धर्म और संप्रदाय का अंतर: एक चिंतन

धर्म वह है जो सार्वभौमिक है, जो सभी के लिए समान है। इसके विपरीत, संप्रदाय (या रिलिजन) किसी विशेष मान्यताओं, परंपराओं और रीति-रिवाजों से बंधे समूह का परिचायक है।
यदि आप हिन्दू, मुस्लिम, सिख, या ईसाई हैं, तो यह केवल आपके संप्रदाय का परिचय है, आपकी धार्मिकता का नहीं। कोई व्यक्ति चाहे अपने सम्प्रदाय के सभी कर्मकांडों, परंपराओं, पूजा-पाठ, या नामजप का पालन करे, तब भी उसे धार्मिक तभी माना जाएगा जब वह धर्म को समझेगा और उसके अनुसार आचरण करेगा।
धर्म बनाम सांप्रदायिकता
आज के समय में जितने लोग हिन्दू-मुस्लिम या अन्य संप्रदाय आधारित राजनीति और खेल खेल रहे हैं, वे केवल सांप्रदायिक हैं, धार्मिक नहीं।
- धार्मिक व्यक्ति कभी इन सांप्रदायिक खेलों में लिप्त नहीं होता।
- वह न केवल इनसे दूर रहता है, बल्कि अधर्मियों के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहता है।
धार्मिकता का अर्थ है संकीर्णता से मुक्त होना। केवल भगवा वस्त्र पहनने, गले में भगवा गमछा लटकाने, या ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता। इसी प्रकार, भारत माता की जय बोलने या बुलवाने से कोई सच्चा देशभक्त नहीं बनता।
धार्मिकता का वास्तविक मार्ग
धार्मिक बनने के लिए सबसे पहले इंसान बनना आवश्यक है। हमारे पूर्वजों ने भी यही संदेश दिया था – ‘मनुर्भवः’ अर्थात मनुष्य बनो।
इस उद्घोष का महत्व आज भी उतना ही है, क्योंकि:
- इंसान के रूप में जन्म लेने मात्र से कोई सच्चा इंसान नहीं बनता।
- वह हिन्दू, मुसलमान, कांग्रेसी, भाजपाई, दक्षिणपंथी, वामपंथी, मोदी-वादी, या अंबेडकरवादी कुछ भी बन सकता है। लेकिन इंसान बनेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
इसलिए, धर्म का वास्तविक उद्देश्य है मानवता की स्थापना।
धर्म के स्थान पर केवल रिलिजन का उल्लेख हो
मेरा सुझाव है कि सभी सरकारी और गैर-सरकारी फॉर्म्स से ‘धर्म’ नामक कॉलम को हटा दिया जाए। इसकी जगह केवल ‘रिलिजन’ का उल्लेख हो, ताकि व्यक्ति केवल अपने संप्रदाय या विचारधारा का उल्लेख कर सके।
जैसे:
- हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई।
- कांग्रेस, भाजपा, वामपंथ, दक्षिणपंथ।
- गांधीवादी, गोडसेवादी, मोदी-वादी, अंबेडकरवादी आदि।
इस बदलाव से समाज में धर्म और संप्रदाय के बीच स्पष्ट अंतर समझाने में मदद मिलेगी।
~ विशुद्ध चैतन्य
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