कर्म और कर्मवाद में वही अंतर है जो ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद में है

बहुत शोर मचाते हैं मजदूर और शूद्र यूनियन के लोग कि श्रीकृष्ण ने कहा था कर्मवादी बनो, मजदूरी करो, मेहनत करो।
लेकिन कर्मवाद का शोर मचाने वाले नहीं जानते कि कर्म और कर्मवाद में वही अंतर है, जो ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद में हैं। जो अंबेडकर और अंबेडकरवाद में है।
ब्राह्मणवादी होना आसान है, लेकिन ब्राह्मण होना बहुत कठिन। अंबेडकरवादी होना आसान है, लेकिन अंबेडकर होना बहुत कठिन। ठीक इसी प्रकार कर्मवादी होना आसान है, लेकिन कर्म क्या और कब करना है यह समझ विकसित करना बहुत कठिन।
ये दुनिया बर्बाद हुई, माफियाओं की गुलाम हुई, देश व जनता के लुटेरों के द्वारा लूटी, लुटवाई जा रही है तो क्यों ?
क्योंकि कर्मवादी लोगों को होश ही नहीं कि वे क्या कर्म कर रहे हैं और किसके लिए कर रहे हैं। उन्हें तो केवल कर्म करना है क्योंकि कर्मवादी हैं….तो कर्म किए चले जा रहे हैं कोल्हू के बैल की तरह।
नौकरी मिली चाहिए चाहे अपना खेत बेचकर, ईमान, ज़मीर, जिस्म बेचकर मिल रही हो….करनी नौकरी ही है। क्योंकि कर्मवादी हैं, श्री कृष्ण ने कहा था कर्म करो….तो कर्म करेंगे। और जो कर्मवादी नहीं हैं, उन्हें मुफ्त खोर, हराम खोर कहेंगे अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी और गुलामी से कमाई मेहनत की रोटी खाकर।
लेकिन मैं कर्मवादी नहीं हूँ…..गुलामी वाला कर्मवाद मेरा सिद्धान्त हो ही नहीं सकता और ना ही हो सकता है किसी भी चैतन्य और जागृत पुरुष का सिद्धान्त। कर्मवाद #zombies का सिद्धान्त हो सकता है, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के गुलामों का सिद्धान्त हो सकता है, राजनैतिक पार्टियों के भक्तों का सिद्धान्त हो सकता है….मेरा नहीं।
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