चुनमुन परदेसी और लोकतान्त्रिक प्रथा

कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है, धन्नासेठ ने अपनी कंपनी का GM नियुक्त किया चुनमुन परदेसी को। चुनमुन को हज़ारों उम्मीदवारों का इंटरव्यू लेने के बाद चुना गया था। देश विदेश घूमना, महंगे महंगे कपड़े पहनना और तीस हज़ार रूपये प्रतिकिलो के भाव वाला दुर्लभ कुकरमुत्ते का सूप पीकर अपनी जवानी व तंदुरुस्ती बनाये रखना उसका शौक था।
कंपनी ज्वाइन करने के बाद चुनमुन परदेसी ने शुरू के कुछ वर्ष तो विश्वभ्रमण में निकाल दिया। और फिर अपने सारे यार दोस्तों की कंपनियों के लिए न केवल मार्केटिंग की, बल्कि कई कॉन्ट्रैक्ट भी दिलवाए। अपनी ही कम्पनी की कई शाखाओं को अपने दोस्तों को दे दिया चलाने के लिए यह कहकर कि घाटे में चल रही थी इसलिए दे दी।
एक रात 8 बजे आनन्-फानन में घोषणा कर दी कि रात बारह बजे के बाद से नाईट शिफ्ट वालों को अपने अपने घर से खाना बनवाकर मंगवाकर खाना होगा। चाय नाश्ता सब कुछ घर का ही होना चाहिए। क्योंकि कम्पनी आपके स्वास्थ्य के प्रति अत्यंत चिंतित है।
सारे कर्मचारी परेशान हो गये कि अब आधी रात को घर से खाना कैसे मँगवायें…. ???
दूसरे दिन नियम बन गया की कम्पनी के मालिक को कैश घर में रखने की अनुमति नहीं है। उसके अपने बैंक अकाउंट में भी जितने पैसे हैं, वे सब कम्पनी के अकाउंट में ट्रांसफर करने होंगे। और हर रोज दो सौ रूपये कंपनी के मालिक को मिलेंगे अपने घर का खर्च चलाने के लिए। उससे अधिक अगर कम्पनी के मालिक ने खर्च किये तो जाँच कमेटी बैठेगी। जो जाँच करेगी की कम्पनी के मालिक के पास फालतू पैसे आये कहाँ से। लेकिन जीएम् और उनके सहयोगियों को कितने भी खर्च करने की छूट होगी और कहीं से भी पैसे लेने की छूट होगी। न कोई जाँच होगी और न ही कोई पूछताछ।
कम्पनी के कर्मचारी ही नहीं, मालिक तक बौखला गये। मालिक दनदनाता हुआ चुनमुन परदेसी के पास पहुँचा, “यह क्या मजाक है ??? मैंने ही तुम्हें नौकरी पर रखा है और तुम मुझे ही दौ सौ रूपये दिहाड़ी दोगे घर का खर्च चलाने के लिए ? तुम्हें शर्म नहीं आती ?”
चुनमुन परदेसी रुवांसा होकर आँखों में पानी भर कर बोला, “मैं आपका कष्ट समझ सकता हूँ, लेकिन जो कुछ भी कर रहा हूँ आपकी कम्पनी और आपके हित के लिए ही कर रहा हूँ।
मालिक तिलमिला कर बोला, “मैं अभी तुम्हें नौकरी से निकाल रहा हूँ ! “
चुनमुन परदेसी बोला: “ना…ना…ना !!! आप ऐसा बिलकुल नहीं कर सकते। क्योंकि सर्वसम्मति से बोर्ड ऑफ डायरेक्टर द्वारा चुना गया हूँ। इस प्रकार चुनने को अँग्रेजी में Democracy अर्थात लोकतन्त्र कहते हैं।
अब चूंकि मैं लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव जीतकर इस पद पर आसीन हुआ हूँ इसलिए आप मुझे अगले चुनाव से पहले नौकरी से नहीं निकाल सकते उसके बाद जो सजा देना चाहे दे सकते हैं। चाहें तो बीच चौराहे पर फाँसी पर लटका दीजिये मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।”
कंपनी का मालिक कोर्ट पहुँचा शिकायत लेकर। लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह आपका व्यक्तिगत विवाद है हमें काहे घसीट रहे हो ?
आपने ही चुना है उसे आप ही भुगतो, इसमें कोर्ट कुछ नहीं कर सकती। बेचारा मालिक सर पकड़कर बैठ गया।
बस उस दिन से लोकतंत्र की प्रथा चल पड़ी और लोकतान्त्रिक देशों की जनता अपना सर पीट रही है।

चुनमुन परदेसी आज भी पूरी बेशर्मी और शान से देश को लूट और लुटवा रहा है अपने चहेतों के हाथों।
~ विशुद्ध चैतन्य
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