बिना कोल्हू का बैल बने जीना भी एक जीवन शैली है
अधिकांश लोग आजीवन नहीं समझ पाएंगे कि बिना कोल्हू का बैल बने, गुलामी किए जीना भी एक जीवन शैली है। नहीं जान पाएंगे अधिकांश लोग कि अपने मकान में अपना मन-पसंद काम करते हुए, चाय/कॉफी पीते हुए शांति से जीने से अधिक मूल्यवान और कुछ नहीं।
बस यही शांति प्राप्त करने के लिए इंसान आजीवन दौड़ता रहता है, कोल्हू का बैल बना फिरता है, दूसरों की भूमि और संपत्तियाँ हड़पता रहता है, सूचना तंत्र से लेकर सरकारों तक कोई खरीदता फिरता है, हवाई अड्डे खरीदता है, बन्दरगाह खरीदता है, फिर उनमें ड्रग्स के भारी-भरकम खेप उतरवाता है, फिर एंबुलेंस से सप्लाई करवाता है, फिर दुनिया के टॉप टेन अमीरों की लिस्ट में शामिल हो जाता है….लेकिन कोल्हू का बैल तो कोल्हू का बैल ही होता है। मरते दम तक इसी प्रकार दौड़ता रहता है, लेकिन वह दिन कभी नहीं ला पाता जब चैन से अपने मकान में बैठकर कॉफी पी पाये बिना किसी की गुलामी किए, बिना मजदूरी किए।
लेकिन जो जागृत होते हैं, उन्हें कोल्हू का बैल बनने की कोई आवश्यकता नहीं होती। वे तो फुटपाथ पर भी अपनी मस्ती में अपने अंदाज़ में जी लेते हैं। लेकिन दुनिया उन्हें पागल कहती है, फकीर कहती है। क्योंकि वह पागलों और ज़ोम्बियों (ज़िंदा लाशों) की दुनिया में जागृत है, चैतन्य है, होशपूर्ण है और किसी का गुलाम नहीं, किसी का मजदूर नहीं।
यदि आपके पास इतनी भूमि है कि अपने और अपने परिवार के लिए कैमिकल फ्री हरी सब्जियाँ, फल, फूल, मसाले और अनाज उगा सको, तो आप उन रईसों से भी अधिक समृद्ध हैं, जमुरा, ज़ोम्बी और गुलाम बने हुए हैं माफियाओं और देश व जनता को लूटने व लुटवाने वालों के। आप उन रखैलों और गुलामों से भी अमीर हैं, जो नौलखा सूट पहनकर विश्वभ्रमण करते फिरते हैं, हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, कॉंग्रेस-भाजपा जैसे पारम्परिक राष्ट्रिय खेलों में व्यस्त रहते हैं।
सदैव स्मरण रखें: मानव का जन्म गुलामी करने या कोल्हू का बैल बने रहने के लिए नहीं हुआ। और न ही पूरी ज़िंदगी मजदूरी करते रहने के लिए हुआ है। यदि आपके पास इतनी व्यवस्था है कि अपने लिए आवश्यक भोजन उगा सकें, तो फिर फिर आपको किसी की गुलामी करने की आवश्यकता नहीं है।