भारत एकल संस्कृति व संस्कारों का देश नहीं है
कानून सबके लिए बराबर है और सभी को बराबर का संवैधानिक अधिकार है।
यदि हिन्दुओं की निंदा करने वालों को पीटना हिन्दुओं का संवैधानिक अधिकार है, तो मुस्लिमों की निंदा करने वालों को भी पीटने का मुस्लिमों को संवैधानिक हो जायेगा।
यदि स्वामी अग्निवेश को पीटना वैध है, तो साक्षी-प्राची को पीटना भी वैध हो जाएगा।
यदि मोदी विरोधियों, भाजपा विरोधियों को पीटना भाजपाइयों मोदी भक्तों का संवैधानिक अधिकार है, तो फिर राहुल, अखिलेश, केजरीवाल, मायावती, ममता व अन्य नेताओं पार्टियों के विरोधियों को पीटना भी उन नेताओं और पार्टी भक्तों का संवैधानिक अधिकार हो जाएगा।
यदि भाजपा को चाटुकार, चापलूस पत्रकार और गुंडे-बदमाश पालने का संवैधानिक अधिकार है, तो फिर बाकी पार्टियों को भी यह अधिकार स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
अब जनता को स्वयं तय करना है कि भारत को सनातन सिद्धांत पर चलाना है या फिर कबीलाई सिद्धांत पर। भारत को संविधान के अंतर्गत चलाना है या फिर धर्मों के ठेकेदारों और सड़क छाप लुच्चे लफंगों के सिद्धांत पर ?
यह बात सभी को गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि भारत विभिन्न मतों, मान्यताओं, संस्कारों, परम्पराओं, भाषाओँ, संस्कृतियों का देश है। कोई इस्लामिक, इसाई, या बौद्ध देशों की तरह एकल संस्कृति व संस्कारों का देश का देश नहीं है। अतः वैचारिक मतभेद रहेंगे ही और यही इसकी सुन्दरता भी है। लेकिन वैचारिक मतभेदों के कारण अपने विरोधियो को शारीरिक, आर्थिक क्षति पहुँचाने की परम्परा शरू कर रहे हो, तो ध्यान रखना बहुत ही भारी पड़ने वाली है सभी पर।
यदि हिन्दू अपने विरोधियों को शारीरिक क्षति पहुँचायेंगे केवल इसलिए क्योंकि विरोधी उसकी मान्यताओं का मजाक उड़ा रहा था या उन्हें अपमानित कर रहा था, तो निश्चित मानिये कि आप भी पिटेंगे और कई अलग अलग मान्यताओं व धारणाओं के लोगों से एक साथ पिटेंगे। आप तो किसी मुसलमान को पीट देंगे, आप तो किसी आंबेडकरवादी को पीट देंगे…लेकिन ये सब मिलकर पीटेंगे आपको तब ???
इसलिए नेताओं और धर्मो के ठेकेदारों के बहकावों में आकर ऐसे खेल में मत पड़ो कि भारत को भी ईराक और सीरिया बना कर रख दो अपनी मूर्खताओं से। भारत इराक या सीरिया नहीं है, यह सनातन धर्मियों का देश है। यहाँ आस्तिक-नास्तिक, शैव-वैष्णव व अन्य परस्पर विरोधी मान्यताओं, संस्कारों, संस्कृतियों के बीच वाद विवाद, शास्त्रार्थ, तर्क-वितर्क होते हैं और होते ही रहेंगे। क्योंकि यही संस्कृति व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता, विवेक व ज्ञान को समृद्ध करने का श्रेष्ठ माध्यम हैं।
लेकिन यदि आपमे तर्क करने की क्षमता नहीं है, गाली-गलौज मार-पीट ही एकमात्र उपाय है अपने विरोधियों को परास्त करने का, तो फिर उनको चुनौती दें जो शस्त्र व युद्ध कौशल में पारंगत हों। किसी लेखक, किसी ब्लोगर, किसी उपदेशक, किसी प्रचारक, किसी साधू-संत, किसी संन्यासी पर अपनी ताकत मत आजमाइए और न ही आजमाइए उनपर जो युद्ध कौशल में पारंगत न हों। लुच्चे लफंगों की सेनाओं पर भी मत इतराइये, किसी दिन सभ्य लोग उठ खड़े हुए और तुम लोगों की तरह ही असभ्यता पर उतर आये, तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
~विशुद्ध चैतन्य