शौक यानि Hobby वह गुण हैं जो हमें जन्मजात मिलती हैं

शौक यानि Hobby को हम सेकंडरी चीज मानते हैं। समय मिला तो कर लिया, नहीं तो और भी ज़रूरी काम है ज़माने में।
मैं ऐसा नहीं मानता था, लेकिन मेरे पिताजी, मेरे अड़ोसी-पड़ोसी ऐसा ही मानते थे। मुझे शौक था ड्राइंग बनानेका, स्कूल में भी थर्ड प्राइज़ ले ही आता था। मुझे शौक था गाने का और स्कूल के टीचर मुझे गायन प्रतियोगिताएं में अवश्य शामिल करते थे। मुझे शौक था मार्शल आर्ट्स का, मुझे शौक था पियानो, इलेक्ट्रिक बेन्जो, हारमोनियम बजाने का और मेरा सपना था ऑस्कर विनर साउंडइंजीनियर बनने का। लेकिन मेरे पिताजी को यह सब शेखचिल्ली के सपने लगते थे। पिताजी शैक्षिक काल में, कभी भी सेकंड नहीं आये थे वही मुझसे भी आशा करते थे। जबकि में कभी भी स्कूल गया ही नहीं, केवल मेरा शरीर ही स्कूल गया। मेरा मन तो खेतों और जंगलों में लगता था।
लेकिन आज वे शौक अलमारी में रखे पुरानी किताबों की तरह हो गये। कभी कभी नजर पड़ती है, लेकिन फिर मन सोचता है कि अब इन सब शौकों का क्या करना… थोड़ी सी उम्र पड़ी है कट जाए फिर अगले जन्म में नए सिरे से सोचेंगे।
मैं अक्सर सोचता हूँ कि कभी जो शौक मुझे बहुत प्रिय थे, जिसके लिए मैं खाना-पीना भी भूल जाता था, आज वही शौक मुझे उत्साह क्यों नहीं दिला पाते ? आज आश्रम में टूटा-फूटा बेसुरा हारमोनियम भी है, ढोलक भी है…लेकिन वे आकर्षित नहीं करते, कभी जब सुर का ही पता नहीं था, तब दिन रात हारमोनियम, बेन्जो से शोर मचाकर सबकी ज़िन्दगी नरक बनाता था। आज अंगुलियाँ ही नहीं चलती। क्या हो गया ऐसा जो मुझे मुझसे ही दूर ले गया ?
हम सभी अपने परिवार, अपने माता-पिता को सर्वोपरि मानते हैं और माता-पिता भी अपने बच्चों के लिए जो श्रेष्ठ है वह करते हैं। लेकिन कई बार वे बच्चों को नहीं समझ पाते क्योंकि उनके पास बहुत ही कम समय होता है बच्चों को समझने जानने का। अधिकाँश वे अपने काम में ही व्यस्त रहते हैं। उन बच्चों को सबसे अधिक समस्या होती है, जिनकी माँ बचपन में ही गुजर जाती है। माँ ही होती है जो बच्चे को सही रूप में समझती है या फिर जीवन साथी। तो माँ यदि न हो, तो बच्चे के वे शौक, जो कि उसके पूर्वजन्मों की यादों के साथ जुड़े थे, वे सब समाप्त कर दिए जाते हैं। उन्हें दफना दिया जाता है, बस उसकी कब्र में हर बरस कुछ आँसू टपका कर बचपन की उस दुर्घटना को भूलने का प्रयास करते हैं।
शौक यानि हॉबी वह विशेषताएं हैं जो जन्मजात हमको मिलती हैं। इनमें से कई शौक पूर्वजन्मों से जुड़ी होतीं हैं, तो कई पूर्वजन्मों के अधूरे सपने। ये ऐसे भाव होते हैं जो भीतर से फ़ोर्स करते हैं। इसमें बच्चों को कुछ थोपना नहीं पड़ता, लेकिन परिवार व समाज वही चीजें पसंद करता है, जो थोपा जा सके। वास्तव में बहुत ही कम बच्चे होते हैं, जिनको वह वातावरण मिलता हो, जिसके लिए वे आये थे। लेकिन अधिकांश भटक जाते हैं। जो परिवारवाले थोपते हैं, जो समाज थोपता है उससे वह बगावत कर बैठता है और फिर लोग कहते हैं कि देखो यह नालायक अपने बाप की नहीं सुनता, या अपने परिवार की नहीं सुनता… और कई बार वह बच्चा घर, परिवार व समाज से हमेशा के लिए अलग हो जाता है। संस्कार अच्छे रहे तो सद्मार्ग पकड़ लेता है, नहीं तो अधिकांश अपराध जगत में कदम रख देते हैं।
मेरी अपने शौक अपनी इच्छाएं, कुछ महान करने या बनने की महत्वाकांक्षाएँ मर चुकी है, इसलिए ही तो मैं आराम से एकांत में जी लेता हूँ। लेकिन यह नहीं चाहता कि दुनिया के किसी भी बच्चे से उसका शौक, उसकी भावनाएँ, उसकी महत्वाकांक्षाएं कोई छीन ले, केवल झूठे अभिमान व स्वार्थ के लिए। कोशिश करियेगा कि अपने बच्चो के शौक आपके ही हाथों दफन न हो जाएँ।
~विशुद्ध चैतन्य
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