जिन्हें सरकारें धर्म कहती हैं, वे सभी आरएसएस जैसी संस्थाएँ मात्र हैं

जैसे दिव्याङ्ग को विकलांग बना दिया गया, वैसे ही किताबी धर्मों को सम्प्रदाय बना दिया गया। जैसे लोग दिव्याङ्ग शब्द को विकलांग का पर्यायवाची समझ बैठे हैं, वैसे ही किताबी धर्म को सम्प्रदाय का पर्यायवाची समझ बैठे हैं।
और आश्चर्य तो यह कि पढे-लिखे डिग्रीधारी लोग ही नहीं, शास्त्र, वेद, पुराण, कुरान, गीता, बाइबल और संविधान के प्र्काण्ड विद्वान और आलिम भी स्वीकार चुके हैं कि दिव्याङ्ग अर्थात विकलांग और धर्म अर्थात सम्प्रदाय।
जिन्हें समाज और सरकारें धर्म कहती हैं, वह वास्तव में आरएसएस, इस्कॉन, आनन्दमार्ग जैसे ही संस्था, संगठन, सम्प्रदाय मात्र हैं।
आरएसएस के पास अपनी एक प्रार्थना है “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” और प्रार्थना करने की एक विधि है, आनन्दमार्गियों की अपनी, इस्कॉन की अपनी। जैसे मुस्लिमों के प्रार्थना की अपनी विधि है, हिंदुओं के विभिन्न पंथों की अपनी-अपनी है, इसाइयों की अपनी है।
आरएसएस के पास अपना ड्रेसकोड है जैसे इसाइयों में होता है, मुस्लिमों में होता है, सिक्खों में होता है, हिंदुओं में होता है…….
सभी सम्प्रदायों की प्रार्थनाओं को यदि सुनें, तो बहुत ही अच्छे लगते हैं, अत्यन्त सारगर्भित लगते हैं। सभी सम्प्रदाय के लोग अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार प्रार्थना करते हैं और उन प्रार्थनाओं के प्रति अत्यन्त आसक्त भी रहते हैं। इन्हें लगता है कि हम जो प्रार्थना कर रहे हैं, उससे हमें ही नहीं, समस्त विश्व को लाभ होगा, क्योंकि इससे सकरात्मकता फैलती है।
सभी सम्प्रदाय अपने कर्मकाण्डों, मान्यताओं को अत्यन्त महत्व देते हैं और उनका पालन पूरे दिल से भावविभोर होकर करते हैं। जैसे कि आरएसएस वाले करते हैं रैलियाँ, परेड निकालकर, डंडा और झण्डा लहराकर। और यही प्रार्थना, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत, उपवास, जुलूस, कीर्तन, भजन, ढ़ोल, मंजीरे, डीजे, नाचना गाना….आदि को ही धर्म मानकर जीते आ रहे हैं।
सभी सम्प्रदायों में यह प्रथा है कि जैसे ही कोई नया सदस्य इनके सम्प्रदाय/समाज में प्रवेश करता है, या जन्म लेता है….उसे भेड़, बत्तख बनाने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। और फिर वह शिशु आजीवन इंसान नहीं बन पाता केवल भीड़ का अंश मात्र बनकर रह जाता है।
मैंने कहा कि इंसान नहीं बन पाता, तो इसका अर्थ यह है कि इन्सानों के पास पशु-पक्षियों से अधिक विवेक-बुद्धि होती है, लेकिन उसका प्रयोग करने की क्षमता विकसित नहीं कर पाता। भले शरीर से इंसान जैसा ही दिखता हो, लेकिन दिमाग से भेड़, बत्तख ही होता है।
अब देखिये ना आरएसएस डंडा, झण्डा और तलवार लहराते हुए परेड निकालते हैं। सभी को लगता होगा कि ये कोई देशभक्तों की भीड़ जा रही होगी। लेकिन ध्यान से देखें, तो पायेंगे कि भेड़ों का झुण्ड चला जा रहा है। इन्हें ना तो देश का पता है, न ही देशभक्ति का। बिलकुल वैसे ही जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन समाज के लोग नहीं जानते कि धर्म क्या है, देशभक्ति क्या है।
इनके आँखों के सामने देश नीलाम हो रहा है, और ये देशभक्त होने के भ्रम में जी रहे हैं। इन्हें लगता है कि झण्डा, डंडा और तलवारे लहराने से धार्मिक और देशभक्त हो गए।
सम्प्रदाय, समाज, संगठन चाहे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएँ, वे सिवाय मवेशियों को कैद रखने वाले बाड़े और मुर्गियों और बत्तखों को रखने वाले दड़बे से अधिक और कुछ नहीं होते। जैसे मवेशियों और मुर्गियों को धर्म और देशभक्ति से कोई लेना देना नहीं होता, केवल चारे से मतलब होता है। ठीक वैसे ही इन दड़बों में कैद इन्सानों की शक्ल वाले मवेशियों को भी धर्म और देशभक्ति से कोई मतलब नहीं रहता, केवल चारे से मतलब रहता है।
कई दशकों से अलग अलग पंथ, मार्ग, संगठन, समाज, पार्टियाँ और सरकारें बनती चली आ रही हैं, लेकिन ये सभी माफियाओं और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के गिरोह ही सिद्ध हुईं। और इनके सदस्य और भक्त जयकार लगाने वाली, परेड निकालने वाली भेड़ों की भीड़ बनकर रह गई।
धार्मिक आध्यात्मिक गुरुओं ने भी समाज को यही सिखाया कि तुम्हारा जन्म तो पूजा, पाठ, रोज़ा, नमाज, भजन कीर्तन करने के लिए हुआ है…ये देशभक्ति वगैरह की बकवास छोड़ो और मोक्ष प्राप्ति की सोचो। आधुनिक पढ़े-लिखे लोग तो कहने लगे हैं कि देश वेश कुछ नहीं होता, ग्लोबलाइज़ेशन के विषय में सोचो। ग्लोबलाइज़ेशन हो जाएगा तो पासपोर्ट और वीज़ा का झंझट समाप्त हो जाएगा और फिर आराम में यूरोप और अमेरिका में जाकर नौकरी कर सकेंगे। ये लोग ऐसा इसलिए सोच रहे हैं, क्योंकि इनका जन्म नौकरी करने के लिए ही हुआ है।
लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं इस दुनिया में जो अपने-अपने देश से प्रेम करते हैं और चाहते हैं कि उनका देश दोबारा विदेशियों का गुलाम न बने। लेकिन ये पढ़े-लिखे लोग और आरएसएसए, इस्कॉन, आनंदमार्ग जैसे संगठन अपने ही देश को विदेशियों को सौंपने के लिए आतुर हैं। इनमें अपने देश को समृद्ध बनाने की क्षमता नहीं क्योंकि सिवाय प्रार्थना, परेड करने, दंगा-फसाद करने के और कोई योग्यता अर्जित की नहीं।
यदि वास्तव में धर्म समझना है, यदि वास्तव में देशभक्ति को समझना है….तो इन संगठनों, संप्रदायों और धार्मिक किताबों से मत समझो। बल्कि पशु-पक्षियों से सीखो। क्योंकि वे आज भी सनातनी हैं, वे आज भी प्राकृतिक ईश्वरीय धर्म का ही अनुसरण कर रहे हैं।
किताबी धार्मिक वास्तव में दोगले होते हैं। ये धार्मिक और देशभक्त होने का ढोंग तो बढ़चढ़कर करते हैं, लेकिन जब देश लुट रहा होता है, जब प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर पूरे देश की जनता का सामूहिक बलात्कार किया जा रहा होता है, तब धार्मिक और देशभक्तों का बड़े से बड़ा संगठन, संस्था, समाज बिलकुल वैसे ही दुबक जाता है, जैसे बत्तखों का झुण्ड दुबक जाता है आसमान में उड़ते चील या बाज को देखकर, जैसे भेड़ों का बड़े से बड़ा झुण्ड भी सहम जाता है भेड़ियों की आवाजें सुनकर।
इनकी नैतिकता, इनकी सात्विकता, इनकी देशभक्ति केवल किताबी होती है, नौटंकी होती है, वास्तव में इन्हें ना तो धर्म का कोई ज्ञान होता है और ना ही देशभक्ति का।
~ विशुद्ध चैतन्य
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