जैविक कृषि-उत्पाद महँगे क्यों होते हैं ?

आजकल जैविक कृषि #Organic_Farming उत्पाद का बड़ा शोर है। विदेशों में तो जैविक कृषि #Organic_Farming उत्पाद का ऐसा क्रेज़ है कि स्टेट्स सिम्बल बन गया है। अब वहाँ गरीब लोग कैमिकल युक्त कृषि उत्पाद लेने के लिए विवश हैं, तो अमीर लोग जैविक कृषि उत्पाद लेना अपनी शान समझते हैं। वहाँ गरीब लोग मानते हैं कि जैविक कृषि उत्पाद वही लोग एफ़ोर्ड कर सकते हैं, जो आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं।
क्या सोचा है कभी कि जैविक कृषि उत्पाद महँगे क्यों होते हैं ?
नहीं सोचा होगा क्योंकि सोचने समझने की फुर्सत नहीं। बहुत से लोग यह मानते हैं कि जैविक कृषि अत्याधुनिक विज्ञान है, इसके लिए विदेशों से डिग्रियाँ लेनी पड़ती है, विदेशी मशीनें मंगवानी पड़ती होगी, विदेशों से खाद व विशेष रसायन मँगवाने पड़ते होंगे इसीलिए महँगे हैं ?
बहुत से लोग सोचते हैं कि जैविक कृषि करना बहुत महंगा पड़ता है, बहुत ही मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए महंगा है।
लेकिन सत्य तो यह है कि हरित क्रांति (Green Revolution) के आने से पहले समस्त विश्व में जैविक कृषि अर्थात परम्परिक कृषि का ही चलन था।
हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) द्वारा शुरू किया गया एक प्रयास था। इन्हें विश्व में ‘हरित क्रांति के जनक’ (Father of Green Revolution) के रूप में जाना जाता है।
हरित क्रांति के साथ ही प्राकृतिक कृषि अर्थात जैविक कृषि का अन्त हो गया और अप्राकृतिक कृषि से उत्पन्न अनाज, फल व सब्जियों की बाढ़ आ गयी। अब चूंकि कृषि उत्पाद ही अप्राकृतिक है, तो स्वाभाविक है कि वह प्राकृतिक ईश्वरीय व्यवस्था के विरुद्ध और पूँजीपतियों के हितों में था। परिणाम यह हुआ कि बीमारियों की बाढ़ आ गयी। ऐसी ऐसी बीमारियाँ आस्तित्व में आ गईं, जिनका कभी किसी ने नाम तक नहीं सुना था। भारत में तो बहुत सी बीमारियाँ ऐसी थीं, जो अमीरों की बीमारियाँ मानी जाती थीं, क्योंकि गरीबों को होती ही नहीं थी। क्योंकि गरीब प्राकृतिक कृषि से उत्पन्न अनाज ही खाता था सस्ता होने के कारण।
लेकिन फार्मा माफियाओं, पूँजीपतियों और सरकारों के गठबंधन ने बीमारों की सूची में अमीर और गरीब का भेद मिटा दिया। अब अमीरों की बीमारी गरीबों को भी होने लगी और गरीबों को अपने खेत, जमीन बेचकर इलाज करवाना पड़ रहा है, क्योंकि अब प्राकृतिक अर्थात जैविक कृषि से उत्पन्न अनाज, फल, सब्जियाँ, दूध, दही, घी, पनीर, मिठाई आदि सब महंगा हो गया और अप्राकृतिक कृषि से उत्पन्न अनाज सस्ता मिल रहा है।
अप्राकृतिक कृषि से उत्पाद अधिक मात्रा में होता है, लेकिन मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अप्राकृतिक कृषि से उत्पन्न खाद्यान्नों से केन्सर, हृदयरोग, मानसिक विक्षिप्तता, मधुमेह व अन्य कई बीमारियाँ होती हैं। इंसान को आजीवन अस्पताल और डॉक्टर के भरोसे रहना पड़ता है। अर्थात अप्राकृतिक कृषि से फार्मा उद्योग और चिकित्सा जगत को बहुत लाभ हुआ। यही कारण है कि आज डॉक्टर बनने के लिए बहुत ही महंगी पढ़ाई करनी पड़ती है। डॉक्टर की पढ़ाई महंगी इसलिए है, क्योंकि कमाई कई गुना है। एक बार कोई डॉक्टर के पास गया, तो समझो वह स्थायी ग्राहक हो गया। डॉक्टर की डिग्री पूरी हुई और कमाई शुरू। देखते ही देखते डॉक्टर के पास कार, कोठी, सम्मान सब आ जाएगा और उसके मरीज का घर, जमीन, खेत सब बिक जाएगा।
क्या जैविक कृषि (Organic Farming) बहुत महंगा और कठिन होता है ?
बिलकुल नहीं ! प्राकृतिक कृषि ना पहले कभी महंगा था, न आज महँगा। ना पहले कभी घाटे का सौदा था, ना आज घाटे का सौदा है।
वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण पूरे विश्व में बेहतर स्वास्थ्य व सुरक्षित भोजन की मांग में वृद्धि हुई है। भारत जैविक कृषकों की संख्या के मामले में प्रथम तथा जैविक कृषि क्षेत्रफल के मामले में 9वें स्थान पर है। सिक्किम पूरी तरह से जैविक कृषि अपनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। त्रिपुरा और उत्तराखंड राज्य भी इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में प्रयास कर कर रहे हैं।
जैविक कृषि (ऑर्गेनिक फार्मिंग) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों का अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग किया जाता है तथा जिसमें भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। जैविक कृषि में मिट्टी, पानी, जीवाणुओं और अपशिष्ट उत्पादों, वानिकी और कृषि जैसे प्राकृतिक तत्त्वों का एकीकरण शामिल है।
अब चूंकि लोग स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील हैं, तो जैविक कृषि उत्पाद के लिए मुँहमाँगी कीमत देने के लिए लोग तैयार हैं। लेकिन कोई भी इतना दिमाग लगाने के लिए तैयार नहीं कि जो कृषि तकनीक प्राचीन काल से चली आ रही थी, वही अब महंगी कैसे हो गयी ?
लोग समझ गए अब कि आधुनिकता की दौड़ में शामिल होकर ना केवल अपने शरीर को हानि पहुंचाई, बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी दुनियाभर की बीमारी सौंप रहे हैं विरासत में। तो जब जैविक कृषि उत्पादों की माँग बढ़ी, तो पूँजीपतियों यहाँ भी लूट-पाट का अवसर खोज निकाला। किसानों से बहुत ही सस्ते दर पर जैविक उत्पाद उठाते हैं, और कई गुना महंगे दामों में शहरों पर बेचते हैं।
दूसरा कारण है जैविक प्रमाणपत्र (Organic Certificate)। अब हर जैविक उत्पाद के लिए सर्टिफिकेट लेना पड़ता और सर्टिफिकेट के लिए महंगी फीस चुकानी पड़ती है। भारतवर्ष में सर्टिफिकेट अभी फ्री है जैसे कभी इनकमिंग कॉल और डेटा फ्री था। फिर भी जैविक उत्पाद (Organic Products) बहुत ही महँगा बेचा जाता है।
विदेशों में जैविक प्रमाणपत्र (Organic Certificate) बहुत महंगा है इसीलिए जैविक कृषि उत्पाद बहुत महंगे पड़ते हैं। विदेशों में अनाज मंडी होने के कारण भारतवर्ष में भी जैविक अनाज महंगी बेची जा रही। जिसके कारण एक गरीब वर्ग या गरीब कृषक खुद जैविक अनाज नहीं खा सकता बल्कि सिर्फ उगा सकता है और बेच सकता है क्योंकि पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है प्राणियों के जीवन और स्वास्थ्य में किसी की कोई रुचि नहीं।
सीधे शब्दों में कहें तो फार्मा माफिया और सरकारें मिलकर केवल लूटना-खसोटना चाहती हैं, ना कि समस्याओं को सुलझाना और महंगाई घटाना। आम नागरिक भी यही चाहते हैं क्योंकि उन्हें भी रातों-रात अमीर होना है, चाहे सारी मानव जाति ही लुप्त क्यों ना हो जाए।
यदि देश की जनता तय कर ले कि केवल जैविक कृषि उत्पाद को महत्व देंगे और किसानों से सीधे उत्पाद खरीदेंगे, तो निश्चित ही जैविक कृषि उत्पाद बहुत ही कम कीमत में उपलब्ध हो सकता है। साथ ही किसान भी आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे माफियाओं और सरकारों पर निर्भरता घटने के कारण।
अन्त में यही कहना चाहूँगा कि जैविक कृषि उत्पाद ही अपनाइए और जैविक कृषि करने वाले किसानों का न केवल मनोबल बढ़ाइए, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम और समृद्ध होने में सहयोग भी करिए।
~ विशुद्ध चैतन्य
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