क्रोध विहीन व्यक्ति बुद्ध बन सकता है या फिर माफियाओं का गुलाम

कहते हैं उन्हीं साधु संतों, ज्ञानियों को क्रोध आता है, जिनका ज्ञान अधूरा हो।
और दुनिया में ऐसा कोई कभी पैदा हुआ नहीं, जिसका ज्ञान पूरा हो चुका, जिसके पास जानने के लिए और कुछ ना बचा हो।
कहते हैं महर्षि रमण के पास एक पंडित पहुंच गया शास्त्रार्थ करने। रमण बोले ये सब व्यर्थ प्रलाप है, ध्यान करो। लेकिन पंडित शास्त्रार्थ पर अड़ा रहा।
रमण उससे बार-बार कहते रहे कि शास्त्रार्थ से कोई लाभ नहीं होने वाला, ध्यान करो। लेकिन पंडित भी जिद्दी था अड़ा रहा। तो रमण ने अपना डंडा उठाया और लपके पंडित की ओर।
पंडित तो सपने में नहीं सोच सकता था कि रमण को कभी गुस्सा सकता है। यह सामान्य धारणा है कि जो भी साधु संन्यासी दिखे उसे जाकर परेशान करो, पत्थर मारो, गाली गलौज करो, या फिर अपमानित करने का हर संभव प्रयास करो। यदि क्रोध आ गया तो ज्ञान अधूरा है और नहीं आया तो उसकी प्रतिमा बनाकर अपना धंधा जमा लो।
तो पंडित भागा और रमण उसके पीछे दौड़े। रमण के शिष्य भी आश्चर्य चकित कि रमण को क्रोध आ गया, यानी अब रमण की दिव्यता समाप्त हो गई। तो उन्होंने पूछा रमण से कि आप को क्रोध करते कभी देखा नहीं, लेकिन आज इतना क्रोध कि शास्त्रों के प्रकांड विद्वान पंडित को दौड़ा दिया ?
रमण ठहाका लगाकर हंस पड़े और कहा, “लातों के भूत, बातों से नहीं भागते।”
तो दूसरों को गौतम बुद्ध या महावीर बनाने के बजाय, स्वयं बन जाओ और कम से कम मेरे पोस्ट पर दिमागी दिवालियापन का प्रदर्शन मत करो। लेख समझ में आते हैं तो ठीक, नहीं तो विदा ले लीजिए। अपना कीमती समय नष्ट मत करिए मुझे समझने और पालतू बनाने में।
मुझे तो मेरा अपना परिवार नहीं समझ पाया, मुझे तो वे भी नहीं समझ पाए, जो दशकों से मेरे साथ पले बढ़े, तो आप समझ जाएंगे चार लेख पढ़कर ?
और फिर मैं गौतम बुद्ध या महावीर की कार्बन कॉपी बनने के लिए जन्म लिया भी नहीं है। क्रोध, अहंकार और तन्हाई के साथ ही जन्म लिया है और मरते दम तक यही मेरे साथी रहेंगे।
सुख के साथी तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन दुख के साथी यही होते हैं।
जब मेरे अपनों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया था, तब यही मेरे साथ थे। जब कोई मेरे साथ नहीं होता, तब भी यही मेरे साथ होते हैं। अब आप ही बताइए ऐसे वफादार साथियों को भला कौन त्यागना चाहेगा ?
और जब महादेव भोलेनाथ को क्रोध आ सकता है, श्री कृष्ण को क्रोध आ सकता है, तो फिर मैं तो साधारण संन्यासी मात्र हूँ।
मैं तो अभी उतना भी ऊपर नहीं उठ पाया जितना देश के राजनेता, धर्म व जातियों के ठेकेदार उठ चुके हैं, देश की जनता उठ चुकी है कि अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण देखकर भी क्रोध नहीं आता। अपने ही देश की जनता को फर्जी महामारी का आतंक फैलाकर, बंधक बनाकर लूटने, लुटवाने और बलात्कार करने वालों पर क्रोध नहीं आता।
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