ही धर्म मानकर जीने लगे।
और यही कारण है कि मैं पूजा-पाठ, व्रत-उपवास से विमुख हो गया। संन्यास लेने के बाद सोचा था कि सुधर जाऊंगा, लेकिन नहीं सुधर पाया।
मेरी समझ में ही नहीं आया आजतक कि सर्वशक्तिमान ईश्वर से भयभीत होने की बजाय माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों से भयभीत क्यों रहते हैं आस्तिक और किताबी धार्मिक लोग ?
और यदि आस्तिक और धार्मिक होने का अर्थ कायरता है, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के सामने नतममस्तक रहना है, तो फिर ऐसी आस्तिकता और धार्मिकता का त्याग कर देना ही श्रेष्ठ है।
बहुत से लोग कहते हैं कि जब आपके सारे लेख राजनीति पर ही होते हैं, तो भगवा काहे धारण कर रखा है, इसे फेंक दो और नेता बन जाओ।
इन मूरखों को यही नहीं पता कि भगवा वस्त्र धारण करने का अर्थ ही क्रांतिकारी होना। भगवाधारण का अर्थ ही है कि हम सिवाय ईश्वर के और किसी से भयभीत नहीं होते। भगवाधारण का अर्थ ही है कि हमने सर पर ही नहीं, समस्त शरीर पर कफन धारण कर रखा है। भगवाधारण का अर्थ ही है कि हम अधर्मियों और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों को सहन नहीं करेंगे।
और फिर साधारण जनता मवेशियों की तरह दिमाग से पैदल होती है। उसे कोई भी डरा-धमका कर हांक लेता है, उसका शोषण करता है, प्रायोजित महामारी से आतंकित कर बंधक बनाकर उसका सामूहिक बलात्कार करता और करवाता है। और जनता को आजीवन नहीं पता चल पाता कि जिसे वह अपना नेता मानती है, जिसे वह अपनी सरकार मानती है, वे वास्तव में पालतू दलाल हैं माफियाओं और लुटेरों के।
जनता आजीवन यह भी नहीं जान पाती कि चैतन्य आत्माओं, गुरुओं, धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर बने संगठन, संस्थाएं भी माफियाओं और लुटेरों के ही अधीनस्थ हैं और उन संस्थाओं और संगठनों के अधिकांश आचार्य और संन्यासी भी माफियाओं और लुटेरों के ही पालतू हैं। इसीलिए वे कभी भी देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध मुँह नहीं खोलते। उल्टे अपने अनुयाइयों को समझाते हैं कि खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाना है….लूटने दो जो लूट रहा है उसे ईश्वर सजा दे देगा कयामत आने पर। तब तक चैन से लुटते रहो और भजन, कीर्तन, व्रत-उपवास, रोज़ा-नमाज में स्वयं को व्यस्त रखो।
लेकिन मैं जरा नहीं, बहुत ही अलग किस्म का संन्यासी हूँ। और यही कारण भी है कि मेरे लेख बहुत ही कम लोगों को समझ में आते हैं। क्योंकि अधिकांश यही मानकर जी रहे हैं कि उनका जन्म ही हुआ है देश व जनता के लुटेरों की गुलामी करने और उनकी स्तुति-वंदन करते हुए मर जाने के लिए।
बहुत से लोग कहते हैं मुझसे कि खुद कुछ करके दिखाओ, काहे प्रवचन करते फिर रहे हो। तो उन्हें स्पष्ट कर दूँ कि तमाशा दिखाने के लिए संन्यास नहीं लिया है मैंने। जिन्हें खुद कुछ नहीं करना, केवल दूसरों को करते हुए देखने का शौक है वे गूगल पर सर्च कर लें उन्हें, जिन्हें वे देखना चाहते हैं। मैं कुछ करूंगा या नहीं, यह अभी निश्चित नहीं है। हो सकता है आजीवन कुछ न करूँ, केवल लिखता ही रहूँ ?
इसीलिए मेरे भरोसे बैठे रहने का कोई लाभ नहीं। वैसे भी आज तक न जाने कितने लोग आए, अपने प्राणों तक की आहुती देकर चले गए, जेलों में बरसों यंत्रणाएँ सहीं, दुनिया भर के अपमान सहे…..क्या फर्क पड़ा समाज पर ?
केवल इतना ही न कि उनके नाम पर नया संप्रदाय बना लिया और लग गए अपना धंधा चमकाने में ? बाकी करना तो वही है जो हमेशा से करते आए हो और करते रहोगे अनन्तकाल तक।