क्या करें मजबूर हैं हम ! गर्व से कहो मजदूर हैं हम !!!

व्यक्ति आजीवन ज्ञान अर्जित करता रहे, तो भी सम्पूर्ण ज्ञान नहीं अर्जित कर सकता।
व्यक्ति आजीवन पुस्तकें पढ़ता रहे, तो भी समस्त विश्व की पुस्तकें नहीं पढ़ सकता।
व्यक्ति पूरा विश्वभ्रमण कर ले, तो भी विश्व का समस्त ज्ञान अर्जित नहीं कर पाएगा।
ओशो ने अपने जीवन में लगभग डेढ़ लाख पुस्तकें पढ़ीं थीं और एक महान दार्शनिक और तर्कशास्त्री कहलाए। लेकिन क्या ओशो को समस्त ब्रह्म का ज्ञाता कह सकते हैं हम ?
नहीं….बिलकुल नहीं ! क्योंकि जानकारियों को कंठस्थ कर लेने या संग्रह कर लेने मात्र से कोई ज्ञानी तो कहला सकता है, लेकिन समझदार और विवेकवान भी होगा या अनिवार्य नहीं है।
जॉर्ज बर्नार्ड शा ने कहा था;
“A learned man is an idler who kills time by study.”
“Every fool believes what his teachers tell him and calls his credulity science or morality as confidently as his father called it divine revelation.”
“My schooling not only failed to teach me what it professed to be teaching but prevented me from being educated to an extent, which infuriates me when I think of all I might have learned at home by myself.”
लेकिन ना जाने क्यों कुछ डिग्रियाँ बटोरकर लोग ऐसा व्यवहार करते हैं, कि उन्हें समस्त विश्व का ज्ञान प्राप्त हो गया ?
कई बार सुना है मैंने पढ़े-लिखे लोगों को कहते हुए कि अनपढ़ लोग राज कर रहे हैं और पढ़े-लिखे लोग उन्हें सलाम करते हैं।
क्यों करते हैं पढ़े-लिखे लोग सलाम उन अनपढ़ों को जो राज कर रहे हैं ?
अंबानी कंपनी हो या टी-सिरीज़, किसी डिग्रीधारी द्वारा स्थापित नहीं है। लेकिन अनपढ़ों द्वारा स्थापित इन्हीं कंपनियों में आज लाखों डिग्रीधारी नौकरी कर रहे हैं।
एक अनपढ़ व्यक्ति विधायक या मंत्री बन जाता है और आईएएस, आईपीएस उन्हें सलाम करते हैं। क्यों ?
ना करें सलाम और छोड़ दें नौकरी कि हम किसी अनपढ़ को सलाम नहीं करेंगे ?
जब डिग्रियाँ बटोरकर नौकरी मांगने जाते हैं, तो क्या आप यह देखते हैं कि उस कंपनी का संस्थापक या मालिक पढ़ा-लिखा है या अनपढ़ है ?
सत्य तो यह है कि मालिक या नेता होने के लिए डिगरियों की आवश्यकता नहीं, केवल अक्षर ज्ञान और विवेक बुद्धि प्रयोग करने की योग्यता ही पर्याप्त है। जबकि डिग्रियों के बिना आप अच्छे नस्ल के, अच्छी कीमत में बिकने वाला नौकर, मजदूर और गुलाम भी नहीं बन सकते।
क्या नौकरी और मजदूरी करने के लिए ही जन्म और डिग्रियाँ लेता है मानव ?

क्या करें मजदूर हैं हम,
गर्व से कहो मजदूर हैं हम !
हिन्दू हैं हम, मुस्लिम हैं हम
सिक्ख भी हैं, ईसाई भी हम
क्या करें मजबूर हैं हम
गर्व से कहो मजदूर हैं हम।
वामपंथी भी हम, दक्षिणपंथी भी हम
मोदीवादी भी हम, अंबेडकरवादी भी हम
कॉंग्रेसी भी हम, भाजपाई भी हम
सपाई भी हम, बसपाई भी हम
क्या करें मजबूर हैं हम,
गर्व से कहो मजदूर हैं हम !
सवर्ण भी हम, दलित भी हम
ब्राह्मण भी हम, शूद्र भी हम
क्षत्रिय भी हम, वैश्य भी हम
क्या करें मजबूर हैं हम
गर्व से कहो मजदूर हैं हम
आईएएस भी हम, आईपीएस भी हम
विधायक भी हम, मंत्री भी हम
सेवक भी हम मालिक भी हम
क्या करें मजबूर हैं हम,
गर्व से कहो मजदूर हैं हम !
शिक्षित भी हम, शिक्षक भी हम
डॉक्टर भी हम, साइंटिस्ट्स भी हम
प्रोफेसर भी हम, लेक्चरर भी हम
क्या करें मजबूर हैं हम,
गर्व से कहो मजदूर हैं हम !
लेकिन क्या कभी सोचा है किसी ने कि पढ़-लिखकर, डिग्रियाँ बटोरकर भी मजदूर ही क्यों बनना पड़ा, मालिक क्यों नहीं बन पाये ?
कभी समय मिले तो गणित लगाइए कि अपनी कमाई का कितना प्रतिशत आप माफियाओं के गिरोह यानि सरकार, बाजार, अस्पताल, स्कूल, कोलेज्स और फार्मा कंपनियों को देते हैं ?
जो बचता है उसमें से भी अधिकांश आप बैंकों में जमा कर देते हैं, ताकि अदानी, अंबानी, माल्या, नीरव, चौकसी जैसे गरीबों का लालन पालन हो सके, 20 लाख रुपए प्रति व्यक्ति टिकट वाला गंगा क्रूज चलाया जा सके।
तो कुल मिलाकर कितना बचा आपके हाथ यह कहने के लिए कि पैसा तो हाथ का मैल है….खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है ?
फिर कल्पना करिए कोल्हू के बैल का जीवन कैसा होता है ?
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
