आधुनिकता की होड़ ने इन्सानों को Zombies में रूपांतरित कर दिया

महात्मा गांधी ने कहा था; “Be the change, you wish to see in the world.”
अर्थात “वह परिवर्तन तुम स्वयं बनो, जो परिवर्तन चाहते हो विश्व में देखना।”
लेकिन मैं ऐसी मूर्खता नहीं करना चाहता, क्योंकि विश्व में परिवर्तन लाने का ताप उतर गया। पहले मैं भी विश्व को बदलना चाहता था, मैं भी सोचता था कि समाज सेवा करूंगा, देश की सेवा करूंगा। लेकिन 2014 में ऐसी महान दुर्घटना घटी, जिसने मेरा सारा भ्रम तोड़ दिया और सिखा दिया कि समाज और देश सिवाय भ्रम और अंधविश्वास के और कुछ नहीं।
विश्वभर के देशों में 2010 से महत्वपूर्ण सत्ता-परिवर्तन होने शुरू हुए और दिमाग से पैदल जुमलेबाजों को सत्ता मिलनी शुरू हुई। जो देश न बिकने दूंगा का नारा लगाकर सत्ता में आए, वे ही लोग देश की सार्वजनिक संपदाएँ, संस्थाएं नीलाम करना शुरू कर दिये। डायन महंगाई, एफडीआई का विरोध करते-करते डायन की उपाधि छीनकर विकास की मौसी बना दिये।
पहले मैं भौगोलिक क्षेत्र को देश मानता था, लेकिन 2014 के बाद ही ज्ञान प्राप्त हुआ कि सत्ता-पक्ष की पार्टी ही देश होती है और जो सत्ता पक्ष का चापलूस होता है वही देशभक्त होता है। जो अपने भोगोलिक क्षेत्रों को लूटने और लुटवाने में सहयोगी होता है, वही देशभक्त होता है। वरना देश और देशभक्ति जैसा कुछ होता ही नहीं क्योंकि खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है। यदि चैन से दुनिया में जीना है तो माफियाओं के इशारों पर थाली, ताली और बर्तन बजाना होगा, मुजरा करना होगा।
दुनिया जैसी थी वैसी ही आज भी है
महात्मा गाँधी ही नहीं, गौतम बुद्ध, महावीर, जीसस, ओशो…..और ना जाने कितने महान व्यक्तित्व आए दुनिया को सुधारने। और दुनिया को जैसा बनाना चाहते थे, वैसा स्वयं बने लेकिन दुनिया को नहीं बदल पाये।
गौतम बुद्ध ने कहा था, अपना दीपक आप बनो। लेकिन दुनिया दूसरों के दीपक के पीछे दौड़ती रही। गौतम बुद्ध ने कहा; “आप जैसे होते हैं, दुनिया में वैसी ही आवृत्ति प्रसारित करते हैं। हर कण में आप वैसी ही आवृत्ति जागृत भी करते हैं!” और बुद्ध के अनुयायी गौतम बुद्ध की आवृति से प्रभावित होकर अधर्मियों, अत्याचारियों, शोषकों का विरोध करने की बजाय भिक्षुक बन गए और भीख मांगने लगे।
महावीर चाहते थे कि दुनिया के लोग धन के मोह में ना पड़ें, निर्वस्त्र रहें, इसलिए स्वयं निर्वस्त्र हो गए। लेकिन जैन समाज पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि जैन समाज धन के पीछे भागने लगा, महंगे से महंगे परिधान पहनने लगा।
जीसस चाहते थे कि कोई युद्ध ही न हो इसलिए कहा, “यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर देना।” (लुका 6:29)

लेकिन इसाइयों का इतिहास देख लीजिये….पूरी दुनिया में लूटपाट किए, दूसरे देशों के नागरिकों को बंधक बनाया, गुलामी करवाई, आदिवासियों का शिकार किए, उनकी भू सम्पदा और स्त्रियाँ छीनी। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिरने पर अफगानिस्तान पर हमला कर दिया….यानि जीसस ने जो कुछ सिखाया उसका बिलकुल उलट किया, लेकिन सच्चे ईसाई होने कि अकड़ लिए घूमते हैं।
Remember the man speaking is a Christian Pastor and a PhD in Philosophy and others disciplines.
इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि दुनिया जैसी थी, वैसी ही है केवल नए-नए सम्प्रदाय और भेड़ों, ज़ोम्बियों के नए-नए झुण्ड बनते चले गए। और इसीलिए मैं दुनिया और समाज को बदलने के चक्कर में अब नहीं पड़ता, क्योंकि समझ चुका हूँ कि महान आत्माएँ जब दुनिया को नहीं बदल पायीं, तो भला मेरे जैसा सामान्य गरीब संन्यासी कैसे बदल लेगा दुनिया को ?
जैसे दिव्याङ्ग को विकलांग बना दिया गया, जैसे धर्म को सम्प्रदाय बना दिया गया…..ठीक इसी प्रकार आज पार्टी और नेता भक्ति ही देशभक्ति बन गयी। और जो वास्तविक देशभक्त होते हैं, उन्हें देशद्रोही कहा जाने लगा। आज अपने ही देश और आदिवासियों के हितों की बात करना देशद्रोह माना जाता है। अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों का विरोध करना देशद्रोह माना जाता है। क्योंकि समाज और जनता जितना लोभी और स्वार्थी पहले थी, उससे कई गुना अधिक लोभी और स्वार्थी आज हो चुकी है।
आज जनता को पता भी हो कि उनका चुना हुआ नेता, विधायक अपने ही देश को लूट और लुटवा रहा है, तब भी उसकी जय जय करेगी। आज परिवार को पता भी हो कि उनकी संतान या परिवार का सदस्य आईएएस, आईपीएस बनकर माफियाओं और लुटेरों का सहयोगी बना हुआ है, तब भी उन्हें कोई आपत्ति या लज्जा नहीं होगी। क्योंकि आज अपने ही देश को लूटना और लुटवाना देशभक्ति है और माफियाओं का सहयोगी होना बड़े गर्व और सम्मान की बात है।
और चूंकि मेरे जेनेटिक कोड में कोई अंतर नहीं आया, आज भी वही पराक्रमी क्षत्रिय खून दौड़ रहा है, इसीलिए मैं आधुनिक समाज और उसकी आधुनिक मानसिकता के साथ जुड़ नहीं पा रहा। मेरे लिए देश का अर्थ वही है, जो प्राचीन काल में था। मेरे लिए धर्म और वर्ण का अर्थ वही है, जो प्राचीन काल में था। कुछ भी नहीं बदला और मरते दम तक नहीं बदलेगा।
अब दुनिया को बदलना नहीं चाहता इसीलिए स्वयं को भी नहीं बदल रहा। केवल इतना ही परिवर्तन आया है मुझमें कि अब #Zombies और देश व जनता के लुटेरों के भक्तों की भीड़ और इनके समर्थक समाजों से स्वयं को दूर कर लिया। क्योंकि समझ चुका हूँ आधुनिकता की होड़ में दौड़ रहा समाज ना तो अब देशभक्त है, न ही नैतिक और ना ही मानवीयता का समर्थक। आधुनिक समाज माफियाओं और लुटेरों का भक्त है और उन्हीं के चरणों में जीना चाहता है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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