नशा बुरा नहीं होता नशे की लत और अति बुरी होती है
समाज अक्सर शराबियों और सूखा नशा (भांग, गाँजा, हेरोइन) आदि का नशा करने वालों को बुरा कहता है। माना जाता है कि ये लोग स्वयं को तो बर्बाद करते ही हैं, साथ-साथ परिवार और समाज को भी बर्बाद कर देते हैं। लेकिन यह भी देखने में आता है कि समाज बिलकुल ईश्वर की तरह निराकार दूर कहीं आसमान में होता है, इसीलिए जब ड्रग्स का खेप अदानी पोर्ट पर पकड़ा जाता है, तब समाज कहीं दिखाई नहीं देता। समाज तब भी कहीं नहीं दिखता, जब पूरा पंजाब, गुजरात नशे की चपेट में आकर बर्बाद होने लगता है।
लेकिन बेअदबी, ईशनिन्दा की कोई खबर आ जाये, तो अचानक से समाज प्रकट हो जाता है और तब लाखों की भीड़ दिखाई देने लगती है सड़कों पर। और मैं आश्चर्यचकित हो जाता हूँ कि इतना बड़ा समाज आसमान में रहता कहाँ हैं और ऐसा कौन दिव्ययान है इनके पास जो इतनी बड़ी भीड़ रातों-रात आसमान से उतार लाते हैं विरोध करने, मोबलिंचिंग करने, तोड़-फोड़ करने के लिए ?
लेकिन यही समाज कहीं नजर नहीं आता, जब देश लुट रहा होता है, फर्जी महामारी का आतंक फैलाकर सरकारें दुनिया भर का प्रतिबंध लगाकर मौत का इंजेक्शन लेने के लिए विवश कर रही होती हैं ?
वही सरकार जब कोर्ट के सामने मुकर जाती है कि हमने किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया फर्जी सुरक्षाकवच लेने का, इसीलिए अब लोग मर रहे हैं, तो हम जिम्मेदार नहीं। तब भी समाज का कहीं दिखाई नहीं पड़ता ?
शायद समाज तभी पृथ्वी पर उतरता है, जब कोई ईशनिन्दा करता है, बेअदबी करता है आराध्यों, ग्रंथो, पंथों की। तब ईश्वर भेजते होंगे समाज को कि जाओ, जाकर मोबलिंचिंग करो, तोड़-फोड़ कर, आगजनी करो…क्योंकि मेरी निंदा हुई है मेरी बेअदबी हुई है।
खैर वापस लौटते हैं अपने शीर्षक विषय “नशा” पर।
नशा बुरा नहीं होता, नशे की लत और अति बुरी होती है
मैंने अब तक के जीवन के अनुभवों से जाना कि नशा कोई भी बुरा नहीं होता, यदि सीमित मात्रा मात्रा पर लिया जा रहा हो। जैसे कि सर्दी जुकाम के दवा के रूप में अल्कोहल दिया जाता है, जैसे होमियोपैथिक दवाओं में अल्कोहल होता है…..और इनसे लाभ ही होता है हानि नहीं।
इसी प्रकार भक्ति का नशा है, जिसके नशे में धुत्त रहने वालों को सम्मान में बड़ा सम्मान मिलता है। जैसे कि मीरा, जैसे कि सूरदास, जैसे कि बाबाओं, नेताओं और राजनैतिक पार्टियों की भक्ति में डूबे भक्तगणों का बहुत सम्मान होता है परिवार और समाज में। सरकारें भी इनकी भक्ति से खुश होकर दुनिया भर के पुरस्कार, उपहार, उपाधियाँ और पदोन्नति आदि देती रहती हैं समय-समय पर।
लेकिन जब भक्ति का यही नशा लत बन जाये, सीमा लाँघ जाये, तो वैसे ही बर्बाद कर देता है परिवार, समाज और देश को, जैसे शराब और ड्रग्स का नशा बर्बाद करता है। भक्ति में डूबे भक्त को फिर अपने आराध्यों के कुकृत्य दिखने बंद हो जाते हैं, फिर लुटता, पिटता और बर्बाद होता परिवार और देश दिखना बंद हो जाता है। जैसे सीरिया, श्रीलंका की सरकारों/राजनैतिक पार्टियों, संगठनो की भक्ति में डूबी जनता के साथ हुआ।
भक्ति के नशे में धुत्त रहने वालों की स्थिति बिलकुल वैसी ही होती है, जैसी अफीम या भांग के नशे में धुत्त रहने वालों की होती है। दुनिया में आग लग जाए, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। महंगाई, भ्रष्टाचार, और लूट-मार से घर बर्बाद हो जाए, किसान से लेकर व्यापारी तक आत्महत्या करने लगें, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इन्हें तो केवल जय-जय करना है, स्तुति-वंदन करना है, भजन, कीर्तन करना है, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करना है….और अपने आराध्यों की आरती उतारना है, उन्हें भोग लगाना है, कम्बल/चादर/शाल ओढ़ाना है।
सारांश यह कि नशा बुरा नहीं होता है, लेकिन नशे की अति और नशे की लत बहुत बुरी होती है। सबकुछ बर्बाद कर देता है सीरिया, इराक और श्री-लंका की तरह।