चक्कर-भर्ती सम्राट का स्वर्णयुग

कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। मोतीचूर नामक चक्कर-भर्ती सम्राट राज्य करता था किसी देश में। वह बहुत ही आधुनिक विचारों का था और नई खोज करने के लिए विश्वभ्रमण करता रहता था। उसका राजकाज उसके मंत्री और उनके परममित्र धन्नासेठ चलाया करते थे। राजा का बस एक ही शौक था, देशविदेश घूमना, महंगे कपड़े पहनना। एक दिन जब राजा स्वदेश लौटा विश्वभ्रमण से तो दरबारियों ने सोचा कि राजा को विदेशी नजर लग गयी होगी, इसलिए अखण्ड रामायण पाठ रखवाया जाए। पंडितजी आयेंगे तो भविष्य भी बता देंगे और राजा भी तब तक देश में ही रुके रहेंगे।
तो अखण्ड रामायण पाठ रखवाया गया और राजा भी डिज़ाईनर ड्रेस में सजधज कर अपने आसन पर विराजमान हो गये। रामायण पाठ का उनपर इतना असर हुआ कि पूछ बैठे दरबारियों से, “क्या सचमुच में कोई राजा सोने की लंका जैसा कोई नगर बना सकता है ?”
पंडित जी को मौका मिल गया, “क्यों नहीं महाराज, बिलकुल बन सकता है ! फिर आप तो परमप्रतापी हैं, दयानिधान है, परोपकारी हैं और आपके माथे की लकीरें ही बता रहीं है कि आप के प्रताप से इस देश में स्वर्णयुग आएगा।”
सारा दरबार राजा के जयकारे से गूंज उठा।
राजा ख़ुशी के मारे कई फूट ऊपर उछल गये और पंडित जी की तरफ स्वर्णमुद्राओं से भरी थैली उछालकर बोले, “मोगाम्बो खुश हुआ ! जाओ ऐश करो !!!
तुरंत दरबार में ख़ास बैठक बुलाई गयी और मंत्रणा हुई कि स्वर्णयुग लाने के लिए पहले स्वर्णनगरियाँ बनानी पड़ेगी। लेकिन इतना सारा सोना आएगा कहाँ से ?
राजा का वित्तमंत्री बहुत ही बुद्धिमान था उसने सुझाव दिया, “क्यों न हम स्वर्ण व चाँदी की मुद्राओं का चलन ही बन करवा दें और कागज के नोट चलायें ? इससे जनता के पास जितने भी स्वर्ण व चाँदी की मुद्राएँ हैं, वह सब खजाने में पहुँच जायेंगे और उनको गलाकर स्वर्णनगरी का निर्माण आसानी से हो जाएगा।”
तुरंत राजाज्ञा प्रसारित कर दिया गया मुनादी वाले को बुलवाकर। सारी प्रजा से स्वर्ण व चाँदी की मुद्रायें जमा करवा ली गयीं। लेकिन बिना मुद्रा के प्रजा का हाल बुरा होने लगा… तो राजा को बहुत दुःख हुआ अपनी प्रजा का दुःख देखकर। उन्होंने सभा बुलाई और रोते हुए प्रजा से पचास दिनों कि मोहलत माँगी, “भाइयो-बहनों ! मुझे मालुम है कि आप सबको बहुत ही कष्ट सहना पड़ रहा है, लेकिन यह आप लोगों का प्रेम ही है कि आपने अपने सारे स्वर्ण व चाँदी की मुद्राएँ खजाने में जमा करवा दिए। बस केवल मुझे पचास दिनों की मोहलत दे दीजिये। उसके बाद यदि सबको स्वर्णयुग में न पहुँचा दिया तो भाइयो-बहनों !!! जो सजा आप देना चाहें चौराहे पर खड़ा करके दे दीजियेगा.. मैं सर झुकाकर सजा स्वीकार लूँगा। हमने कागज के नोट बदले में देने की बात कही थी, लेकिन कागज बनाने वाले को डेंगू हो गया है। जब तक वह ठीक नहीं हो जाता, तब तक कागज नहीं बनेगा। हमारे डॉक्टर्स की पूरी टीम उसके इलाज में लगी हुई है। जैसे ही वह ठीक हो जाएगा कागज बनाकर दे देगा, उसके बाद प्रिंटिंग में थोड़ा समय लगेगा… तब तक आप लोग थोड़ा कष्ट सह लो।”
हृदयस्पर्शी, दिल को पिघला देने वाला ऐसा भाषण सुनकर प्रजा भी फूट-फूटकर रोने लगी और राजा को पचास दिन दे दिए। पचास दिन बाद पता चला की कागज तो आ गये लेकिन प्रिंटिंग मशीन खराब पड़ी है, ठीक करवाने में थोड़ा समय लगेगा….खैर प्रजा तो बेचारी भोली भाली होती है…उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं, थोड़े दिनों की बात है, उसके बाद तो स्वर्णयुग आ ही जाएगा।
इस बीच राजा ने स्वर्णनगरी बनाने का अभियान शुरू कर दिया। किसी ने राजा को कहा कि यदि स्वर्णनगरी बना ही रहे हैं, तो बुलेट ट्रेन भी होनी चाहिए…तभी तो आधुनिक लगेगा, वरना तो लोग कहेंगे कि रावण के लंका की नकल कर रहे हैं। राजा ने तुरंत बुलेट ट्रेन का ऑर्डर कर दिया। ट्रेन आयी तो राजा ने फरमान जारी कर दिया, कि अब कोई अपने वाहन का प्रयोग नहीं करेगा, सारे वाहन जब्त कर लो। क्योंकि लोग जब अपने वाहन चलाते हैं तो ट्रेफिक जाम हो जाता है, पोल्यूशन होता है। तो सबके वाहन जब्त कर लिए गये और सभी को बुलेटट्रेन से ही जाना अनिवार्य कर दिया गया। आये दिन बुलेट ट्रेन कभी किसी एक घर में घुस जाती तो कभी किसी के खेत में उतर जाती…. चारो तरफ हा-हाकार मच गया। प्रजा ने राजा से फ़रियाद की, “आपने बुलेट ट्रेन चलवाई वह आपकी महानता है, लेकिन हम पर दया करिए और उसके लिए ट्रेक भी बनवा दीजिये। आपकी बुलेट-ट्रेन छुट्टे सांड की तरह दौड़ रही है। आंधी की तरह किसी के भी बेडरूम में घुस जाती है, अब प्रजा की प्राइवेसी का खयाल आप नहीं रखेंगे तो और कौन रखेगा महाराज ???”
राजा को अपनी प्रजा पर दया आई और कहा, “भाई-बहनों, मुझे आपका दुःख समझ में आता है और प्रत्येक नागरिक की प्राइवेसी उसका मौलिक अधिकार है। हम आपके प्राइवेसी की रक्षा अवश्य करेंगे… “
राजा ने मंत्रणा बुलाई और रेलवे ट्रेक बनवाने के लिए मंत्रियो से चर्चा की। वित्तमंत्री ने सुझाव दिया, “रेलवे ट्रेक बनवाने के लिए काफी सारा लोहा और स्टील चाहिए होगा, क्यों न हम जनता से ही मांग लें, आखिर उनका भी तो फर्ज बनता है अपने देश के लिए। हम ही देशभक्ति क्यों निभाएं, उनको भी देशभक्ति निभानी चाहिए।”
बस तुरंत ही घोषणा हो गयी कि जो भी सच्चा देशभक्त है, वह अपने अपने घर से लोहा, स्टील आदि के जो भी सामान, बर्तन, फेंसिंग, कुल्हाड़ी, फावड़ा, रेती, आरी…. आदि हैं वे सब जमा करवाएं।
राजाज्ञा सुनते ही प्रजा के पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी। सबके मुँह से के ही वाक्य निकला, “स्वर्णयुग आये या न आये, स्वर्गवासी अवश्य बना देंगे सबको”।
~विशुद्ध चैतन्य
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