3rd Dimension या स्वप्नलोक ?

सात आसमान सुना ही होगा ?
यम-लोक, ब्रह्म-लोक, पर-लोक, स्वप्न-लोक, पाताल-लोक, इंद्र-लोक… सुना होगा ?
बहु-आयामी यानि #multidimensional भी सुना होगा आपने ?
फिर यह भी सुना होगा कि अन्तरिक्ष यात्री किसी अन्य ग्रह से आते हैं ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सब स्वप्नलोक में हैं। यहाँ कुछ भी सच नहीं है। महँगाई, एफडीआई, भ्रष्टाचार, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक, अपराध, देशद्रोह जैसा कुछ नहीं होता।।
सबकुछ इस बात पर निर्भर करता है कि सत्ता अपनी पार्टी की है या विरोधी पार्टी की है।
महँगाई, एफडीआई कभी डायन दिखाई देती है, तो कभी विकास की मौसी दिखाई देने लगती है। कभी 350/- रुपए की रसोई-गैस खरीदने की भी औकात नहीं होती, फिर अचानक अच्छे दिन आ जाते हैं और 20 लाख रुपए का टिकट लेकर गंगा विलास क्रूज़ पर बैठ गंगा नदी की सैर करने निकल पड़ते हैं।
शायद इसीलिए ही कहा गया है:
“जगत मिथ्या है, पैसा हाथ का मैल है
कब तक हाथ मलता रहेगा
माफियाओं लुटेरों से हाथ मिला ले
पूरी दुनिया लुटने के लिए बैठी है
सरकारी लूट है, लूट सके तो लूट !
बाकी सब मोह-माया है, खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है !
केवल नजरिया बदलना होता है, और सबकुछ बदल जाता है। जो पाप दिखाई दे रहा होता है, वही पुण्य दिखने लगता है। केवल पार्टी बदलनी होती है और सारी मान्यता और विचारधारा बदल जाती है और महंगाई, एफडीआई डायन से विकास की मौसी दिखाई देने लगती है।
यह सब केवल स्वप्न में ही संभव हो सकता है वास्तविकता में क्या ऐसा हो पाना संभव है ?
अब प्रश्न यह उठता है कि कैसे पता चले कि वास्तविकता क्या है ? क्योंकि स्वप्नलोक में तो सबकुछ वास्तविक ही दिखाई दे रहा होता है ?
तो वास्तविकता को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि हम अभी स्वप्नलोक में हैं और स्वप्नलोक से बाहर निकले बिना सत्य या वास्तविकता को नहीं समझ पायेंगे।
कहते हैं लोग कि अभी हम 3rd Dimension में हैं। और ज्ञात डाइमैन्शन 9 हैं। तो 6 डाइमैन्शन यानि 6 आयाम या लोक ऊपर उठना होगा।
माना जाता है कि लाखों यहूदियों को गैस चेम्बर में मारने का प्लान बनाने वाला अधिकारी Heinrich Himmler था। और यह 7th Dimension से आया था।

Heinrich Himmler, (born October 7, 1900, Munich, Germany—died May 23, 1945, Lüneburg, Germany), German Nazi politician, police administrator, and military commander who became the second most powerful man in the Third Reich.
क्या आपने टर्मिनेटर-II फिल्म देखी है, जिसमें दो महामानव किसी अन्य ग्रह से आते हैं लेकिन एक दूसरे के शत्रु होते हैं ? एक पृथ्वी को नष्ट करना चाहता है और दूसरा बचाना चाहता है।
यदि हम पूरी सृष्टि को एक फिल्म की तरह देखें, तो पाएंगे कि यहाँ कुछ भी नैतिक नहीं, कुछ भी अनैतिक नहीं है। कुछ भी पाप नहीं, कुछ भी पुण्य नहीं। सभी अपना अपना रोल निभा रहे हैं और जो अपने रोल को सर्वश्रेष्ठ निभा जाता है, उसका नाम अमर हो जाता है। फिर वह हिटलर हो, हीमलर हो, फील्ड मार्शल रोमेल हो, महात्मा गाँधी हो, गोडसे हो, ओसामा हो या ओबामा हो।
एक ही साथ दो शक्तियाँ और उन शक्तियों के सहयोगी पृथ्वी पर उतरते हैं अपना अपना रोल निभाने, बिलकुल वैसे ही, जैसे किसी फिल्म में हीरो और विलेन उतरते हैं। और दोनों के पास अपने अपने सहयोगी, समर्थक होते हैं। दोनों के ही पास परिवार होता है और दोनों के ही परिवार के लोग उन्हें बहुत प्रेम करते हैं।
आपने देखा होगा सभी बड़े संगठन, संस्था अपनी योजनाएँ कुछ विशेष अधिकारियों तक ही सीमित रखती हैं, नीचे लेवल के स्टाफ से कोई विचार विमर्श नहीं करती।
और दुनिया में जो भी सफल संस्थाएं हैं, वे ऐसा ही करती हैं।
कभी सोचा है आपने कि क्यों ?
क्योंकि दुनिया में दो शक्तियाँ हैं नकारात्मक और सकारात्मक। सकारात्मक शक्तियाँ वे शक्तियाँ हैं, जो किसी विचार या उद्देश्य को आगे बढ़ाने में योगदान देती हैं। जबकि नकारात्मक शक्तियाँ उन विचारों और उद्देश्यों के ठीक विपरीत कार्य करती हैं।
विशुद्ध चैतन्य
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