क्या भीड़ किसी विचार, सिद्धान्त या व्यक्ति के साथ होती है ?

बहुत से लोगों की, विशेषकर सड़क-छाप दबंगों और नेताओं की आदत होती है भीड़ से घिरे रहने की। भीड़ को वे लोग अपना शुभचिंतक, हितैषी और स्वयं को उनका मसीहा बताते हैं।
लेकिन क्या भीड़ वास्तव में किसी विचार, सिद्धान्त या व्यक्ति के साथ होती है ?
नहीं भीड़ केवल स्वार्थ और लोभ के साथ होती है। उसका स्वार्थ जिधर से सिद्ध हो जाये, उसी तरफ हो जाती है। बिलकुल भेड़ों व अन्य पालतू मवेशियों की तरह।
भीड़ हमेशा ताकतवर के पक्ष में रहेगी, फिर चाहे वह कौरव हो, चाहे हिटलर हो, चाहे मुसोलिनी हो, चाहे स्टालिन हो, चाहे तड़ीपार हो, चाहे जुमलेबाज हो, चाहे दंगाई और हत्यारा हो….भीड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता। भीड़ को नैतिक, अनैतिक से भी कोई मतलब नहीं रहता।
भीड़ नेताओं, अभिनेताओं के पीछे इसलिए नहीं दौड़ती कि वे देशभक्त होते हैं, जनता के हितैषी और सहयोगी होते हैं। बल्कि इसलिए दौड़ती है क्योंकि वे भरपूर मनोरंजन करते हैं और भीड़ को मनोरंजन चाहिए, भीड़ को रोमांच चाहिए।
भीड़ के पास स्वयं की कोई विवेक बुद्धि नहीं होती, इसीलिए जब नेता उन्हें बताता है कि महंगाई और एफडीआई डायन है, तो सड़कों पर लोटने लगती है हाय-हाय करके। लेकिन जब वही नेता बताता है कि महंगाई और एफडीआई अब डायन नहीं, विकास की मौसी बन गयी है, तो भीड़ सड़कों पर थाली-ताली और बर्तन बजाकर नाचने लगती है होय-होय करके।
और जो समझते हैं कि भीड़ के दम पर वे कुछ बड़ा परिवर्तन कर लेंगे, तो उन बड़े-बड़े संगठनों, संप्रदायों, पंथों, सरकारों पर एक नजर डाल लेना चाहिए उन्हें, जिनके पीछे लाखों, करोड़ों की संख्या में भीड़ खड़ी रहती है। क्या उनमें साहस है देश व जनता के लुटेरों का विरोध करने का ? क्या उनमें साहस है अन्याय, अत्याचार, शोषण, जनता का सामूहिक बलात्कार और माफियाओं के आतंक का विरोध करने का ?
नहीं वे भेड़ों और चूहों की भीड़ से अधिक और कुछ नहीं है। सीबीआई, ईडी, पुलिस, आरएसएस, कॉंग्रेस, भाजपा, हिन्दू, इस्लाम जैसे बड़े-बड़े ताकतवर संगठन, पंथ और संस्थाओं तक की हिम्मत नहीं होती जिन माफियाओं और लुटेरों के विरुद्ध मुँह खोलने की, उनकी लंका लगा देता है एक अकेला व्यक्ति #Nathan_Anderson केवल दस कर्मचारियों के दम पर।
सभी प्रकार के सुख-सुविधाओं और तकनीकी से लैस सीबीआई, ईडी जैसी बड़ी-बड़ी सरकारी संस्थाएं केवल चिंदी चोरों का ही शिकार कर पाती हैं और बाकी सभी जपनाम, भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करके हिन्दू-मुस्लिम खेलकर, किसी कार्टूनिस्ट, किसी व्यक्ति, किसी फिल्म का विरोध करके, ईशनिन्दा/बेअदबी के नाम पर मोबलिंचिंग, आगजनी करके मान लेते हैं कि यही धर्म है और हम धार्मिक लोग हैं।
ये वही भीड़ है जो व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति के लिए माफियाओं और लुटेरों के शेयर खरीदकर अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों का सहयोग करती है।
इसीलिए कभी भी भीड़ के दम पर मत इतराइए। मत कहिए कभी भी कि मेरे साथ इतनी बड़ी भीड़ है। भीड़ का ईमान-धर्म सिवाय स्वार्थ और मनोरंजन के और कुछ नहीं। 5 किलो राशन, एक बोतल दारू और फ्री की बिजली पानी के लालच में भीड़ कब पाला बदल ले, कोई नहीं जानता।
समझदार लोग भीड़ नहीं, सहयोगियों को साथ रखते हैं। लेकिन सहयोगी भी सौभाग्यशाली लोगों को ही मिलते हैं। अधिकांश के साथ तो स्वार्थियों और लोभियों की भीड़ खड़ी मिलती है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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