देश और समाज की चिंता करने की बजाय माफियाओं के साथ मिलकर लूटो और लुटवाओ
क्या कभी सोचा है आप लोगों ने कि पूरे विश्व की जनता को धर्म, आध्यात्म और सभ्यता की आढ़ में कैसे कायर, गुलाम और #zombie बनाया गया ?
सोचा है कभी कि धर्म और आध्यात्म आज पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास, कर्मकाण्ड, मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च तक ही सिमट कर क्यों रह गया ?
क्योंकि धर्म खतरे में है कहकर आतंक फैलाना, साम्प्रदायिक द्वेष व घृणा फैलाना अपराध नहीं है, लेकिन इनके विरुद्ध आवाज उठाना अपराध है। क्योंकि सर्दी-जुकाम को महामारी बताकर पूरे विश्व को आतंकित कर फर्जी सुरक्षा कवच लेने के लिए विवश करना, अपराध नहीं है। लेकिन इस आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाना अपराध है, सोशलमीडिया कम्यूनिटी स्टेंडर्ड के विरुद्ध है।
जैसे आज विरोध के स्वर दबाने के लिए फेसबुक पोस्ट डिलीट कर देता है, रीच घटा देता है, प्रोफ़ाइल/पेज को सस्पेंड या डिलीट कर देता है माफियाओं, लुटेरों, सरकारों के आईटी सेल की भावना आहत होने पर। ठीक वैसे ही पहले भी विरोधियों की आवाजें दबाने के लिए सर तक धड़ से अलग कर दिये जाते थे सार्वजनिक रूप से।
इसी प्रकार समाज को यह संदेश दिया जाता रहा है हमेशा से कि माफियाओं, लुटेरों, सरकारों के विरुद्ध बोलोगे, या लिखोगे तो आस्तित्व ही मिटा दिया जाएगा।
प्राचीनकाल में सर कलम कर दिया जाता था विरोध करने पर। आधुनिक काल में कलम तोड़ दिया जाता है सच लिखने पर।
अब तकनीकी इतनी एडवांस हो गई है कि मेरे जैसे विद्रोही कुछ सिलेक्टेड शब्दों को सोशल मीडिया पर नहीं लिख सकते, जैसे कि टीका, #Vaccine, #Covid।
लिखते ही पोस्ट डिलीट और आईडी सस्पेंड 3 हफ्ते से लेकर 3 महीने तक के लिए। और सस्पेंशन के बाद खुली भी, तो पोस्ट की रीच 90 दिनों से लेकर 365 दिनों के लिए घट सकती है।
वहीं कुछ लोग इन्हीं प्रतिबंधित शब्दों का प्रयोग सहजता से कर रहे हैं आतंक फैलाकर लॉकडाउन लगाने से लेकर फर्जी सुरक्षा कवच लेने के लिया दबाव बनाने तक के लिए। क्योंकि उनके कारण फार्मा माफियाओं को लाभ और नरपिशाचों का उद्देश्य #Depopulation_Agenda अर्थात New World Order Agenda सफल होता है। जबकि हम जैसों के कारण पूरे विश्व को अपना गुलाम बनाने की उनकी महत्वाकांक्षाओं पर आघात पहुंचता है। इसीलिए हमारे लेखों से उनकी भावनाएं आहत होती रहती है।
विश्व की अधिकांश प्रजा पर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि प्रजा शूद्र होती है। और शूद्र का धर्म है बिना कोई प्रश्न या विरोध किए, सैनिकों और सरकारी अधिकारियों की तरह आदेशों का पालन करना।
जो जागृत हैं, वे विरोध करते हैं तानाशाही का, लूटपाट, शोषण और अत्याचार का, तो विद्रोही या राजद्रोही घोषित हो जाते हैं। कई जेलों में सड़ते हैं, कई मारे जाते हैं। और जो बच जाते हैं, वे आजीवन तिरस्कृत, अभावग्रस्त और एकांकी जीवन जीते हैं। केवल इस अपराध में कि जनता को जागरूक करने का प्रयास किया, सत्य सामने लाने का प्रयास किया।
लेकिन जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता उन्हीं माफियाओं, लुटेरों को अपना ईश्वर और भाग्यविधाता मानकर जीती है, क्योंकि दुनिया की 90% जनता सकारात्मक और सेवक यानि शूद्र मानसिकता की होती है। और वह यही मानकर जीती है कि मालिकों को खुश रखो, अपने बीवी बच्चों को पालो और चैन की ज़िंदगी जियो।
इसीलिए ओशो ने कहा था, “देश और समाज की चिंता मत करो। क्योंकि समाज या देश ने तुम्हें नहीं चुना है चिंता करने के लिए। जिन्हें चुना है, उन्हें करने दो चिंता। और वैसे भी समाज ना पहले कभी सुधरा था, ना भविष्य में कभी सुधरेगा। अनगिनत जागृत और चैतन्य आत्माएं जगाने का प्रयास करके चली गईं। लेकिन समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इसीलिए अपने भले का सोचो, स्वयं को समृद्ध बनाओ और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जियो। समाज जो दुख या पीड़ा भोग रहा है, वह उसका स्वयं चुना हुआ है। उनकी पीड़ा या दुखों के लिए तुम जिम्मेदार नहीं हो।”
और मैं ओशो से सहमत हूं, इसीलिए समाज सेवा जैसे मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करता।
तुम समाज का भला करने जाओगे और वह माफियाओं और लुटेरों के साथ मिलकर सूली पर चढ़ा देगा जैसे जीसस को चढ़ाया। झूठे आरोप लगाकर, झूठी गवाही देकर जेल भिजवा देगा, जहर देकर मार देगा, जैसे सुकरात को मारा।
फिर बैठकर अपनी किस्मत को रोएगा, ईश्वर को याद करेगा, मंदिरों, तीर्थों में जाएगा लुटने के लिए लेकिन नतमस्तक रहेगा माफियाओं और लुटेरों के सामने ही।