समस्त ब्रह्माण्ड में मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो मुफ्तखोर नहीं

समस्त ब्रह्माण्ड में, मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो मुफ्तखोर, हरामखोर नहीं है। कीमत चुका कर, मेहनत करके खाता है।
और मेहनत क्या करता है ?
माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की चाकरी और गुलामी।
कीमत क्या चुकाता है ?
अपना ईमान, जमीर, जिस्म, बुद्धि, विवेक सब गिरवी रखकर कोल्हू का बैल बन जाता है।
परिणाम क्या आता है ?

जोशीमठ जैसा विकास पाता है। प्रदूषित नदी, सरोवर और सागर पाता है। भेड़ों बत्तखों सा जीवन पाता है। और आजीवन डॉक्टर अस्पताल, फार्मा माफियाओं और सरकारों को पालने के लिए कमाता रहता है।
(मैं अपवाद हूं ! माफियाओं, श्रमिकों और गुलामों का समाज मुझे मुफ्तखोर, हरामखोर, भिखारी कहता है)
लेकिन दुनिया के जिस क्षेत्र में मेहनती मानव नहीं पाए जाते, केवल हरामखोर, मुफ्तखोर पशु-पक्षी पाए जाते हैं, वे सभी स्थान आज भी प्रदूषण और तनावों से मुक्त हैं।

बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि मूलनिवासी ना तो सरकारी नौकरी करते थे, न ही गैर सरकारी। वे तो प्रकृति की गोद में प्राकृतिक जीवन जीते थे, अपने खेतों और वनों की रक्षा करते थे माफियाओं और लुटेरों से।
लेकिन जब से मूलनिवासी पढ़े-लिखे और आधुनिक हुए हैं, तब से गुलामी और चाकरी का सपना सँजोये जीने लगे हैं अपने खेत, जमीन माफियाओं को बेचकर।
क्या श्रम अर्थात मजदूरी, गुलामी, चाकरी करते हुए जीना ही मानव जीवन का उद्देश्य है ?
समस्त ब्रह्माण्ड में केवल मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी क्यों है, जो चाकरी और गुलामी को ही जीवन का उद्देश्य मानकर जी रहा है ?
मानव के अतिरिक्त अन्य कोई भी ना तो गुलामी पसंद करता है, ना ही किसी की चाकरी कर रहा है। कुत्ता भी इन्सानों के साथ यदि जुड़ता है, तो स्वयं को गुलाम मानकर नहीं, परिवार का हिस्सा मानकर जुड़ता है। वह आजीवन स्वयं को परिवार का हिस्सा ही मानता है, इसीलिए परिवार के हर संकट में वह साथ रहता है और यदि आवश्यकता पड़े, तो परिवार की रक्षा के लिए वह अपने प्राणो को भी संकट में डालने से संकोच नहीं करता।
नीचे मोना नमक एक कुतिया की तस्वीर दे रहा हूँ, जिसने एक कोबरा को मारकर अपने मालिक के परिवार की जान बचाई। यह तस्वीर उसकी अंतिम मुस्कुराहट की तस्वीर हैl

It is never a good feeling when we lose our beloved pet and it’s even more heartbreaking if they died trying to save us.
Full story: Brave dog tragically dies 5 minutes after proudly rescuing its owner from venomous cobra
चूंकि मानव केवल गुलामी करना ही सीख पाया है, सहयोगी बनना नहीं, इसीलिए वह इस जाँबाज कुत्ते को भी गुलाम ही कहेगा और स्वयं को उसका मालिक। जबकि वह कुत्ता नहीं जानता कि गुलामी क्या होती है, वह तो अपने परिवार की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को त्याग रहा है। वह परिवार जिससे उसे बहुत प्यार मिला, भोजन मिला, अपनापन मिला, उसके लिए यदि उसे अपने प्राणो का भी बलिदान करना पड़ा, तो खुशी खुशी प्राणों का बलिदान भी कर दिया और मुसकुराते हुए विदा ले लिया।
लेकिन मानव पशुओं से अधिक बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। उसमें योग्यता होती है सही और गलत का निर्णय लेने की। फिर भी वह यह नहीं समझ पाता कि जिसकी वह चाकरी कर रहा है, जिसकी वह सेवा कर रहा है, क्या वह देश व समाज के हितों के लिए कार्य कर रहा है या नहीं ?
देश व समाज के हितों के विषय में क्यों सोचना चाहिए ?
देश व समाज के हितों के विषय में इसलिए सोचना चाहिए, क्योंकि पशु-पक्षी नहीं सोच पाते। पशु-पक्षी केवल अपने परिवार तक ही सीमित होते हैं। लेकिन इंसान कहलाने योग्य वही होता है, जो देश, समाज व आने वाली पीढ़ी तक के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करता है।
आप में से अधिकांश समझते हैं कि सेना और पुलिस भी तो अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश और समाज की सेवा और रक्षा करती है। लेकिन यदि आप झूठी शान, गर्व और अहंकार से मुक्त होकर चिंतन-मनन करें, तो पाएंगे कि ये लोग भी देश की नहीं, माफियाओं और देश जनता के लुटेरों के ही सेवक हैं। अपने मालिक के आदेश पर इन्हें तनिक भी देर नहीं लगेगी अपने ही देश के किसानों, आदिवासियों पर लाठी और गोलियाँ बरसाने में। क्योंकि इनके पास विवेक बुद्धि नहीं होती सही और गलत का निर्णय लेने की। इनकी सारी ट्रेनिंग ही ऐसी होती है जो इन्हें ज़ोम्बी और आदेशों का गुलाम बना देती है।
और यदि सेना और पुलिस देश की रक्षा कर रहे हैं, तो किन शत्रुओं से कर रहे हैं ?
देश लुट रहा है इनके रहते, बिक रहा है, नीलाम हो रहा है….क्या ये रोक पा रहे हैं ?
चीन, भारत की कितनी जमीन हड़प चुका है, क्या ये रोक पा रहे हैं ?
अदानी, अंबानी, माल्या, नीरव, चौकसी जैसे माफिया बैंकों को ही नहीं, देश की जनता को भी चूना लगा रहे हैं, क्या ये रोक पा रहे हैं ?
ये केवल गरीबों, आदिवासियों, किसानों पर ही अपना ज़ोर दिखा सकते हैं, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध मुँह भी खोला तो बेरोजगार हो जाएंगे।
क्या श्रमिकों के हाथ सत्ता आ जाए तो शोषण, अत्याचार, अन्याय बंद हो जाएगा ?
श्रमिक वर्गों से लेनिन ने कहा कि जब तक श्रमिक वर्ग के हाथ में सत्ता नहीं आ जाती, तब तक अन्याय, शोषण, अत्याचार से मुक्ति नहीं मिलेगी।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेना और पुलिस भी श्रमिक वर्ग के अंतर्गत ही आते हैं, ना कि बुद्धिजीवी वर्ग से।
और सत्ता श्रमिकों के हाथ में आ भी गयी तो क्या उनका अपना ही वर्ग शोषण और अत्याचार से मुक्त हो जाएगा ?
ये किसानों, आदिवासियों पर अत्याचार करने वाली पुलिस और सेना के जवान स्वयं श्रमिक वर्ग से होते हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर अत्याचार करने वाली सलवा जुडूम आदिवासी ही हैं। किसानों पर लाठी चार्ज करने वाले किसानों के ही संतान होते हैं…
लेकिन श्रमिकों को इस भ्रम में रखा गया कि सत्ता बुद्धिजीवियों के हाथ से छीनकर श्रमिकों के हाथ में दिया जाएगा, तभी समाज में समानता आ पाएगी।
जो श्रमिक वर्ग अपने खेत और तालाब की रक्षा कर पाने में अक्षम हैं, पाँच-पाँच किलो राशन पर निर्भर हैं….यानि अपने ही खेतों से पाँच किलो राशन भी नहीं उगा पा रहे वे सत्ता संभाल लेंगे ?
जिनका घर परिवार ही माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की चापलूसी, चाकरी और जय-जय करने पर पलता हो, उन्हें सत्ता मिल जाएगी तो न्याय और सामाजिक एकता स्थापित कर लेंगे ?
तो भ्रम से बाहर निकलिए कि सेना और पुलिस देश की सेवा और रक्षा कर रहे हैं। पूरा विश्व आज चंद माफियाओं का गुलाम हो चुका है, वे तय करते हैं कि सरकारों को क्या निर्णय लेना है, क्या कदम उठाना है। और ये सेना और पुलिस केवल गश्त ही लगाती रह गयी ?
सेना और पुलिस भी आज माफियाओं के ही अधीन है बिलकुल वैसे ही, जैसे ईडी, सीबीआई। क्योंकि सरकारें माफियाओं के अधीन हैं। लेकिन झूठे गर्व में अकड़े घूम रहे हैं, जनता भी जय-जय कर रही है….क्योंकि गुलाम जनता सिवाय जय-जय और स्तुति-वंदन के और कर भी क्या सकती है ?
चिंतन-मनन करिएगा कि आप जो श्रम कर रहे हैं, क्या उस श्रम से समाज व राष्ट्र का हित हो रहा है ?
जो तकनीकी विकास आप चाहते हैं, उससे क्या पर्यावरण, नदी, सरोवर, पहाड़, जंगल, खेत सुरक्षित और संरक्षित रह पाएंगे ?
क्या आप बिना गुलामी किए जी पाएंगे, क्या आपकी आने वाली पीढ़ी बिना गुलामी किए पशु-पक्षियों की तरह मुक्त जीवन जी पाएगी ?
और यदि नहीं, तो फिर क्या लाभ ऐसे श्रम का, ऐसी शिक्षा और डिग्रियों का ?
आप लोगों से लाख गुना बेहतर हूँ मैं क्योंकि निर्भीकता से अपना विरोध तो व्यक्त कर पा रहा हूँ। मैं भी नौकरी कर रहा होता है किसी की, तो क्या इतनी निर्भीकता से स्वतंत्र लेखन कर पाता ?
सदैव स्मरण रखें: माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की चाकरी करने वाले श्रमिकों और पढ़े-लिखों से श्रेष्ठ मेरे जैसे विश्व के वे सभी मुफ्तखोर, हरामखोर प्राणी श्रेष्ठ हैं, जो समाज को जागरूक करने के अभियान में लगे हुए हैं, या अपने अपने तरीके माफियाओं और लुटेरों का विरोध कर रहे हैं अपने देश के खेतों, वनों, नदी, तालाबों और पहाड़ों को माफियाओं और लुटेरों से बचाने के लिए।
~ विशुद्ध चैतन्य
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