धारणाएँ अस्थाई होती हैं और पुरानी टूटती है, नई बनती हैं
प्राचीन काल में धारणा थी कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगाता है। ज्योतिष शास्त्र आज भी इसी सिद्धान्त पर भविष्य बताता है।
लेकिन फिर एक दिन किसी सरफिरे ने धारणा बदलने का प्रयास किया, जिसके कारण सौरमण्डल के रक्षकों ने उसे मौत की सजा सुना दी।
प्राचीन काल में धारणा थी कि पृथ्वी चपटी है। फिर किसी सरफिरे ने पृथ्वी को गोल करके धारणा बदल दी। लेकिन आज भी बहुत से लोग यही मानते हैं कि पृथ्वी चपटी है।
प्राचीन काल में धारणा थी कि इन्टरनेट सेटेलाइट के द्वारा एक देश से दूसरे देश तक पहुंचता है। फिर पता चला कि सागर में बिछी फाइबर ओप्टिक केबल के द्वारा पहुँचता है।
प्राचीन काल में धारणा थी कि जैविक कृषि स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। लेकिन फिर किसी सरफिरे ने हरितक्रान्ति लाकर धारणा बदल दी और सारी दुनिया खुशी-खुशी कैमिकल युक्त कृषि करके अमीर और बीमार होने लगे। लेकिन बहुत से लोग आज भी जैविक कृषि को महत्व देते हैं।
आज लोग फिर वापस लौट रहे हैं और कैमिकल युक्त भोजन की बजाय जैविक कृषि द्वारा उत्पादित भोजन करके अस्पताल, डॉक्टर और औषधियों के बिलों में कटौती कर रहे हैं।
सोचता हूँ कि कल यदि पता चले कि जिन नौ ग्रहों की बातें की जाती हैं, वे सब धरती के ही कुछ क्षेत्रों के नाम हों, तब क्या होगा ?
यदि पता चले कि जिस मंगल ग्रह की तस्वीरें हमें दिखाई जाती हैं, वह किसी ऐसे क्षेत्र की हो, जहां की मिट्टी लाल होती हो ?
ऐसा इसलिए सोच रहा हूँ कि बहुत सी पुरानी धारणाएं टूटी हैं मेरी। जैसे कि पहले मैं मानता था कि जो पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास, भजन-कीर्तन करते हैं, वे धार्मिक और आध्यात्मिक लोग होते हैं। लेकिन प्रायोजित महामारी काल में यह धारणा टूट गयी।
पहले मैं मानता था कि राजनैतिक पार्टियाँ, धार्मिक/आध्यात्मिक संगठन व संस्थाएं, सरकारें आदि देश व जनता के हितैषी होते हैं। लेकिन यह धारणा भी प्रायोजित महामारी काल में टूट गया और प्रमाणित हुआ कि ये सब माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के गुलाम होते हैं।
पहले मैं मानता था कि अस्पताल, डॉक्टर, साधु-संत, वैज्ञानिक, धार्मिक/आध्यात्मिक गुरु आदि सब जनता के हितों के लिए कार्य करते हैं। प्रायोजित महामारी काल में जाना कि ये सब माफियाओं के हितों के लिए कार्य करते हैं और उन्हीं के गुलाम हैं।
और जब इतने सारे भ्रम टूटे, तो हो सकता है एक दिन यह भ्रम भी टूट जाये कि चाँद या मंगल पर कभी कोई इंसान या अन्तरिक्ष यान गया है। हो सकता है ये सब पृथ्वी के ही किसी क्षेत्र में जाते हों ?
क्योंकि पृथ्वी पर मंगल से लेकर प्लूटो तक का पर्यावरण देखने मिल जाता है। कहीं बहुत गर्मी है, तो कहीं बर्फ ही बर्फ है। कहीं कई दिनों तक सूरज नहीं निकलता, तो कहीं कई दिनों तक सूरज नहीं डूबता।
तो धारणाएँ अस्थाई होती हैं और पुरानी टूटती है, नई बनती हैं। इसीलिए धारणाओं को धर्म नहीं माना जा सकता।