दड़बा बदल लेने से प्रवृति नहीं बदल जाती
माफियाओं की गुलाम सरकारों की चाकरी करो, आरक्षण प्राप्त करो, मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करो, राजनैतिक पार्टियों की भक्ति करो, देश व जनता के लुटेरों और माफियाओं के चरणों में नतमस्तक रहो का सिद्धान्त सही है या अपना दीपक आप बनो का सिद्धान्त सही है ?
क्या शूद्रों (वेतन-भोगियों) का जीवन जीने वाला व्यक्ति अपना दीपक आप बन सकता है ?
नहीं…कभी नहीं !
क्योंकि वेतनभोगी व्यक्ति आदेशों और मालिकों का गुलाम होता है। उसे निर्णय तो क्या, स्वतंत्र चिंतन करने का भी अधिकार नहीं होता।
बहुत से लोग कहते हैं कि शूद्रों का शोषण होता था प्राचीन काल में, उन्हें शिक्षा अर्जित करने तक का अधिकार नहीं था, उनसे गुलामी कारवाई जाती थी……..तो आज क्या बदल गया ?
आज भी तो शूद्रों को शिक्षा अर्जित करने का अधिकार नहीं है, गोदी-मीडिया, फार्मा माफियाओं और गुलाम सरकारों द्वारा परोसी रही शिक्षा के नाम पर गुलामी ट्रेनिंग को ही शिक्षा मान जी रहे हैं पढे-लिखे डिग्रिधारी। बड़ी बड़ी डिग्रियाँ बटोरने के बाद भी आज तक शिक्षित नहीं हो पाये…..क्योंकि शूद्रों को शिक्षित होने का अधिकार ना कभी था, ना कभी रहेगा। और मिल भी गया तो कोई लाभ नहीं, क्योंकि शूद्र इतनी ही शिक्षा अर्जित कर सकता है, जिससे वह एक उच्च श्रेणी का शूद्र बन सके।
रही शूद्रों के शोषण और गुलामी की बात, तो आज भी शोषण और गुलामी वैसे ही हो रही है शूद्रों की, जैसे प्राचीन काल में हुआ करती है। विश्वास न हो तो सीबीआई, ईडी, आईटी, पुलिस, सेना, गोदीमीडिया, अस्पताल व अन्य सरकारी/गैर सरकारी संस्थानों पर नजर डाल लीजिये ! इन्हें तो अपने दुख व्यक्त करने तक का अधिकार नहीं है। केवल आदेशों का पालन करना है अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वाले माफियाओं, जुमलेबाजों और तड़ीपारों का।
अंतर केवल इतना ही पड़ा है, कि आधुनिक समाज में शूद्र और वैश्य सम्मानित हैं, और क्षत्रिय और ब्राह्मण निंदनीय। क्योंकि क्षत्रिय और ब्रह्मण विरोधी होते हैं माफियाओं, देशद्रोहियों और लुटेरों के और उन्हें गुलाम बनाया जा नहीं सकता।
जो ब्राह्मण और क्षत्रिय आपको नौकरी करते दिख रहे हैं शूद्र हैं, और जो पैसों के पीछे भागते दिख रहे हैं वे सभी वैश्य हैं कर्म, जाति और वर्ण से।
कई लोग सोचते हैं कि दड़बा बदल लेंगे यानि हिन्दू सम्प्रदाय त्याग कर किसी दूसरे सम्प्रदाय में चले जाएंगे तो प्राकृतिक स्वभाव अर्थात प्रवृति अर्थात वर्ण से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन ऐसा होता नहीं है। आप किसी भी दड़बे में चले जाएँ, यदि आपकी प्रवृति शूद्र की है, तो शूद्र ही रहेंगे। यदि आपकी प्रवृति, वैश्य की है, तो वैश्य ही रहेंगे।