समझदार होने का कोई सम्बन्ध नहीं डिग्रीधारी या शास्त्री होने से

“बहुत पढ़ा हमने फलाने को ढिकाने को।”
“बचपन से उनके सानिन्ध्य में रहे हम कई बरसों तक।”
सारे शास्त्र, धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ हैं हमें, एक-एक आयतें और श्लोक ज़बानी याद है।
अरे ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का टॉपर हैं हम ! भला हमसे बड़ा ज्ञानी और कौन होगा इस दुनिया में ?
ऐसे बहुत से डायलॉग अक्सर सुनने मिलते रहे हैं बचपन से लेकर अब तक। पहले मुझे अवश्य प्रभावित करते थे, लेकिन अब नहीं। क्योंकि प्रायोजित महामारी काल में यह प्रमाणित हो गया कि ये सब दिमाग से उतने ही पैदल होते हैं, जितनी भेड़ें, भक्त, अनुयायी और गोदीमीडिया।
वास्तविकता तो यह है कि शिक्षित व समझदार होने का कोई सम्बन्ध है ही नहीं धर्मग्रन्थों, शास्त्रों, वेदों, पुराणों, बाइबल या कुरान का कंठस्थी या ज्ञाता हो जाने से। ना ही सम्बन्ध है दुनिया भर की प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की डिग्रियाँ बटोर लेने से। हाँ मार्केटिंग एक्ज़्क्युटिव, राजनेता और गोदीमीडिया की तरह इतना कोन्फ़िडेंस अवश्य आ जाता है कि दुनिया भर के झूठ लाखों की भीड़ के सामने बोल सकते हैं। और इनके झूठ को सत्यापित करने के लिए दुनिया भर के गुलाम साइंटिस्ट्स और डॉक्टर्स खड़े हो जाएँगे।
जबकि जो शिक्षित होता है, सत्य जानता है, वह नर्वस हो सकता है, इनके सामने लड़खड़ा जाएगा। क्योंकि उसके सपोर्ट में उसके सगे भी नहीं खड़े होंगे। और फिर जो जितना अधिक जानता जाता है, उतना ही गहरे से यह भी जान जाता है कि अभी उसने कुछ भी नहीं जाना। और जो जाना है, वह भी हो सकता है गलत हो जाए कल। जैसे कि डार्विन का सिद्धान्त आज गलत हो गया। जैसे यह सिद्धान्त गलत हो गया कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगाता है। जैसे कि यह धारणा गलत हो गयी कि रेमदेसीवर से प्रायोजित महामारी का इलाज हो सकता है। जैसे यह धारणा गलत हो गयी कि प्रायोजित सुरक्षा कवच से सर्दी-जुकाम जिसे प्रायोजित महामारी बताया गया से बचाव हो सकता है।
पढे-लिखे लोगों को हमेशा यह भ्रम रहता है कि वह किसी चैतन्य या जागृत व्यक्ति को समझ गया। वास्तविकता तो यह है कि इंसान स्वयं को भी अपने जीवनकाल में नहीं समझ पाता। और जो स्वयं को समझ जाता है, वह चैतन्य और जागृत हो जाता है। अधिकांश की नजर में चैतन्य व्यक्ति पागल या घमंडी ही होते हैं। क्योंकि जनता को यही समझाया गया है कि जैसे भेड़ें एक जैसी ही होती है, वैसे ही इंसान भी एक ही जैसे होते हैं। भले उनके अंगुलियों के निशान न मिलते हों, लेकिन होते सभी भेड़ों बकरियों की तरह ही है। इसीलिए यदि कोई व्यक्ति भीड़ से अलग दिखने लगता है, तो लोग उसे ढोंगी-पाखंडी या पागल घोषित कर देते हैं। लेकिन जो नेता, डॉक्टर, साइंटिस्ट्स, संस्थाएं, संगठन, पार्टियाँ हमेशा से समाज व देश सेवा के नाम पर जनता को लूटती, लुटवाती आयी है, उनसे जनता को कोई समस्या नहीं। क्योंकि उनकी हाँ में हाँ मिलाने पर नौकरी मिलती है, दुनिया भर की सुविधाएं मिलती हैं।
इसीलिए दुनिया की अधिकांश जनता बच्चे भी पैदा करती है, तो यह मानकर कि उन्हें उच्चकोटी का गुलाम बनाना है। जो जितना उच्चकोटी का गुलाम होगा, उसे उतना ही बड़ा पैकेज मिलेगा। क्योंकि वह गुलाम जनता को बरगलाए रखेगा, वह गुलाम देश व जनता को लूटने और लुटवाने में सहयोगी बनेगा।
देखा जाये तो मानव जाति पशुओं से केवल इतनी ही उन्नत हुई है, कि पढ़ना-लिखना सीख गयी। बाकी इनके जीवन का उद्देश्य तो वही है, जो कोल्हू के बैल के जीवन का उद्देश्य होता है। एक कोल्हू के बैल से अधिक उन्नत तो वे भी नहीं हो पाये, जो स्वयं को धार्मिक आध्यात्मिक कहते हैं, दिन भर ईश्वर की भक्ति का ढोंग करते हैं, लेकिन माफियाओं की चाकरी करके स्वयं को धन्य समझते हैं।
यदि माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की गुलामी ही करनी है, गांव, देहात, जल, जंगल सब माफियाओं को सौंपकर शहरी चिड़ियाघरों यानि स्मार्ट सिटी में ही शिफ्ट होना है। तो फिर आपको किसी गुरु, किसी धार्मिक ग्रंथ, किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघर की आवश्यकता नहीं है। ना ही आवश्यकता है हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, यहूदी, कॉंग्रेसी, भाजपाई, सपाई, बसपाई होने की।
क्योंकि गुरु कोई भी हो, धार्मिक ग्रंथ कोई भी हो, पंथ, सम्प्रदाय, मत-मान्यताएँ कुछ भी हों, पार्टी, संगठन, संस्था कोई भी हो….सभी केवल बाहर से ही अलग अलग दिखाई देते हैं। लेकिन सभी का मालिक वही है, जिसने कल्पना की न्यू वर्ल्ड ऑर्डर की और उसे सफल बनाने के लिए प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेप दिया। इसी बहाने उसने यह भी जान लिया कि पूरी दुनिया अब ईश्वर पर नहीं, केवल उसपर विश्वास करती है और उसी के आदेशों का अनुसरण करेगी।
आपकी सारी शिक्षा, सारे धार्मिक ग्रंथ, सारे पंथ आपको केवल ज़ोम्बी, गुलाम और कोल्हू का बैल बनने के लिए ही प्रेरित करते हैं। सभी यही सिखाते हैं कि माफियाओं और लुटेरों का विरोध मत करो, बल्कि “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जीते हुए, ध्यान, भजन, कीर्तन, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करते हुए माफियाओं और लुटेरों की गुलामी करो।
~ विशुद्ध चैतन्य
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