गौतम बुद्ध हिंसा के प्रति पक्षपाती थे

कोई एक व्यक्ति किसी का आदर्श केवल इसलिए हो जाता है, क्योंकि वह स्वयं भीतर से आदर्श व्यक्ति का कुछ गुणधर्म लेकर चलता है। अंगुलिमाल भले ही सब के लिए खतरा रहा हो, लेकिन बुद्ध से मिलने के बाद पहली बार उसका स्वयं से साक्षात्कार हुआ और वह अपने सही रास्ते पर आ गया।
इसी प्रकार शाहरुख़ और दाउद दोनों के ही आदर्श हैं अमिताभ बच्चन और दोनों ही उनकी एक फिल्म डॉन से सर्वाधिक प्रभावित थे। एक डॉन बन गया और दूसरा अभिनेता बन गया। तो आदर्श तो एक ही व्यक्ति था, फिल्म भी एक ही दोनों को सबसे अधिक पसंद थी, लेकिन उसी आदर्श व्यक्ति से दो लोगों ने वही मार्ग चुना जो उन्हें सही लगा।
गौतम बुद्ध प्रतिमाएं ऐसी शांत व सौम्य बनायी जाती हैं कि देखकर ही मन शान्त हो जाता है। बाकि सभी महान आत्माओं ने लगभग एक जैसी ही सीख या शिक्षा दी है समाज को। लेकिन गौतम बुद्ध आंशिक हिंसा विरोधी थे। इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि गौतम बुद्ध हिंसा के प्रति पक्षपाती थे।
इसलिए मैं उनका भी पूरा समर्थन नहीं करता। हिंसा दूसरों पर न करो, किसी निर्दोष को मत सताओ…यहाँ तक सब ठीक है, लेकिन फिर हिंसा स्वयं पर होने देना भी हिंसा का समर्थन है।
मैं गौतम बुद्ध के शिष्य बोधिधर्मन को पूर्ण आदर्श मान सकता हूँ। क्योंकि उसने हिंसा के विरुद्ध ही शिक्षा दी अपने शिष्यों को मार्शल आर्ट्स सिखा कर। उनका कहना था कि यदि तुम आत्मरक्षा में असमर्थ हो, तो अहिंसक नहीं हो सकते। खरगोश यदि अहिंसक है, तो उसकी विवशता है, लेकिन उसके अहिंसक हो जाने से दूसरे उसपर हिंसा करना नहीं छोड़ देंगे।
सारांश यह कि कोई भी एक व्यक्ति किसी का आदर्श नहीं हो सकता यदि उसे पूर्णता को प्राप्त करना है। और पूर्णता तभी प्राप्त होगी, जब व्यक्ति समृद्ध व समर्थ होगा आध्यत्मिक व भौतिक रूप से।
जीवन भर अहिंसा के नाम पर दूसरों से पिटने के बाद मिली मौत और उसके बाद लोग अहिंसा का पुजारी समझकर पूजने लगें, प्रतिमाएं बनायें….ऐसी महानता से बेहतर है जीवन भर बदनाम रहो। क्योंकि मरने के बाद आपके शरीर के साथ, आपके नाम के साथ दुनिया क्या करती है, उससे कोई लेना देना नहीं रहेगा। जीते जी जिस दुनिया में दुःख व तकलीफ उठाये, उस दुनिया में लोग मरने के बाद जयजयकार करें..तो कोई लाभ नहीं।
वैसे भी जितने लोग पूरा जीवन दुःख में काटे, दुनिया भर से पिटते रहे, गालियाँ खाते रहे, उनसे कोई बड़ा परिवर्तन तो आया नहीं। अत्याचारी, अपराधी, शोषक आज भी संख्या अनुपात में उतने ही हैं, जितने उनके ज़माने में रहे होंगे। आज भी मुट्ठी भर अराजक तत्व, गुण्डे मवाली उत्पात मचाये फिरते हैं। आज भी मंदिरों, मस्जिदों में प्रार्थना कर रहे लोगों पर बम और बारूद फेंके जाते हैं। यही सब रामायण काल में भी था, महाभारत काल में भी था, बुद्ध और महावीर काल में भी था।
तो बदलता कुछ नहीं, केवल स्वयं के अंत प्रेरणा से जो निकल गया वही सही है, फिर वह दाउद बने, मोदी बने, शाहरुख बने, तोगड़िया बने, साक्षी-प्राची बने, हाफिज़ सईद बने…दुनिया जयजयकार ही करेगी। बाकि मरने के बाद लोग गालियाँ दें उनकी सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला…ज़िन्दगी तो शान से कट ही गयी। कम से गौतम बुद्ध बनने के चक्कर में ज़िन्दगी भर भुखमरी तो नहीं काटनी ऐसे लोगों को।
~ विशुद्ध चैतन्य
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