शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, धर्म, आस्था, श्रद्धा और विश्वास का व्यवसाय
क्यों करते हैं लोग अपने गुरु, अपने पंथ, अपने मजहब, अपने धार्मिक ग्रन्थों का प्रचार ?
जिन्हें हम धर्मगुरु, धर्माचार्य कहते हैं, संन्यासी कहते हैं क्या वे वास्तव में संन्यासी होते हैं, या केवल मार्केटिंग एक्ज़्क्युटिव होते हैं ?
ये जो सड़कों पर हरे रामा हरे कृष्णा या बाबा नाम केवलम या बाबाजी लाएँगे क्रान्ति, या हम बदलेंगे जग बदलेगा…..जाप करते घूमते हैं, क्या वे सब धार्मिक लोग हैं, या केवल मार्केटिंग एक्ज़्क्युटिव ?
किताबी और किस्से कहानियों के अनुसार तो सभी पंथ, मजहब, धर्म, रिलीजन, संस्था, संगठन, राजनैतिक पार्टियाँ स्वयं को गंगाजल सी पवित्र और दूध का धुला ही बताते हैं। सभी कहते हैं कि हम अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार और शोषण के विरुद्ध हैं। सभी बताते हैं कि हमारे गुरु, हमारे आराध्य ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ते हुए जेल गए, गोलियाँ खाई, बलिदान दिया।
गुरुओं ने अपमान सहा, जेलों में प्रताड़नाएं सहीं, प्राणों की आहुतियाँ दी….लेकिन लाभ क्या हुआ ?
क्या कोई आध्यात्मिक या धार्मिक उत्थान हुआ समाज का ?
क्या जो शिक्षाएं उन्होंने दी थीं, उनका पालन हुआ ?
क्या लोग धार्मिक और आध्यात्मिक हो पाये ?
या फिर केवल जय-जय करने वाली भजन, स्तुति-वन्दन मंडली बनकर रह गयी ?
क्या गुरुओं ने भजन कीर्तन, पूजा पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करते हुए धर्म और आध्यात्म का धंधा करने के लिए कहा था ?
या फिर धार्मिक और आध्यात्मिक होने के लिए कहा था ?
क्या पूजा, पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत, उपवास, ध्यान, भजन-कीर्तन करते हुए माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की चाकरी या गुलामी करते रहने से कोई धार्मिक और आध्यात्मिक हो जाता है ?
क्या आपकी नजर में कोई ऐसा आध्यात्मिक, धार्मिक पंथ, सम्प्रदाय या संगठन है, जो अधर्मियों, देशद्रोहियों, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का विरोधी हो व्यवहारिक रूप से ?
जो कायरता, गुलामी और चाटुकारिता सिखाता हो, वह ना तो धर्म है और ना ही आध्यात्म
ऐसा कोई भी धर्म जो मानव को माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का विरोधी न बनाकर उनका गुलाम और चाटुकार बनाता हो, वह धर्म नहीं है।
ऐसा कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान, जो माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध खड़ा होना नहीं सिखाता, वह आध्यात्म नहीं गुलाम तैयार करने वालों का प्रपंच है।
ऐसे धर्म और आध्यात्म उन लोगों ने तैयार किए हैं, जो पूरे विश्व की जनता को अपने गुलाम के रूप में देखना चाहते हैं। ऐसे धर्म और आध्यात्मिक केंद्र बहुत तेजी से फलते फूलते हैं क्योंकि माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के संरक्षण में चलते हैं। इन्हें हर प्रकार की आर्थिक, राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है।
जबकि जो माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध समाज को जागृत कर रहे होते हैं, उनके तो अपने भी दूर होने लगते हैं। आर्थिक सहयोग तो दूर की बात है, दान भी माँगने निकलें, तो भिखारी कहकर दुत्कार दिये जाते हैं।
सोचिए कैसा विकृत समाज बना दिया माफियाओं और लुटेरों ने अपने गुलाम धार्मिक, आध्यात्मिक गुरुओं, शिक्षण संस्थानों और प्रचार तंत्र के माध्यम से ?
समाज इतना विकृत और संवेदनाशून्य बना तो बना कैसे ?
कारण स्पष्ट है। लोभ, स्वार्थ, भय और दूसरों को अपने अधीन रखने की प्रवृति ने मानव को मानव ही नहीं बनने दिया। मानव पैदा तो हुआ था मानव बनने के लिए, लेकिन पशुओं से भी नीचे गिर गया। आज पशु मानवों से लाख गुना अधिक संवेदनशील होते हैं। लेकिन मानव आज मानवों का ही विनाश का षड्यंत्र करके खुश हो रहा है।
शिक्षा, चिकित्सा, खेल, धर्म, आस्था, श्रद्धा और विश्वास का व्यवसाय
शिक्षा, चिकित्सा, धर्म, आदि कभी सेवा माने जाते थे, लेकिन आज शुद्ध व्यापार बन गया है। आज स्कूल कॉलेज खोले जाते हैं तो पैसे कमाने के लिए, व्यवसाय करने के लिए। आज चिकित्सा जगत व्यवसाय बन चुका है। आज धर्म व्यवसाय बन चुका है, आज न्याय व्यवसाय बन चुका है। और जहां व्यवसाय होगा, वहाँ मानवता और संवेदनशीलता लुप्त होती जाएगी और शैतानी मानसिकता हावी होती जाएगी।
सम्पूर्ण प्राणी जगत और भू जल सम्पदा पर अपना एकाधिकार करने के लिए. माफियाओं के गिरोह ने उन धर्मगुरुओं को रास्ते से हटा दिया जो धर्म का पाठ पढ़ाते थे, जो समाज अधर्म, अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना सिखाते थे। उनके स्थान पर अपने ट्रेंड किए गुलामों को धर्मगुरुओं के रूप में स्थापित करना शुरू किया। अब वे जनता को सिखाते हैं कि तुम्हारा जन्म भजन कीर्तन करने के लिए हुआ है, तुम्हारा जन्म ईश्वर/अल्लाह की स्तुति वंदन करने के लिए हुआ है। तो केवल ध्यान करो, भजन करो, कीर्तन करो, रोज़ा रखो, नमाज पढ़ो, मंदिर तीरथों के चक्कर लगाओ तभी मुक्ति मिलेगी। यदि तुमने माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का विरोध किया, तो तुम्हारा जीवन नर्क हो जाएगा।
और स्वार्थी, लोभी कायर जनता को ये नए पाखंडी गुरु बहुत पसंद आए। परिणाम यह हुआ कि आज पूरी दुनिया ही भजन, कीर्तन, पूजा, पाठ, रोज़ा-नमाज़ और मंदिर-मस्जिद तीरथों में उलझकर रह गयी और देश व जनता के लुटेरे बड़े आराम से पूरा देश लूट रहे हैं।
गुलाम मानसिकता से ग्रस्त जनता ने इतना भी विचार करना आवश्यक नहीं समझा कि यदि ये सब करने से कुछ भला हो रहा होता, तो फिर राजनेताओं और राजनैतिक पार्टियों को दुनिया भर के छल-कपट और हिंसा करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
जरा भी विचार नहीं किया कि यदि मंदिर-मस्जिद, तीरथों में रत्तीभर भी आलौकिक शक्तियाँ होतीं, तो प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर तीरथों, मंदिरों, मस्जिदों के ठेकेदार और संरक्षक फरार न हो गए होते ताले लगाकर । मंदिरों, तीर्थों में विराजमान देवी-देवता प्रायोजित महामारी से जनता की सुरक्षा करने के स्थान पर स्वयं मास्क लगाकर डॉक्टर्स से अपना इलाज न करवा रहे होते।
जिनके पास भूमि थी, उनकी भूमि छीनने के लिए सरकारी/गैर सरकारी नौकरी का लालच देकर शहर बुलाना शुरू किया और फिर गांवों में भूमाफिया ग्रामीणों और आदिवासियों की भूमि हड़पने में व्यस्त हो गए। परिणाम यह हुआ कि आज पढ़ा-लिखा समाज इस भ्रम में जी रहा है कि वह शिक्षित है, लेकिन सत्य तो यह है कि वे सब दिमाग से उतने ही पैदल हैं, जितने किसी जमाने में डॉक्टर हुआ करते थे।
कोई भी धार्मिक, आध्यात्मिक पंथ, सम्प्रदाय, संगठन, संस्था देख लीजिये, सभी में आपको भजन मंडली ही नजर आएगी, क्रांतिकारी एक भी नहीं। कोई भी ऐसा नजर नहीं आएगा जो माफियाओं और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध आवाज उठा रहा हो। यदि कोई उठाता भी है आवाज़ तो समाज क्या, उसके अपने भी उससे दूरी बना लेते हैं। क्योंकि माफियाओं के रखैल धर्म और आध्यात्मिक गुरुओं ने समाज के मन में यह धारणा इतनी गहरी बैठा दी है कि माफियाओं का विरोध करना पाप है और परिणाम हमेशा बुरा ही आता है।
धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु दिन रात यही समझाने में लगे रहते हैं कि माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का विरोध करने की बजाय समझौता करना सीखो। नौकरी करो और देश व जनता के लुटेरों के सहयोगी बनो। तुम्हें मान-सम्मान मिलेगा, यश मिलेगा, पुरुसकार मिलेगा, पद्मश्री, पद्मभूषण से लेकर मेगेसेसे, नोबल पुरुसकार जैसे सर्वोच्च सम्मान तक मिल सकता है। शर्त केवल इतनी सी है कि माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का विरोधी नहीं, सहयोगी बनो।
स्कूलों, कोलेज़्स में बचपन से बच्चों के मन में बैठाया जाने लगता है कि बड़े बनकर तुम्हें माफियाओं और देश व जनता लुटेरे की गुलामी करना है डॉक्टर बनकर, इंजीनियर बनकर, साइंटिस्ट्स बनकर, आईएएस, आईपीएस बनकर। लेकिन बताया यह जाता है कि यह सब बनकर तुम देश व जनता की सेवा करोगे। और होता यह है कि यह सब बनकर माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की गुलामी करते हैं, अपने ही देश की जनता को लूटने और लुटवाने में सहयोगी बनते हैं।
लेकिन ना तो जनता के पास इतनी समझ है कि यह सब सोच व समझ पाये, ना ही पढे-लिखे डिग्रीधारियों के पास फुर्सत है। क्योंकि मान-सम्मान मिल रहा है, जय जय हो रही है, मोटी कमाई हो रही है, सरकारी सुरक्षा मिल रही है, ऐश्वर्य चरणों पर पड़ी नजर आ रही है…..तो फिर भला कौन इस सुख को खोना चाहेगा ?
यही लोभ मानव को शैतान बना देता है। और शैतान सेवा भी व्यापार समझकर करता है। सहायता भी करता है, तो बदले में कुछ न कुछ अवश्य मांग लेता है। शैतान धर्म सिखाने निकले या आध्यात्म सभी में धंधा देखता है, मुनाफा देखता है। शैतान चिकित्सा करे या न्याय, मुनाफा देखता है। जितना मानव दुखी और पीड़ित होगा, उतना ही सुख पहुंचता है शैतान को। इसीलिए न्याय के नाम पर बरसों केस को घसीटा जाता है। चिकित्सा के नाम पर बीमारियाँ परोसी जाती है। सुरक्षा के नाम पर मौत परोसी जाती है।
क्योंकि आज धर्म, आध्यात्म और जातियों के ठेकेदारों से लेकर मीडिया, सरकार और न्यायिक व्यवस्था तक माफियाओं की गुलाम है। और अधिकांश जनता को तो सुख चाहिए, चाहे सुख जिस्म बेचकर मिले या ईमान बेचकर मिले, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
आज अधिकांश लोग जानते हैं कि नेता, अभिनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, राजनेता और राजनैतिक पार्टियाँ बिकाऊ होती हैं, मीडिया बिकाऊ होते हैं, सरकारें बिकाऊ होती हैं….फिर भी आँख मूंदकर उनके पीछे दौड़ते हैं। ईसी से प्रमाणित हो जाता है कि जनता दिमाग से कितनी पैदल हो चुकी है और मानव से ज़ोम्बी (ज़िंदा लाश) में रूपांतरित हो चुकी है।
आज लुटते, पिटते और बर्बाद होते देश और मानव जाति की दुर्दशा देखकर धर्म और नैतिकता के ठेकेदारों की भावनाएं आहत नहीं होतीं, बल्कि फिल्में देखकर आहत होती हैं। सरकारों और राजनेताओं की बेशर्मी देखकर नहीं, बेशर्म रंग देखकर इनकी भावनाएं आहत होती हैं।
क्यों ?
क्योंकि ये सब भी पालतू गुलाम हैं, ज़ोम्बी हैं माफियाओं के। इनमें मानवता मर चुकी है। ये सब मिलकर शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, खेल, धर्म, आस्था, श्रद्धा और विश्वास का व्यवसाय कर रहे हैं, लेकिन ना तो इन्हें धर्म का ज्ञान है और ना ही आध्यात्म का।