भक्तिमार्ग, कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग…आदि सभी मार्ग माफियाओं के अधीन हैं

प्राचीनकाल में जब दासप्रथा का चलन था, तब दास (गुलाम) खरीदे और बेचे जाते थे। दासों की मंडियां सजा करती थीं। तब कर्मयोग या कर्ममार्ग का बहुत प्रचार हुआ। कहा गया कि कोल्हू के बैल की तरह कर्म किए जाओ, फल की चिंता मत करो। क्योंकि फल तो मालिक को मिलेगा और मालिक की दया से दास को कुछ मिल जाये, तो दास का भाग्य।
तो दासप्रथा के युग में कर्ममार्ग को चुनौती देने आया भक्तिमार्ग। भक्ति मार्ग में कर्म का महत्व नहीं है। केवल भक्ति, स्तुति-वंदन, भजन कीर्तन, चापलूसी, चाटुकारिता और जय-जय करना ही पर्याप्त है।
यदि मुझसे कोई भी पूछे कि कौन सा मार्ग सही है, तो मेरा उत्तर है कोई भी मानव निर्मित मार्ग सही नहीं है। क्योंकि सभी मार्ग आपको माफियाओं और लुटेरों के बाड़ों और कसाईखानो की तरफ ही ले जाते हैं।
दुनिया के सभी रेडीमेड पंथ, मजहब, धर्म, संस्था, संगठन, पार्टियाँ इन्सानों को भेड़ों, बत्तखों में ही रूपांतरित करती हैं क्योंकि ये सभी माफियाओं और लुटेरो के अधीन हैं।
आप यह कैसे कह सकते हैं कि भक्तिमार्ग में कर्म का महत्व नहीं है…?
विकास कुमार ने प्रश्न किया है:

आप यह कैसे कह सकते हैं कि भक्ति मार्ग में कर्म का महत्व नहीं है…! केवल भक्ति ,स्तुति वंदना ,भजन कीर्तन ,चापलूसी चाटुकारिता है?
कबीर, तुलसी, सूरदास ,जायसी भी भक्ति करते हैं और कर्म के मर्म को पहचानते हैं। कबीर ज्ञान मार्ग को अपनाते हुए भक्ति रूपी खेत में प्रेम का फसल लगाते हैं। तुलसी उदात्त सामाजिक के मूल्यों को स्थापित करने की वैचारिक कोशिश करते हैं सूरदास वात्सल्य प्रेम संयोग वियोग पक्ष नारी प्रतिष्ठा को स्थापित करने की वजह कोशिश करते हैं जायसी सामंती मानसिकता को विरोध करते हुए प्रेम के उदात्त मूल्य को स्थापित करने की वैचारिक कोशिश करते हैं यह सभी कर्म के साथ भक्ति करते हैं।
आपसे सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा है सर। क्योंकि मैं फेसबुक पर आपके वॉल पर कमेंट करने में असमर्थ हूं क्योंकि वहां पर मुझे कमेंट करने का ऑप्शन नहीं आता है। अतः आपसे सादर अनुरोध है कि आप मुझे सकारात्मक और तार्किक विचार से अवगत कराएं
विकास जी, सबसे पहले तो आपको यह समझना होगा कि मीरा, कबीर, तुलसीदास, सूरदास आदि कोई मार्ग नहीं थे। वे अपनी मौलिकता में जी रहे थे। वे वही कर रहे थे, जो उन्हें करना सही लग रहा था। भले परिवार समाज उनके विरुद्ध हुआ, उन्होंने चिंता नहीं की। लेकिन उन्हें आधार बनाकर जो भक्तिमार्ग बनाया गया, वह भी मार्ग नहीं केवल बाड़ा और दड़बा ही बना। और मार्ग और दड़बे में जमीन आसमान का अंतर होता है।
बाड़ा उसे कहा जाता है, जिसमें पालतू मवेशियों को रखा जाता है और दड़बा उसे कहा जाता है, जिसमें पालतू मुर्गियों/बत्तखों को रखा जाता है। बाड़े और दड़बों का मालिक अपनी मुर्गियों और मवेशियों को अपनी इच्छानुसार पालता है। जब धन की आवश्यकता होती है उन्हें बेच देता है, नहीं तो उनसे प्राप्त होने वाले ऊन, दूध, खाल, हड्डी, अंडे, माँस आदि बेचकर अपनी आजीविका चलता है।
अब आप ही बताइये कि कोई बाड़े और दड़बे मार्ग कैसे हो गए ?
बस यही सब होता है कबीर, रहीम, मीरा, नानक, साईं, जीसस, राम, कृष्ण व अन्य सभी मौलिक जीवन जीने वालों के नाम पर स्थापित भक्तिमार्ग नामक दड़बों में। सभी दड़बे व्यावसायिक संस्थान हैं और इनके संचालक, ठेकेदार, मालिक आदि सब वैश्य हैं। और वैश्य को व्यापार करना है क्योंकि वही उसका मौलिक गुण है। उसके हाथ में देश भी सौंप दो, तो वहाँ भी धंधा शुरू कर देता है, क्योंकि उसे केवल खरीदना और बेचना ही आता है।
आप दुनिया का कोई भी धार्मिक/आध्यात्मिक पंथ, सम्प्रदाय, संगठन देख लीजिये, सभी का मूल उद्देश्य व्यापार ही है। उनकी मानें तो धर्म और आध्यात्म सिवाय व्यापार और गुलामी के और कुछ नहीं है। इसलिए कभी भी किसी धार्मिक या आध्यात्मिक संगठन, संस्था या पंथ ने अधर्म, अन्याय, शोषण के विरुद्ध आवाज नहीं उठाया। जबकि जिनके नाम पर ये संस्थाएं खड़ी की गयीं उनके संस्थापकों ने अवश्य बहुत संघर्ष किया अन्याय, अत्याचार और शोषण के विरुद्ध।
गुरु गोविंद सिंह ने बहुत बलिदान दिये अत्याचारियों और अन्यायियों के विरुद्ध आवाज उठाने के परिणाम स्वरूप। लेकिन आज उन्हीं के अनुयायी ना तो माफियाओं के विरुद्ध आवाज उठाने लायक हैं और न ही देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध।
तो मार्ग और दड़बों का अंतर समझना होगा। जिन्हें मार्ग कहा जा रहा है, उन्हें टोल प्लाज़ा कहा जा सकता है। ऐसा मार्ग, जिसमें आपको टैक्स चुकाना पड़ेगा। फिर वह टैक्स चढ़ावे के रूप में हो, चंदे के रूप में हो या दान के रूप में हो या अन्य कोई और रूप में हो। लेकिन टैक्स तो वसूला ही जाएगा। क्योंकि उन मार्गों के रखरखाव, प्रचार-प्रसार के लिए अत्याधिक धन की आवश्यकता होती है।
मंदिरों को देख लीजिये ! करोड़ों रुपए का चढ़ावा आता है, लेकिन क्या उससे समाज या राष्ट्र का कोई कल्याण होता है ?
नहीं…बिलकुल नहीं। उल्टे हमें विदेशों से कर्ज लेना पड़ता है और यह कर्ज बढ़ता ही चला जाता है। महंगाई बढ़ती चली जाती है, भ्रष्टाचार बढ़ता चला जाता है, बेरोजगारी बढ़ती चली जाती है, गरीबी बढ़ती चली जाती है और जनता को बरगलाने के लिए गोदीमीडिया जैसे गुलामों पर निर्भर हो जाती हैं सरकारें।
भक्तिमार्ग हो या ज्ञान मार्ग या कर्ममार्ग, आज सभी मार्ग माफियाओं के अधीन हैं और ये सभी मार्ग आध्यात्मिक उत्थान की ओर नहीं, बल्कि स्तुति-वंदन, कीर्तन-भजन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज करते हुए मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीने वाली भीड़ से भरे दड़बों की ओर ले जाते हैं। ऐसे दड़बे, जिसमें ईमान, ज़मीर, जिस्म बेचकर भक्तिरस में डूबे हुए लोग मिलेंगे। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश लुट रहा है, बर्बाद हो रहा है, पूरी मानव जाति माफियाओं के अधीन हो चुकी है और लूटी और लुटवाई जा रही है। इन्हें केवल जय-जय करना है, ध्यान करना है, आरती करना है, पूजा पाठ करना है, रोज़ा नमाज करना है।
ये ऐसी भीड़ है, जिसे यह समझाया गया है कि तुम्हारा जन्म हुआ हुआ भक्ति करने के लिए, बिना फल की इच्छा किए कोल्हू के बैल की तरह दिन रात काम करने के लिए और यदि कुछ बुरा हो रहा है तुम्हारे साथ, तो तुम्हारे पूर्वजन्मों के कर्म हैं या फिर तुम पूजा पाठ ठीक से नहीं कर रहे। बाकी माफियाओं का कभी विरोध मत करना, हम जो भी फर्जी इलाज देंगे वही स्वीकारना होगा, बिलकुल पालतू मवेशियों की तरह। तुम्हें प्रश्न करने का कोई अधिकार नहीं है….क्योंकि तुम हमारे गुलाम हो।
बहुत से लोग सोचते हैं कि कबीर के दिखाये मार्ग पर चलेंगे तो कबीर बन जाएंगे, गांधी के दिखाये मार्ग पर चलेंगे तो गांधी बन जाएँगे, बुद्ध के दिखाये मार्ग पर चलेंगे तो बुद्ध बन जाएंगे……
तो सोचिए मत ! स्वयं जाकर उनके दड़बों में झांक लीजिये कि उनके पंथी/मार्गी कर क्या रहे हैं ?
क्या वे माफियाओं के विरुद्ध आवाज उठाने लायक हैं ?
क्या वे देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध आवाज उठाने लायक हैं ?
नहीं….वे केवल जय-जय ही कर सकते हैं, धंधा कर सकते हैं, चापलूसी और चाटुकारिता कर सकते हैं, विरोध नहीं कर सकते। क्योंकि उन्हें मानसिक रूप से ऐसा बना दिया गया है कि उन्हें ना धर्म का कुछ पता है, ना आध्यात्म का कुछ पता है। वे इस भ्रम में जी रहे है हैं कि वे तो महान आत्माओं के बनाए संगठन के सदस्य हैं, इसलिए कुछ महान ही कार्य कर रहे हैं जय-जय करके। जबकि उन संगठनों पर माफियाओं का अधिकार है और वे जैसे चाहते हैं, वैसा ही बना दिया जाता है संगठन के अनुयायियों को।
क्या हिन्दुत्व के ठेकेदारों को कभी देखा है आपने माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध ?
क्या इस्लाम के ठेकेदारों को देखा है कभी माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध ?
क्या सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि के ठेकेदारों को कभी देखा है माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध ?
नहीं देखा होगा….लेकिन इन सभी के पास किस्से कहानियाँ हैं कि हमारे आराध्य बड़े महान थे। उन्होंने महान लड़ाइयाँ लड़ीं अत्याचारियों, अन्यायियों के विरुद्ध। महान बलिदान दिये….लेकिन स्वयं कर क्या रहे हैं अनुयायी ?
केवल जय जय !!!
इसलिए ही कहा मैंने कि भक्तिमार्ग में कर्म का महत्व नहीं है। केवल भक्ति, स्तुति-वंदन, भजन कीर्तन, चापलूसी, चाटुकारिता और जय जय करना ही पर्याप्त है। और यहाँ कर्म से मेरा तात्पर्य झाड़ू, पोंछा, बर्तन, चूल्हा, चौकी, सरकारी या गैर सरकारी नौकरी या अन्य कोई रोजगार नहीं है। यहाँ कर्म से मेरा तात्पर्य है वह कर्म जो इंसान को इंसान बनाता है, वह कर्म जो परोपकार पर आधारित है, वह कर्म जो इंसान को माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों से मुक्त करवाता है।
मीरा ने भक्ति की, सूरदास ने भक्ति की…..तो वे उनकी व्यक्तिगत रुचि थी, उससे माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों पर लगाम तो नहीं लगी न ?
आज भी लोग मोदीभक्ति में धुत्त हैं, राहुलभक्ति में धुत्त हैं, केजरीवाल की भक्ति में धुत्त हैं….क्या ये भक्त मीरा, सूरदास जैसे भक्तों से रत्तीभर भी कम हैं ?
इन्हें भी हर तरफ इनका आराध्य नजर आता है। घर के बर्तन बिकने पर आ गए…और ये जय-जय करने में मगन हैं।
क्या कोई भला होगा देश का ऐसे भक्तिमार्ग से ?
रही कर्ममार्ग की बात, तो कर्ममार्ग में सभी सरकारी और गैर सरकारी वेतनभोगी लिप्त हैं। दुनिया के सभी मजदूर कर्ममार्गी ही हैं। जो भी चाकरी कर रहा है माफियाओं और लुटेरों की, वे सभी कर्ममार्ग पर ही हैं। लेकिन क्या उनके कर्ममार्ग पर चलने से देश को माफियाओं और लुटेरों से मुक्ति मिल जाएगी ?
ज्ञानमार्ग का बड़ा महत्व है और दुनिया में जितने भी पढे लिखे हैं वे सभी ज्ञानमार्गी ही हैं। लेकिन क्या ये ज्ञानमार्गी फर्जी महामारी और फर्जी सुरक्षा कवच के नाम पर पूरे विश्व को बंधक बनाकर लूटे जाने के विरुद्ध आवाज उठा पाये ?
नहीं….क्योंकि दुनिया के सभी मार्ग माफियाओं के अधीन हैं और वे ही तय कर रहे हैं कि वे मार्ग इन्सानों को कहाँ लेकर जाएंगे। इसीलिए ही ओशो ने कहा था कि बने-बनाए मार्ग पर दौड़ने का अब कोई लाभ नहीं। अपना मार्ग स्वयं खोजो, क्योंकि तुम इंसान हो कोई पालतू मवेशी नहीं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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