चार्वाक दर्शन और कर्जों में दबा मानव, समाज और देश
चैतन्य आत्माओं ने हमेशा मानव जाति को चैतन्य बनाने का ही प्रयास किया। लेकिन उनके शिष्यों और अनुयायियों ने मानव जाति को कभी चैतन्य होने ही नहीं दिया। क्योंकि शिष्यों और अनुयायियों की आजीविका भेड़ों और भीड़ पर निर्भर होती है। और फिर चैतन्य आत्माओं के आसपास इकट्ठी होने वाली भीड़ चैतन्य होने के लिए नहीं, व्यक्तिगत स्वार्थों और व्यावसायिक उद्देश्यों के पूर्ति लिए इकट्ठी होती है।
इसलिए ना तो शिष्यों की कोई रुचि होती है चैतन्य होने में और न ही अनुयायियों की कोई रुचि होती है। उन्हें तो केवल अपने-अपने स्वार्थ सिद्ध करने होते हैं, वर्तमान को सुखी बनाना होता है और मरने के बाद स्वर्ग/जन्नत में प्लाट लेकर मोक्ष प्राप्त करना होता है।
आश्चर्य होता है यह देखकर कि जिनकी आवाजें देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध नहीं निकलती, वे सिखाने निकल पड़ते हैं कि साधु-संन्यासियों को कैसा होना चाहिए। और इसके लिए दोषी है साधु-समाज जिनसे साधु-संन्यासियों का एक ऐसा समाज बना लिया, जो भौतिक सुख-सुविधाओं में वैसे ही डूबे हुए हैं, जैसे राजनेता और नगर सेठ डूबे रहते हैं। साधू-समाज में अधिकांश तो यह भी नहीं पता होगा कि चैतन्य होना, वास्तव में होता क्या है।
आज चैतन्य वही कहलाता है जो माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के उत्पातों को अनदेखा कर ध्यान, भजन में डूबा रहे या मौन धारण कर ले। जबकि चैतन्य होने का अर्थ यह होता है कि जो उत्पात साधारण मानव नहीं देख पाता, वह चैतन्य व्यक्ति देख लेता है।
उदाहरण के लिए साधारण मानव यही मानता है कि वैज्ञानिक, सरकारें और डॉक्टर्स जनता के हितों के लिए होती हैं। जबकि चैतन्य व्यक्ति सहजता से देख पाता है कि ये सब मिलकर जनता को अपना पालतू मवेशी और गुलाम बनाने की जुगत में रहते हैं।
Dr Delgado worked for the CIA in the development of methods to control brain function with implanted stimoceivers (Devices to remotely stimulate brain tissue at implanted location)
The research shows the development of the implantable human rfid chip technology long ago.
1960 का यह प्रयोग आज इतना विकसित हो चुका है कि अब मानव पर इसका प्रयोग शुरू हो गया। सबसे पहले तीर्थ यात्रियों हाथों पर ऐसे ही चिप लगाकर जनता को मानसिक रूप से तैयार किया जा रहा है कि वे मस्तिष्क पर भी चिप लगाने के लिए तैयार रहें। यदि कोई उन्हें कहेगा कि ऐसे चिप मत लगवाओ, तो वे कहेंगे कि हमें तो हाथ में पहले भी लगवाया था, कुछ नहीं होता। सब कोन्स्पिरेसी थियोरी वालों की मानसिक दिवालियापन है, भला सरकारें और साइंटिस्ट जनता का बुरा क्यों करना चाहेगी ?
The device is constructed of ultra-soft and bio-compliant polymers to help provide long-term compatibility with tissue. Geared with micrometer-sized LEDs (equivalent to the size of a grain of salt) mounted on ultrathin probes (the thickness of a human hair), it can wirelessly manipulate target neurons in the deep brain using light. Full article link t.ly/Ak3um
अब जब चार्वाक दर्शन को आत्मसात कर चुकी जनता पालतू मवेशी की तरह जीने के सिद्धान्त को ही सभ्य शालिन जीवन शैली के रूप में स्वीकार चुकी है तो कोई उन्हें अब रोक भी नहीं सकता। और पालतू मवेशियों के इस सिद्धान्त को “मैं सुखी तो जग सुखी” का सिद्धान्त या चार्वाक सिद्धान्त कहता हूँ मैं।
क्या आप विश्वास करेंगे कि सकारात्मकता, आध्यात्मिकता, धार्मिकता के नाम पर केवल चार्वाक का ही सिद्धान्त परोसा जाता है ?
यह भी कह सकते हैं कि आध्यात्मिक, धार्मिक और सकारात्मक लोग चार्वाक दर्शन के अनुयायी होते हैं ?
चार्वाक दर्शन क्या है ?
“यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः”
अर्थ: जब तक आप जिएं, खुशी से जिएं। कर्ज लो और घी पियो। एक बार जब शरीर राख हो जाता है, तो यह कैसे वापस आ सकता है!
क्या आधुनिक साधु, संतों, संन्यासियों, आध्यात्मिक और धार्मिक गुरुओं का समाज और उनके अनुयायियों के आचरणों को देखकर भी विश्वास नहीं होता कि ये सब चार्वाक सिद्धान्त के ही अनुगामी हैं ?
और क्या आपको हंसी नहीं आती जब यही लोग त्याग, बैराग के महत्व पर प्रवचन देते हैं ?
यदि आप ध्यान दें तो आस्तिक हो या नास्तिक, धार्मिक हो या अधार्मिक, नेता हो या अभिनेता, त्यागी हो या सत्ताधारी…..सभी चार्वाक दर्शन के ही अनुगामी हैं। अर्थात “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जीने वाले। लेकिन ये सब समाज सेवी, परोपकारी होने का ढोंग करते हैं।
चार्वाक ने कहा कि कर्जा लेकर भी मौज मस्ती करनी हो, तो करिए लेकिन खुश रहिए। क्या यही आपके चहेते राजनेता, राजनैतिक पार्टियां, सरकारें, धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु नहीं कर कर रहे ?
आज भारत पर 1.45 लाख करोड़ का कर्जा हो चुका है, चुकाएगा कौन ?
क्या जिस राजनैतिक पार्टी या सरकार ने कर्ज लिया वह चुकाएगी ?
नहीं चुकाना तो उसे ही पड़ेगा जो उनके जाने के बाद बचेगा।
तो आपकी सरकार, आपकी राजनैतिक पार्टी भी चार्वाक दर्शन की अनुयायी है। देश की जनता भी चार्वाक दर्शन की अनुयायी है। इसीलिए इन्हें कोई कोई फर्क नहीं पड़ता देश के लुटने और बर्बाद होने से। इन्हें तो बस अपना आज सुधार लेना है, मौज-मस्ती करनी है। बाकी इनके जाने के बाद देश भूखों मरे, दाने-दाने को तरसे इन्हें कोई चिंता नहीं। क्योंकि चार्वाक ने ही कहा है, “जब तक आप जिएं, खुशी से जिएं। कर्ज लो और घी पियो।”
और चार्वाक के इस दर्शन का दुष्परिणाम यह हुआ कि जनता क्रेडिटकार्ड और उधार देने वाले साहूकारों पर निर्भर हो गयी। साहूकार तो मालामाल होते चले गए, लेकिन जनता गरीब से गरीब होती चली गयी। अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ती चली गयी।
कर्ज पर कर्ज बढ़ता गया, कर्ज चुकाने के लिए और अधिक काम करना पड़ा ताकि आय का स्त्रोत बढ़े। फिर आय के स्त्रोत को स्थिर करने के लिए और अधिक कर्ज लेना पड़ा। और इस प्रकार प्रत्येक देश का नवजात शिशु तक लाखों का कर्जदार हो गया।
फिर नए-नए नेता आए गरीबी मिटाने के लिए। लेकिन मिटाने लगे गरीबों को ही, उनकी भूमि छीनकर, उनकी बची, खुची संपत्ति हड़पकर। गरीब फुटपाथ पर आ गया, दाने-दाने को मोहताज हो गया। जिन अमीर सेठों ने कर्जे लेकर घी पिया था, उन्हें घी हजम नहीं हुई और सपरिवार आत्महत्या करने लगे।
इसलिए यदि मैं आज राजनेताओं, राजनैतिक पार्टियों, धार्मिक, आध्यात्मिक गुरुओं और संगठनों से दूरी रखना चाहता हूँ, तो वह बिलकुल भी गलत नहीं है। क्योंकि ये पशु-पक्षियों से अधिक उन्नत नहीं हो पाये आज तक। इतना ही हुआ है कि ये कर्जा ले लेकर देश को लूटते रहे और लुटवाते रहे। जहां तक आध्यात्म की बात है, तो आध्यात्म से दूर-दूर तक इनका कोई सम्बन्ध है ही नहीं।
जिसे धर्म बताया जा रहा है, वह धर्म नहीं, जिसे आध्यात्म कहा जा रहा है, वह आध्यात्म नहीं। वर्तमान धर्म और आध्यात्म बिलकुल वैसा ही है, जैसे आज दिव्याङ्ग। जरा अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डालिए कि दिव्याङ्ग कहने पर आपके मस्तिष्क पर किसी विकलांग की छवि उभरती है या दिव्याङ्ग की ?
इसी प्रकार धर्म और आध्यात्म आज चार्वाक दर्शन का पर्यायवाची बन चुका है। आज मैं सुखी तो जग सुखी पर जीना ही अध्यात्म और धर्म है। फिर भले आपका पड़ोसी भूखा मर रहा हो, देश लुट रहा हो, जनता को फर्जी महामारी से आतंकित कर फर्जी सुरक्षा कवच चेपी जा रही हो, कोई विरोध करने को तैयार नहीं। क्योंकि विरोध करने पर माफिया दुख पहुंचाएंगे, जिंदगी नर्क बना देंगे और कोई दुख या संकट नहीं चाहता। सभी सुख पूर्वक चार्वाक के सिद्धान्त पर जीना चाहते हैं।
इसीलिए मानवजाति आज माफियाओं पर आश्रित हो गयी। और जब तक चार्वाक के सिद्धान्त पर समाज जी रहा है, वह माफियाओं की पालतू मवेशी की तरह जीने के लिए विवश रहेगा।
कभी गाय, बकरियों को देखिये….क्या उन्हें कभी यह एहसास होता है कि वे गुलाम हैं ?
नहीं ना ?
क्यों ?
क्योंकि वे भी चार्वाक दर्शन के ही अनुयायी हैं, लेकिन कर्जा नहीं लेते। इसीलिए वे सुखी हैं और उन्हीं की तरह सुखी हैं राजनेताओं, राजनैतिक पार्टियों, और बाबाओं के भक्त। क्योंकि उन्हें फ्री का चारा मिल रहा है, लेकिन यह नहीं दिख रहा कि उनका क्या-क्या लूटा जा रहा है। चार्वाक दर्शन पर ही जी रहा है आधुनिक समाज, सरकार और धार्मिक, आध्यात्मिक गुरु।
यदि आप नास्तिक हैं, तो ओशो का यह प्रवचन अवश्य पढ़िये: एस धम्मो सनंतनो-(प्रवचन-57)