आज आध्यात्मिक व्यक्ति या साधु-संत उन्हें ही माना जाता है जो….

किताबी धार्मिक यानि साम्प्रदायिक होने और आध्यात्मिक होने में बहुत अंतर होता है। धार्मिक व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत व सम्मानित होता है, क्योंकि वह समाज, सरकार और धर्म और जातियों के ठेकेदारों की मन-भावन बातें करता है। वह वही करता और कहता है जो समाज, सरकार और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाले माफिया चाहते हैं। जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति को समाज कभी नहीं समझ पाता।
Being Spiritual won’t make you a better person by society’s standard.
If it’s done correctly, it will make you a person no one Accepts, understands,
and wants to be around you.
And this the real success of learning the truth about your soul.
आध्यात्मिक व्यक्ति यदि ढोंग न कर रहा हो आध्यात्मिक होने का, तो समाज, सरकार, धर्म व जातियों के ठेकेदारों और माफियाओं की नजर में खटकने लगेगा। क्योंकि आध्यात्म और धर्म को कुछ इस प्रकार परिभाषित कर दिया है लुटेरों और माफियाओं ने कि धार्मिक और आध्यात्मिक होने का अर्थ ही हो गया है कि देश व जनता के लुटेरों का विरोध करने वालों का विरोध करना, या फिर मूक-बघिर बनकर तमाशा देखना।
आज आध्यात्मिक व्यक्ति या साधु-संत उन्हें ही माना जाता है जो पौराणिक कथाएँ, रामायण, गीता, भागवत, कुरान, बाइबल पढ़ाते और सुनाते रहते हैं, दुनिया भर के पूजा पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास, मंदिर-मस्जिद, पाप-पुण्य….आदि में उलझाए रखते हैं। ताकि लुटेरों की तरफ किसी का ध्यान न जाये और वे आसानी से जनता और देश को लूटते और लुटवाते रहें।
लेकिन आध्यात्मिक व्यक्ति शास्त्रों और किताबों की दुनिया से बाहर निकल आता है और स्वयं की आत्मा के माध्यम से सीधे परमात्मा से जुड़ जाता है। और इसीलिए वह किताबी बातों को महत्व नहीं देता, अपनी विवेक बुद्धि और आत्मज्ञान को महत्व देता है। और जब व्यक्ति स्वयं के विवेक बुद्धि और आत्मज्ञान को महत्व देने लगता है, तब वह समाज, सरकार, धर्म व जातियों के ठेकेदारों और माफियाओं की मिली भगत से बनाए गए सारे षडयंत्रों को समझ जाता है। तब वह विरोधी और विद्रोही हो जाता है।
और यही कारण है चैतन्य और जागृत व्यक्तियों से समाज को हमेशा बैर रहा है। जब तक वह जीवित रहता है, समाज उससे दूरी बनाए रखता है या उसकी ज़िंदगी नर्क बनाए रखता है। लेकिन जैसे ही वह मर जाता है, उसके नाम पर दुनिया भर के संगठन, संस्थाएं खड़ी कर ली जाती हैं और धंधा शुरू।
दुनिया माफियाओं की उपासक है
सारी दुनिया माफियाओं की उपासक है, उन्हीं की चरणों में स्वयं को सुरक्शित अनुभव करती है। इसीलिए हम देखते हैं कि माफिया, अपराधी, लुटेरे शान से देश पर राज करते हैं और देश के बड़े-बड़े न्यायालय भी उनकी उनके सामने नतमस्त्क रहते हैं। क्योंकि उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस है, सेना है, सारी मीडिया है, भक्तों और समर्थकों की भीड़ है।
मैंने पाया कि किसी फर्जी महामारी से आतंकित करके पूरे देश को बंधक बनाना अपराध या अनैतिक नहीं है। लेकिन यदि यह बताया जाये कि माफियाओं और सरकारों ने मिलकर जनता को मूर्ख बनाया है, तो अपराध है।
मैंने पाया कि राजनेता, सरकारें, गोदीमीडिया, विज्ञापन एजेंसियां और फार्मा माफिया संगठित रूप से फेक न्यूज़ दिखाएँ जनता को गुमराह करें, तो ना तो अपराध माना जाएगा, ना ही अनैतिक माना जाएगा। लेकिन यदि यह बताया जाये कि ये सब लोग मिलकर जनता को मूर्ख बनाकर लूट रहे हैं, तो पाप है, अपराध है, अनैतिक है।
और सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि नैतिकता, सात्विक्ता, धार्मिकता और संस्कृति की दुहाई देने वाले भी माफियाओं, और लुटेरों के समर्थक होते हैं। क्योंकि ये जनता को यही सिखाते हैं कि तुम्हारा जन्म सुखी रहने के लिए हुए है, ध्यान करो, भजन करो और मोक्ष प्राप्त करो। तुम्हारे लिए स्वर्ग में अप्सराएँ, हूरें, शराब, कबाब और वीवीआईपी कॉलोनी में प्लाट एडवांस में ही बुकिंग करवा दी गयी है।
करना केवल इतना है कि जीते जी माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का विरोध मत करना, केवल जय जय करना, स्तुति-वंदन करना, आँख मूंदकर वोट देते रहना और गीता, कुरान, बाइबल या रामायण पढ़ना, रोज़ा, नमाज, व्रत, उपवास, भजन कीर्तन करना और अपने बच्चों को गुलामी की ट्रेनिंग देकर मर जाना। फिर हमारा एजेंट तुम्हें स्वर्ग या जन्नत ले जाएगा और बाकी फ़ार्मेलिटी वहीं पूरी करके आप वहाँ परमानेंट सेटल कर देगा, ताकि जीवन मरण के फेर से मुक्ति मिल जाये।
~ विशुद्ध चैतन्य
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