माफियाओं के वेतनभोगी नैतिक, धार्मिक और देशभक्त नहीं हो सकते !
लोग सुख चाहते हैं और सुख की चाह में ही लोग खेती छोड़ नौकरी के पीछे भागते हैं। सुख की चाह में ही धार्मिक, नैतिक और देशभक्त होने का ढोंग करते हैं। लेकिन सत्य तो माफियाओं की नौकरी करने वाला व्यक्ति ना तो धार्मिक हो सकता है, ना नैतिक हो सकता है और ना ही देशभक्त हो सकता है।
क्योंकि नौकरी हमेशा मालिक के सुख, समृद्धि और प्रसन्नता को ध्यान में रखकर की जाती है। यदि मालिक फार्मा माफिया है, ड्रग्स माफिया है, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाले गिरोह का सदस्य यानि राजनेता या सरकारी अधिकारी है, तो धार्मिकता, नैतिकता और देशभक्ति की परिभाषा बदल जाएगी। तब धार्मिक, नैतिक और देशभक्त वही होगा, जो गोदी मीडिया की तरह चाटुकारिता करेगा, देश व जनता की समस्याओं से आंखे मूंदकर मालिक की स्तुति-वंदन करेगा। फिर उसे महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लूट-मार और कार्डियक अरेस्ट से हो रही युवाओं और बच्चों की मौतें दिखनी बन्द हो जाएंगी।
क्योंकि यदि उसे यह सब दिखने लगी, तो नौकरी चली जाएगी, सारे सुख-सुविधाएं छीन ली जाएंगी और फिर सिवाय भीख मांगने के और कोई काम नहीं कर पाएंगे।
सुख की कामना से ही लोग मंदिरों, मस्जिदों के चक्कर लगाते हैं, सुख की कामना से ही लोग दड़बा (धर्म) परिवर्तन करते हैं। यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे एक राजनैतिक पार्टी से दूसरी में जाना और दूसरी से निकलकर तीसरी में जाना सुख और सत्ता की चाह में। और दड़बा चाहे कोई भी हो, सभी में स्थिति एक ही है और एक ही काम करना होता है और वह है, स्तुति-वंदन, चापलूसी, चाटुकारिता, जय जय, कीर्तन, भजन और बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो के सिद्धान्त का अनुसरण करना।
ऐसा कोई भी मजहब, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय या समाज नहीं है इस दुनिया में, जो देश व जनता के लुटेरों का विरोध करता हो, बहिष्कार करता हो। ऐसा कोई भी पंथ या समाज नहीं है इस दुनिया में, जो माफियाओं और लुटेरों की भक्ति में ना डूबा रहता हो।
विरोध केवल वही करता है, जो अभी तक ज़ोमबी नहीं बना है और अब तो एलन मस्क ने घोषणा भी कर दी है कि जल्दी ही वह मानव को पूर्णतः ज़ोम्बी बना देगा। तब उन्हें जुमलेबाज नेताओं की आवश्यकता नहीं पड़ेगी भक्तों की भीड़ तैयार करने के लिए। तब उन्हें नौलखा सूट पहनने वाला, दिन में चार कपड़े बदलकर झूठ बोलने वाले नेताओं की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और ना ही ऐसे नेताओं की आवश्यकता पड़ेगी, जो गले में मफ्लर डालकर, या दाढ़ी बढ़ाकर जनता को मूर्ख बनाए। केवल चिप लगेगी ब्रेन में और फिर न महंगाई दिखाई देगी, न बेरोजगारी दिखाई देगी, न भ्रष्टाचार दिखाई देगा…हर तरफ सुख शांति और ऐश्वर्य नजर आएगा।
बुद्ध, जीसस, मोहम्मद से लेकर ओशो, प्रभात रंजन सरकार, ठाकुर दयानन्द देव, आपके नेता, अभिनेता और पायलेट बाबा, लेपटॉप बाबा, कम्प्युटर बाबा, चिमटावाले बाबा, झाड़ूवाले बाबा, आईफोन वाले बाबा तक ना जाने दुनिया भर में कितने गुरु, पंथ और उनके अनुयायी और भक्त हैं। और सभी यही मानते हैं कि एक दिन सारी दुनिया उन्हीं के गुरु, आराध्यों के दिखाये मार्ग का ही अनुसरण करेगी।लेकिन जब मैं सभी पर ध्यान देता हूँ, तो पाता हूँ, सभी ने एक ही शिक्षा दी है और वह है,
“मानव का जन्म भजन कीर्तन, स्तुति-वंदन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करने और धार्मिक ग्रन्थों को आजीवन रटते रहने के लिए हुआ है। मानव खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है, इसीलिए लुटेरों को लूटने दो। खुशी-खुशी लुटते रहो, लुटवाते रहो, माफियाओं की तिजोरियाँ भरने में सहयोगी बनो, विरोध मत करो। वे मंदिर बनवाएँ तो वहाँ जाकर धन लुटवाओ, वे मस्जिद बनवाएँ, तो वहाँ जाकर धन लुटवाओ।
आपको लूटने और लुटवाने के बाद वोट मांगने आयें, तो खुशी-खुशी वोट दे दो, मत सोचो कि वह फिर लूटेगा और लुटवाएगा। ईश्वर सब देख रहा है, तुम्हारे मरने के बाद उन्हें एक दिन सजा अवश्य देगा….तब तक तुम लोग भजन करो, कीर्तन करो, रामायण पढ़ो, गीता पढ़ो, कुरान पढ़ो, बाइबल पढ़ो और अपने मरने की प्रतीक्षा करो।
फिर भी टाइम पास न हो रहा हो, तो हिन्दू-मुस्लिम खेलो, पाकिस्तान-चीन खेलो, कॉंग्रेस-भाजपा खेलो, क्रिकेट खेलो, कॉमेडी शो देखो, वेब सिरीज़ देखो और खुश रहो। तुम खुश रहते हो, तो परमात्मा खुश रहते हैं और स्वर्ग में तुम्हारे लिए सुंदर-सुंदर हूरें, अप्सराएँ, शराब, कवाब…यानि हर वह सुख को इन्द्रदेव को प्राप्त है, तुम्हें भी प्राप्त होगी। इसलिए धरती पर मिल रहे दुखों को भूल जाओ और भजन गाओ, कीर्तन गाओ, ईश्वर/अल्लाह की स्तुति वंदन करो, राजनेताओं, अभिनेताओं और पार्टियों की स्तुति वंदन करो। और उनसे प्रार्थना करो कि दिल खोलकर लूटो हमें और लूट का सारा माल स्विसबैंक में जमा करवा दो। ताकि हमें स्वर्ग मिले, हमें मोक्ष मिले और मिले जीवन मरण से मुक्ति।
अब इतनी सी बात के लिए किसी पंथ, सम्प्रदाय में शामिल होने की आवश्यकता क्या है ?
जब लुटना ही है, बर्बाद ही होना है, तो अकेले ही हो जाओ, पूरा कुनबा लेकर बर्बाद होने की क्या आवश्यकता है ?
फिर जब ब्रेन में चिप लग जाएगी, तब फिर किसी कुनबे की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और ना ही आवशयकता पड़ेगी बुद्ध, जीसस, पैगम्बर, कृष्ण, राम, ओशो आदि को आने की। फिर तो चिप का मालिक ही तय करेगा कि आपको क्या करना है और क्या नहीं। आप केवल एक मशीनी मानव मात्र बनकर रह जाएँगे।
फिर न देश रह जाएगा ना रह जाएगी देशभक्ति। देशभक्ति तो आज भी नहीं है किसी भी सरकारी या गैर सरकारी नौकर में। क्योंकि जब देश ही नीलाम हो रहा होता है, तब भी गुलामों के माथे पर शिकन तक नहीं पड़ रही होती, विरोध क्या खाक करेंगे। उल्टा जो विरोध कर रहे हैं, उनकी ज़िंदगी नर्क करने के उपाय खोजते रहते हैं सहयोग करने की बजाय।
और इसीलिए ही कहता हूँ कि अपवादों को छोड़ दिया जाये तो वेतनभोगी चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी, वह ना तो नैतिक होता है, ना धार्मिक होता है और ना ही देशभक्त होता है।
नैतिक, धार्मिक और देशभक्त वही हो सकता है, जो सरकारों और माफियाओं पर आश्रित ना हो। जिसके पास अपनी भूमि हो, जो अपनी भूमि से अपने परिवार के लिए आवश्यक अनाज, फल व सब्जियाँ उगा लेता हो। जो ऐसे परिवार का स्वामी हो, जो पाश्चात्य संस्कृति की दौड़ में ना हो, जिनकी आवश्यकताएँ सीमित हों। और जो हर सम्भव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हों।