ब्रम्हचर्य अर्थात प्रकृति के साथ तारतम्यता
धर्म की शिक्षा ही शायद विश्व की ऐसी शिक्षा है, जिसको देने और लेने वाले दोनों ही धर्म से अनभिज्ञ हैं। इसलिए सदियों में कभी-कभी ही कोई सूफी, कोई संत, कोई बुद्ध, कोई ओशो ही समझ पाते हैं धर्म को और समझाने का प्रयास करते हैं।
मैंने अपने जीवन में बहुत ही कम ऐसे लोग देखें हैं जो धर्म न केवल समझते हैं, बल्कि जीते भी हैं। वास्तव में धर्म इतना सहज है, कि वह किसी को लगता ही नहीं कि धर्म है। लोगों को जब तक मार-काट, दंगा-फसाद, उपद्रव न दिखे तब तक यही मानते हैं कि धर्म अब बचा ही नहीं। उन्हें धर्म तभी दिखाई देता है जब दूसरे सम्प्रदायों की निंदा की जाए और खुद को ईश्वर या खुदा का बंदा समझा जाए।
मैंने धर्म को समझने की कोशिश कभी भी धार्मिक ग्रंथो से नहीं की क्योंकि उसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति धार्मिक नहीं बनता। हाँ कुछ बनता है तो कूपमंडूक बन जाता है, कुछ बनता है तो दंगाई बन जाता है, कुछ बनता है तो धर्मभीरु बन जाता है…. हिन्दू बन जाता है, मुस्लमान बन जाता है, ईसाई बन जाता है, बौद्ध बन जाता है, सिख बन जाता है, जैन बन जाता है, यहूदी बन जाता है……लेकिन न तो धार्मिक बन पाता है और न ही इंसान बन पाता है। दुनिया भर के कर्मकांड भी कर लेता है, नमाज, आरती, पूजा-पाठ सब कुछ कर लेता है लेकिन धर्म नहीं समझ पाता।
धर्मग्रंथों को पढ़कर धार्मिक बनते मैंने किसी को नहीं देखा और न ही देखा इंसान बनते हुए। हाँ धर्मपरिवर्तन के नाम पर दड़बा-परिवर्तन करते कईयों को देखा व सुना है। इसलिए ही मैं धर्म को समझने के लिए बचपन से ही प्रकृति को अपना गुरु माना। प्रकृति ने मुझे सनातन-धर्म की जितनी अच्छी शिक्षा दी, वह कोई धर्मगुरु नहीं दे पाता।
हमारी आँखों की पलकें, जिसके विषय में हम कभी शायद सोचते ही नहीं, कभी ध्यान ही नहीं जाता। हम उससे ही धर्म को समझ सकते हैं। आपकी पलकें जो हर छः सेकेण्ड में उठती और गिरती है, कभी आपके देखने में बाधा नहीं बनतीं। उसका धर्म है आँखों की सुरक्षा लेकिन वह आँखों के दृश्य के बीच दीवार नहीं बनती। आँखों की तरफ जब भी कोई खतरा आता है, पलकें स्वतः ही आँखों को अपने आगोश में ले लेती हैं। खुद बहुत नाजुक है, लेकिन सामने भाला भी आता दिखे, तब भी सुरक्षा के लिए हाथों से पहले पलकें ही हरकत में आती हैं। यह है धर्म। पलकें हाथों के भरोसे आँखों को नहीं छोड़तीं वह अपना काम करतीं हैं। यह हाथो की जिम्मेदारी है कि वह आँखों व पलकों की सुरक्षा करे।
इस प्रकार हम देखें तो हाथ तुरंत बचाव में उठ जाता है, जब कोई आक्रमण करे। और हम जानते हैं कि कोई पढ़ा-लिखा हो या न हो, कोई अंग्रेजी बोलता हो या न बोलता हो, कोई नमाज पढता हो या न पढ़ता हो…. जब आक्रमण होगा तो हाथ और पलकें सुरक्षात्मक कदम उठाएंगे ही। इनका धर्म कभी खतरे में नहीं पड़ता। ये अहिंसा और शराफत के नाम पर कायरता को नहीं अपनाते। इन्हें आत्मरक्षा के लिए कोई धार्मिक ग्रुप या संगठन ज्वाइन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, न ही क़ुरान या गीता उठाकर देखना पड़ता है कि सामने से भाला आ रहा हो तो क्या करना चाहिए।
क्योंकि इन्होने धर्म को किताबों से पढकर नहीं जाना, बल्कि प्रकृति के साथ तारतम्यता यानि ब्रम्हचर्य से समझा व जाना। आप किसी छोटे बच्चे पर भी हाथ उठाने का प्रयास करें, तो पलकें ही सबसे पहले गति में आयेंगीं। क्योंकि वह जानती है आँखें मन का दर्पण है। सबसे कीमती चीज है……
खैर…मैं जानता हूँ मेरी यह बकवास आप लोगों को समझ में नहीं आएगी… फिर भी लिख देता हूँ कभी कभी… बाकि राजनैतिक चुहलबाजी के पोस्ट आप लोगों के लिए करता ही रहता हूँ क्योंकि रस तो उसी में हैं.. ये सब तो बेकार की बातें हैं।
~विशुद्ध चैतन्य