जो स्वार्थी नहीं बन पाता वह Tissue Paper बन जाता है

स्वार्थी बनो !
क्योंकि जो स्वार्थी नहीं बन पाता, वह #Tissue #paper अर्थात #use & #throw #material बन जाता है।
लेकिन जो स्वार्थी बन पाने में सफल हो जाते हैं, दुनिया उन्हें महान मानती है उनके दर्शन को तरसती है। जैसे कि नेता, अभिनेता, बाबा, सरकारी अधिकारी, मल्टीनेशनल कंपनी के कर्मचारी, अदानी और उसकी गुलाम सरकारों जैसे दलाल, राजनैतिक पार्टियाँ, समाज सेवी संस्थाएँ #NGOs, साम्प्रदायिक और जातिवादी सम्प्रदाय आदि सभी स्वार्थी होते हैं। निशुल्क या निःस्वार्थ ये हिलते तक नहीं हैं। लेकिन जनता इनके पीछे पागलों की तरह दौड़ती है, इन्हें ईश्वर तुल्य मानती है, इनके दर्शन के लिए पलकें बिछाए बैठी रहती है।
यदि आप निःस्वार्थी हैं, निःशुल्क सेवा दे रहे हैं, तो आपकी स्थिति सड़क किनारे खड़े उस खम्बे जैसी हो जाती है, जिसपर कोई भी कुत्ता आकर मूत जाता है।
दुनिया में जितनी भी राजनैतिक पार्टियाँ बनीं हैं, जितने भी धार्मिक, समाजसेवी, जातिवादी संगठन, संथाएं और पंथ हैं, सभी निःस्वार्थ और निःशुल्क सेवाकरने पर ज़ोर देती हैं। लेकिन ये स्वयं कोई सेवा निःस्वार्थ या निःशुल्क नहीं करते। दान, पुण्य भी करेंगे तो दिखावे के लिए करेंगे, ताकि लोग इन्हें सात्विक, दानी समझें। वास्तव में इन्हें निःस्वार्थी, निःशुल्क सेवक और गुलाम चाहिए होते हैं, जिन्हें ये कोल्हू के बैल की तरह उपयोग कर सकें।
उदाहरण के लिए राजनैतिक पार्टियों को ही ले लीजिये। आप इनके सदस्य बन जाइए, आजीवन पार्टी और पार्टी के नेताओं के लिए दरियाँ बिछाते रहिए, लेकिन जब आपके घर पर कोई संकट आएगा, कोई भूमाफिया आपकी भूमि हड़प लेगा, तब ये पार्टियाँ और नेता आपको पहचानने से भी इंकार कर देंगे। क्योंकि इनकी नजर में कार्यकर्ता केवल टीश्यू पेपर होते हैं, जो उपयोग में आने के बाद फेंक दिये जाते हैं।
क्या समाज, संगठन, पंथ निःस्वार्थी होते हैं ?
नहीं बिलकुल भी नहीं !
सभी समाज, संगठन, पंथ, सम्प्रदाय बिलकुल वैसे ही होते हैं, जैसे राजनैतिक पार्टियाँ। सभी के लिए उनके सदस्य किसी पार्टी के कार्यकर्ता से अधिक नहीं होते और पार्टी कार्यकर्ता कार्य होता है प्रचार करना, वसूली करना, चन्दा उगाहना, जयकारे लगाना और आवश्यकता पड़ने पर ईशनिन्दा यानि अपने आराध्य नेता की निंदा या आलोचना करने वाले विरोधियों के हाथ पैर तोड़ना या फिर आगजनी, मोबलिंचिंग करना।
लेकिन यही उत्पाती जब स्वयं संकट में होते हैं, इनके घरों, दुकानों पर पर बुलडोज़र चल जाता है, बेरोजगार हो जाते हैं, भूखों मर रहे होते हैं….सब जिनके लिए ये दुनिया भर के उत्पात कर रहे थे, वही गायब हो जाते हैं। क्यों ?
क्योंकि पार्टी हो, या समाज हो या संगठन हो, या संस्था हो, या पंथ हो, सभी स्वार्थी होते हैं, अपने लिए जीते हैं। मैंने बहुत से लोगों को देखा है जो किसी गुरु के द्वारा स्थापित पंथ, समाज या संगठन के अनुयायी होते हैं, अपने गुरु की महिमाओं की बहुत प्रशंसा करते हैं। अपने संगठन, पंथ, समाज की सेवा के लिए दिन रात एक कर देते, लेकिन वे स्वयं जब संकट या अभावग्रस्त होते हैं, या एकाँकी जीवन जी रहे होते हैं, तो उनका अपना ही समाज, संगठन, संस्था उनकी सहायता कर पाने में अक्षम हो जाता है। यहाँ तक कि यदि उनके आश्रम में उनके अपने ही गुरु के शिष्य या अनुयायी आते हैं, तो उनसे भारी-भरकम शुल्क लिया जाता है।
क्यों ?
क्योंकि व्यवसाय है…गुरु के नाम पर, धर्म के नाम पर आध्यात्म के नाम पर व्यवसाय हो रहा है, न कि सेवा या सहायता। मंदिरों के सामने कितने भिखारी भीख मांगते मिल जाएंगे, लेकिन उन्हीं का अपना समाज, सम्प्रदाय उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में कोई रुचि नहीं लेगा।
क्यों ?
क्योंकि मंदिरों, तीरथों में सामाजिक या धार्मिक लोग नहीं, स्वार्थियों, भिखारियों और लोभियों की भीड़ जाती है। और जो स्वयं भगवान से सहायता या भीख मांगने जा रहा हो, वह भला किसी दूसरे की सहायता कैसे कर सकता है ?
आगे बढ़ने से पहले यहाँ एक लेख का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूँ, क्योंकि वह लेख मैंने स्वप्न में लिखा था। लेख का शीर्षक था:
विज्ञान और अविज्ञान में क्या अंतर है ?
आजकल स्थिति यह है कि स्वप्नों में भी पोस्ट लिखता रहता हूँ। तो एक पोस्ट स्वप्न में लिखा, लेकिन जब आँख खुली तो पाया कि जो कुछ लिखा था, वह स्वप्न वाली फेसबुक में ही रह गया।
तो सोचा कि इस वाले फेसबुक में कॉपी कर दूँ वह पोस्ट जो स्वप्न में लिखा था।
पोस्ट का शीर्षक था, “विज्ञान और अविज्ञान में क्या अंतर है ?”
विज्ञान उसे कहते हैं जो व्यावहारिक हो, जाना, समझा हो स्वयं के प्रयोगों द्वारा। जैसे कि हवाई जहाज हवा में उड़ता है, यह व्यावहारिक ज्ञान है। हवाई जहाज में कई यात्री बैठकर यात्रा भी कर सकते हैं, यह व्यावहारिक ज्ञान अर्थात विज्ञान है।
और अविज्ञान उस ज्ञान को कहते हैं, जो किताबी है लेकिन व्यावहारिक नहीं अर्थात केवल मान्यताएँ हैं। जैसे कि एक तलवार से चाँद के दो टुकड़े कर देना। सूरज को निगल लेना। भभूत, रुद्राक्ष से समस्त रोगों का उपचार कर देना। शादी ब्याह, बजार, स्कूल, कॉलेज, मंदिर, तीर्थों में आतंक मचाने वाली लेकिन राजनैतिक रैलियों से आतंकित हो जाने वाली महामारी से सुरक्षा किसी प्रायोजित सुरक्षा कवच से हो जाती है……आदि सब अविज्ञान अर्थात प्रचारित मान्यताएँ हैं व्यावहारिक सत्य नहीं।
इसी प्रकार और भी कई अविज्ञान हैं, जो अंधविश्वासों पर आधारित हैं। जैसे कि सरकारें, राजनैतिक पार्टियां, सामाजिक, साम्प्रदायिक, जातिवादी पार्टियां, संगठन, संस्थाएं, पंथ, सीबीआई, सीआईडी, ईडी, आईटी, पुलिस आदि जनता व देश के हितों के लिए कार्य करती हैं। ये केवल प्रचारित मान्यताएँ हैं, व्यवहारिक सत्य नहीं।
व्यव्याहरिक सत्य यह है कि ये सभी माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के हितों के लिए कार्य करती हैं, क्योंकि उन्हीं की दया और कृपा पर आश्रित होती हैं।
और आश्चर्य तो यह कि यह लेख आज मेरे जन्मदिन पर स्वप्न में आया। हालांकि बहुत कुछ अंश भूल गया हूँ लेख का, लेकिन जितना याद था, लिख दिया।
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