आज मैं तुमसे स्वयं को भी छीन रहा हूँ क्योंकि तुमने उसे धंधा बना लिया: ओशो

ओशो_रजनीश ने अपने अंतिम दिनों में जब देखा कि सिर्फ माला-चोला भर पहनकर अधिकाँश लोग ‘ओशो-ओशो’ करते हुए नाम भर के ‘स्वामी’ कहलाने लगे हैं, हिन्दू या भोंदू बने रहकर सुविधाखोर टोलियां और ‘गुरुभाई_क्लब’ जैसे_समूह बनाने लगे हैं, तो रजनीश ने सबके कूल्हों के नीचे से ढोंगी ध्यान के आसन खीच लिए और कहा…..
जब तुम संन्यास लेने आये थे तो मेरी शर्त थी कि मैं तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे छीन लूँगा। तुम्हें कोरा कागज़ बना दूंगा, ताकि उस पर नई इबारत उतरे ! आज मैं तुमसे स्वयं को भी छीन रहा हूँ, क्योंकि तुमने उसे धंधा बनाना शुरू कर दिया है!
तुम_जैसे स्वामी से ‘हरामी’ कहलाना सुन्दर और सार्थक है। अपने स्वभाव की खोज और उसके विकास के बजाय तुम एक जैसी आदतों में भेड़-बकरी बन गए! तुम्हारा वश चले तो तुम मुझे गणेश और हनुमान बना डालो या शिवलिंग की तरह मेरे नाम के ओशोलिंग खड़े करने लग जाओ!
जिन_मूर्खताओं को जलाने मैं आया हूँ, तुम मेरे नाम से वही मूर्खताएं मेरे रहते करने लगे हो तो आगे तो तुम दुनिया भर के गधों से पैसे लेकर बुद्धत्व की डिग्रियां भी बेचने लगोगे।
मेरे वास्तविक प्यारे तो इनेगिने ही हैं, जिन्हें पहचानना तुम्हारे वश में नहीं है।अब मैँ ‘ओशो’ नहीं हूँ, सिर्फ रजनीश हूँ। चक्र पूरा हुआ !
अब केवल मूर्ख ही ‘ओशो-ओशो’ करते मिलेंगे और वही मूर्ख अपनी टोलियों में ‘स्वामी’ कहलाएंगे।
मेरे_असली प्यारे सच्चाई और सजगता के मार्ग पर मिलेंगे और उन्हें मेरे नाम और मेरे चिन्हों से पहचानना मुश्किल हो जाएगा। वही मेरा और अपना नवनीत काम करेंगे और मेरे नाम से गीदड़ों की तरह झुण्ड में जीने वालों को ललकारेंगे। वहीँ से नई लपटे उठेंगी। बाहरी तौर पर ‘ओशो’ शब्द का इस्तेमाल तो नहीं रुकेगा, लेकिन ‘ओशो’ नाम से चलने वाले गिरोहबाज़ धंधों की खाट खड़ी करना संभव रहेगा। यही असली धंधा है! इसी में परमानन्द है!
आग_कमबख्त अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकती ! मेरी वाणी अभी ताज़ा है। वह अगर दुनिया भर के राजनेताओं और धर्मगुरुओं का पैदा किया कचरा जला सकती है तो मेरे नाम से जमा होने वाले कचरे को क्यों नहीं जलाएगी?
ओशो
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