भारत की पराधीनता का प्रमुख कारण क्या है ?

यदि कोई मुझसे पूछे कि भारत की पराधीनता का प्रमुख कारण क्या है ?
तो मेरा उत्तर होगा अहंकार मुक्त साधु-संतों की अहंकार मुक्त शिक्षाओं और स्वार्थपूर्ण भक्ति में डूबी जनता प्रमुख कारण है।
यदि पूछा जाये मुझसे कि शिक्षित होने के बाद भी युवा वर्ग अपने देश को पराधीनता से मुक्त क्यों नहीं कर पा रहे ?
तो मेरा उत्तर होगा: क्योंकि युवावर्ग शिक्षा ही पराधीनता की प्राप्त करता है। इसीलिए वह डिग्रियाँ बटोरने के बाद स्वयं को खोजने की बजाय मालिक को खोजने निकल पड़ता है।
अब स्वाभाविक है आप कहेंगे कि क्या मूर्खता पूर्ण उत्तर दे रहे हो ?
आप कहेंगे कि साधु-संतों ने हमें ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया, जीवन विद्या सिखाई, भजन, कीर्तन, पूजा पाठ सिखाया, धर्म का मार्ग दिखाया। तो उनकी शिक्षाएं पराधीनता का कारक कैसे हो गयी ?
आप कहेंगे कि आप स्वयं अनपढ़ हो, इसलिए डिग्रीधरियों और उनकी सफलताओं से जलते हो। ये आधुनिक तकनीकी और जीवन उन्नत जीवन शैली पढ़े-लिखों ने ही दी है। आप कहेंगे कि आज विश्व प्रगति कर रहा है, तो पढ़े-लिखों के कारण ही कर रहा है।
और आप ऐसा इसलिए कहेंगे, क्योंकि आपकी आंखो पर रंगीन चश्मा चढ़ा हुआ है। आप वह नहीं देख पा रहे, जो मैं और मेरे जैसे जागरूक लोग देख पा रहे हैं।
चैतन्य या जागृत होने का अर्थ लोग यह लगाते हैं कि किसी व्यक्ति के पास कोई स्पेशल शक्ति आ गयी। यदि स्पेशल या चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त कर लेने मात्र से कोई चैतन्य या जागृत हो जाता, तो सभी जादूगर और तांत्रिक हो जाने चाहिए थे चैतन्य और जागृत ?
दुनिया में जितने भी जादूगर, तांत्रिक या साधु-संतों के पास चमत्कारिक शक्तियाँ हैं, वे सभी अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी आजीविका कमाने के लिए करते हैं, न कि जनता के कल्याण के लिए।
और जब आजीविका कमाने की आती है, तो क्या डॉक्टर, क्या साइंटिस्ट्स, क्या चायवाला, क्या पकोड़े वाला, क्या बाबा, क्या गुरु…..सभी मुनाफे पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। किसी को चिंता नहीं कि उनके कार्यों से किसी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है, या किसी का जीवन ही बर्बाद हो जा रहा है।
समाज का कोई आस्तित्व नहीं केवल भ्रम मात्र है
जब यह प्रमाणित हो ही चुका है, कि समाज का कोई आस्तित्व नहीं केवल भ्रम मात्र है, तो समाज को ढोने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। समाज को ढोना बिलकुल वैसा ही, जैसे भूत-प्रेतों को ढोना।
जितने भी चमत्कारी और रिद्धी-सिद्धि प्राप्त बाबा, तांत्रिक और साधु-संत हैं, वे सभी प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर दुबक गए थे। इससे प्रमाणित हो जाता है कि उनके पास जो शक्तियाँ हैं, वह भी केवल कायरों, लोभियों, स्वार्थियों भेड़ों, बत्तखों और तमाशा देखने वालों की भीड़ इकट्ठी करने के लिए ही हैं, इससे अधिक और कोई उपयोग नहीं उनकी दैवीय शक्तियों का।
जिन्होंने शक्तियाँ अर्जित की लेकिन कभी प्रदर्शन नहीं किया, उन्होंने ही समाज को कुछ नवीन चेतना देने का प्रयास किया। यह और बात है कि समाज को उनके द्वारा दी गयी चेतनाओं से कोई मतलब नहीं। समाज को तो केवल जय-जय करने का बहाना चाहिए होता है। इसीलिए समाज किसी न किसी को पकड़ लेता है, जिसकी प्रतिमा बनाकर वह स्तुति-वंदन कर सके।
चैतन्य व्यक्तियों को हमेशा अकेले ही चलना पड़ता है
जो चैतन्य हो जाएगा, वह फिर किसी दड़बे का सदस्य नहीं रह पाएगा। जो चैतन्य हो जाएगा, वह भेड़चाल में नहीं चल पाएगा और ना ही भीड़ के पीछे चल पाएगा। चैतन्य व्यक्तियों के साथ उसका अपना परिवार भी नहीं चल पाता, इसलिए चैतन्य व्यक्तियों को हमेशा अकेले ही चलना पड़ता है।
यदि आप अकेले हो गए हैं, तो फिर भीड़ को मत खोजिए। अकेले ही जीने की आदत डालिए। और यदि भीड़ खोज रहे हैं, तो फिर अभी आप चैतन्य नहीं हुए हैं, केवल अपनी गलतियों और स्वभाव के कारण ही अकेले हुए हुए हैं। जैसे कि कुछ लोगों का व्यवहार ही ऐसा होता है कि लोग उससे दूर ही रहना पसंद करते हैं। कुछ लोग अपनी पत्नी से बहुत अधिक मार-पीट करते हैं, जिसके कारण पत्नी तलाक ले लेती है। तो ऐसे लोगों को चैतन्य या जागृत नहीं मानसिक रोगी कह सकते हैं।

दूसरी बात चैतन्य व्यक्ति का कार्य होता है समाज को जागृत करना। अब चूंकि यह सिद्ध हो चुका है कि शहरों से ही नहीं, अधिकांश गांवों से भी समाज लुप्त हो चुका है, तो चैतन्य व्यक्ति किसी समाज को जागृत नहीं कर सकता। फिर वह अपना अलग समाज बनाता है, लेकिन वह समाज भी भेड़ों, बत्तखों की भीड़ मात्र बनकर केवल स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन करने तक ही सीमित रह जाता है।
सारे धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं, साधु-संतों, कथावाचकों ने ऐसी ही भीड़ का सृजन किया चमत्कार, जादूगरी और तमाशा दिखा-दिखाकर।
कभी किसी भी चमत्कारी बाबा के दरबार में जाइए, वहाँ इकट्ठी हुई भीड़ का मनोविज्ञान समझने का प्रयास करिए। आप पाएंगे कि वहाँ खड़ी भीड़ उन लोगों की है जो भयभीत हैं, कायर हैं, स्वार्थी हैं, लोभी हैं और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीने के सिद्धान्त पर जीने वालों की है। ऐसी भीड़ को कोई मतलब नहीं देश की समस्याओं से, इन्हें कोई मतलब नहीं लुटते-पिटते और बर्बाद होते देश से, इन्हें कोई मतलब नहीं माफियाओं द्वारा खदेड़े जा रहे ग्रामीणों और आदिवासियों के दुखों से। इन्हें केवल अपना स्वार्थ और अपने सुखों से मतलब होता है।
भीड़ इकट्ठी करने वाले बाबाओं को भी को भी ना तो देश से कोई लेना देना, न ही लुटती-पिटती जनता से। इन्हें केवल अपनी तिजोरी भरने से मतलब होता है। इन्हें मतलब होता है बढ़ती हुई भीड़ और जयकारा लगाने वाले भक्तों से। इसीलिए ही कहा मैंने कि देश को पराधीन बनाने में बाबाओं, साधू-संतों, धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं का बहुत बड़ा योगदान रहा। इन्होंने कायरों, स्वार्थियों, लोभियों की ऐसी भीड़ का सृजन किया कि आज तक देश माफियाओं की दासता से मुक्त नहीं हो पाया।
क्या पढ़ा-लिखा व्यक्ति समझदार हो जाता है ?
बहुत नारा लगता है, जगह जगह विज्ञापन लगे दिखते हैं कि पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। लेकिन क्या वास्तवमें पढ़ा-लिखा व्यक्ति समझदार हो जाता है ?
प्रायोजित महामारी काल में प्रमाणित हो गया कि किसी भी तीर्थ, मंदिर और धार्मिक स्थल में कोई दैवीय शक्ति नहीं है, किसी भी चमत्कारी बाबा और साधु-संत के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जिससे फर्जी महामारी के आतंक से देश को बचा पाये। ठीक वैसे ही प्रमाणित हो गया कि पढ़ा-लिखा व्यक्ति आईएएस, आईपीएस ही क्यों न हो, दिमाग से पैदल और माफियाओं का गुलाम ही होता है।
ये पढ़े-लिखे लोग ही थे, जिन्होंने फर्जी महामारी का आतंक फैला पूरे विश्व की जनता को बंधक बनाकर लूटा, लुटवाया और सामूहिक बलात्कार किया सुरक्षा के नाम पर। ये पढ़े-लिखे लोग ही हैं, जो माफियाओं की गुलामी करके स्वयं को धन्य समझते हैं और अपने ही देश को लूटने और लुटवाने में उनके सहयोगी बनते हैं।
क्या आप जानते हैं विदेशों में आप बिना डॉक्टर की पर्ची के सरदर्द की दवा भी नहीं ले सकते ?
और डॉक्टर के पास जाओ पर्ची बनवाने या कोई भी टेस्ट करवाने, तो सबसे पहले पीसीआर टेस्ट करते हैं और यदि पेशेंट ने वैक्सीन नहीं लिया है और लेने से इंकार करता है, तो पुलिस को बुलवा लेता है डॉक्टर और जबर्दस्ती वैक्सीन दिया जाता है। मानो वह मानव नहीं, पशु हो।
मानवाधिकार का खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन सरकारें बेशर्मी से कोर्ट में जाकर कह देती हैं कि हमने किसी से कोई जबर्दस्ती नहीं की, सभी अपनी मर्जी से वैक्सीन ले रहे हैं।
अब कोर्ट में बैठा जज, वकील, और मीडिया क्या इतने अनपढ़, गंवार हैं कि उन्हें नहीं पता कि सरकारें झूठ बोल रही हैं ?
नहीं वे अनपढ़, गंवार नहीं पढ़े-लिखे विद्वान हैं, इसीलिए उनकी अक्ल घास चरने चली जाती है।
ऐसे ही पढ़े-लिखों ने देश को पराधीन बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
इसीलिए ही कहता हूँ कि साधु-संतों, धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं समेत इन पढ़े-लिखे विद्वानों की प्रमुख भूमिका रही देश को पराधीन बनाने में और आज भी ये सब मिलकर देश की जनता को मानव नहीं पालतू मवेशियों में ही रूपांतरित कर रहे हैं।
दुर्भाग्य तो यह है कि अब हम समझाएँ तो समझाएँ किसे, जब जनता ने स्वयं ही स्वीकार लिया है कि उनका जन्म मानव बनने के लिए नहीं, ज़ोम्बी, भक्त और पालतू मवेशी बनने के लिए हुआ है !!!
~ विशुद्ध चैतन्य
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