क्या सनातन धर्म में मांसाहार वर्जित है ?

हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म के नाम पर उत्पात मचा चुके लोग अब सनातन धर्म का खोल ओढ़कर घूमने लगे, बिना यह जाने कि सनातन धर्म वास्तव में है क्या। और सनातन धर्म की खोल में वे लोग ही उत्पात अधिक मचा रहे हैं, जो गौ रक्षा और धर्म रक्षा की आढ़ में मुस्लिमों की मोबलिंचिंग कर रहे थे, मुस्लिमों के बूचड़ खाने बंद करवा रहे थे। लेकिन चुनाव जीतने के लिए गौ माँस बेचने के लिए भी तैयार रहते हैं।

और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि संप्रदायों, पंथों और स्थानीय मत-मान्यताओं पर आधारित समाजों को धर्म घोषित कर दिया गया। यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे विकलांगों को दिव्याङ्ग घोषित कर देना।
विकलांग तो दिव्याङ्ग हुए नहीं, दिव्याङ्ग शब्द की गरिमा अवश्य विकलांग हो गयी। अब दिव्याङ्ग सम्बोधन पर लोगों के मस्तिष्क में किसी दिव्य, आभावान, तेजस्वी व्यक्तित्व की छवि नहीं उभरती, अपितु मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति की छवि उभरती है।
ठीक इसी प्रकार धार्मिक कहने पर सामाजिक मत-मान्यताओं पर आधारित रीतितिवाजों, खान-पान, रहन सहन को जीने वालों की छवि उभरती है, न कि धार्मिक अचारण करने वालों की छवि।

यही कारण है कि जो ऐसे परिवेश में पले-बढ़े, जहां के भगवाधारी माँस/मच्छी नहीं खाते, वे जब किसी भगवाधारी को माँस/मच्छी खाते देख लेते हैं, तो उनका ऐसा मज़ाक उड़ाते हैं, मानो वे स्वयं महान धार्मिक हैं और माँस/मच्छी खाने वालों से बड़ा अधार्मिक कोई नहीं।
ज़्यादातर लोग यह मानने को तैयार नहीं कि भारत की अधिकांश जनसंख्या शुद्ध शाकाहारी नहीं है।
जैन, कुछ ब्राह्मण और वैश्य ही शाकाहारी होते हैं. कश्मीर तथा मिथिला के ब्राह्मणों के पारंपरिक भोजन में सामिष (मांसाहारी) व्यंजनों की लंबी सूची है। विस्तृत लेख के लिए बीबीसी की यह रिपोर्ट देखिये….. भारतीयों के मांसाहार पर प्राचीन ग्रंथ, परंपराएं क्या बताती हैं ?
सनातन धर्म क्या है ?
सनातन का अर्थ होता है निरंतर, जो सार्वभौमिक है, जिसका ना आदि है न अंत है, जो समस्त ब्रह्माण्ड में दृष्टिगोचर होता है। उदाहरण के लिए यह विडियो देखिये:
देखा आपने विडियो ?
एक पशु दूसरी प्रजाति के पशु की जान बचा रहा है। क्यों ?
क्या उसने कोई धार्मिक या ईश्वर/अल्लाह की लिखी किताब पढ़ी थी ?
क्या उसने किसी गुरु से दीक्षा ली थी या रोज़ जाकर किसी कथावाचक से कथाएँ सुनता था ?
बिलकुल नहीं…उसे तो पता ही नहीं होगा कि ईश्वर/अल्लाह ने कोई किताब लिखी थी जिसे पढ़कर इंसान धार्मिक बनता है। उसे तो पता ही नहीं कि बिना धार्मिक ग्रंथ पढे कोई धार्मिक हो ही नहीं सकता, लेकिन फिर भी उसने धार्मिक कृत्य किया। फिर भी उसने वह किया, जो सारे धार्मिक ग्रंथ और गुरु इन्सानों को सिखाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं हजारों वर्षों से। लेकिन फिर भी इंसान धार्मिक होने की बजाय साम्प्रदायिक, जातिवादी, पार्टीवादी, नेतावादी, बाबावादी बनकर रह गया।
एक कुत्ते ने बिल्ली को बचाकर जिस धर्म को निभाया, उसे ही सनातन धर्म कहते हैं। सनातन धर्म और किताबी धर्मों मेन अंतर यह होता है कि किताबी धर्म किताब से संबन्धित संप्रदायों पर लागू होता है, दूसरों पर नहीं। जबकि सनातन धर्म सार्वभौमिक है, सभी पर लागू होता है। फिर चाहे वह हिन्दू या मुस्लिम हो, जैन हो या सिक्ख हो, कॉंग्रेसी हो या भाजपाई हो, इंसान हो या पशु-पक्षी।
करुणा, प्रेम, दया, सहयोग, सेवा, दान आदि सभी सनातन धर्म के अंतर्गत आते हैं। और सनातन धर्म किसी किताब, व्यक्ति, बाबा, पीर, पैगंबर, अवतार के विचारों, आदेशों पर आधारित नहीं, प्राकृतिक है, ईश्वरीय है और प्राणी जगत के कल्याणार्थ है।
अब आप कहेंगे कि पशु-पक्षी यदि सनातन धर्मी हैं, तो उनमें से कई मांसाहारी हैं। तो क्या मांसाहार वर्जित नहीं हैं सनातन धर्म में ?
यदि मांसाहार वर्जित होता सनातन धर्म में, तो ईश्वर मांसाहारी जीव बनाते ही नहीं। सभी प्राणी मांसाहारी नहीं होते और सभी प्राणी शाकाहारी नहीं होते। इसी प्रकार सभी मानव मांसाहारी नहीं होते, सभी मानव शाकाहारी नहीं होते। क्योंकि प्रकृति को संतुलित और व्यवस्थित रखने के लिए दोनों की आवश्यकता है।
बहुत से शाकाहारी तर्क देते हैं कि मांस खाने का शौक है, तो कोई तुम्हें खा जाए तो कैसा लगेगा ?
तर्क तो बहुत अच्छा है, लेकिन यही प्रश्न शेर, चीता या अजगर के सामने खड़े होकर कहो तो जरा ?
उनके लिए मानव भी भोजन है और वे बड़े चाव से खाते हैं मानव माँस। अर्थात इस सृष्टि में सभी प्राणी किसी न किसी का भोजन है, शिकार है।
मानव ही मानव का भक्षण कर रहा है प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से। उदाहरण के लिए प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर प्रायोजित सुरक्षा कवच चेप कर फार्मा माफिया और उनकी गुलाम सरकारें जनता का भक्षण कर रही हैं। करोड़ों लोगों की हत्या की जा रही है इलाज के नाम पर ताकि जनसंख्या नियंत्रण में रहे। हर रोज़ करोड़ों बेमौत मर रहे हैं कैमिकल युक्त भोजन, मिरनल वाटर के नाम पर मिलने वाले हानिकारक जल से, कारखानों से निकल रहे विषैली गैस और नदियों में छोड़े जा रहे विषाक्त रसायनों और मल, मूत्र से।
मानव ही शत्रु बन बैठा है प्राणी व वनस्पति जगत का। नदियों के प्रदूषित जल से जलचर मर रहे हैं, और वनों की कटाई और कृषि क्षेत्रों में बढ़ते कंक्रीट के जंगलों के कारण ऑक्सीज़न की कमी से मानव रोगी बन रहे हैं। एलोपैथ ने चिकित्सा की आढ़ में कई नए नए रोगों को जन्म दिया। जिसके कारण विश्व का प्रत्येक मानव आज किसी न किसी रोग से ग्रस्त है।
लेकिन शाकाहारियों को इन सभी कृत्यों में लिप्त नरपिशाचों से कोई आपत्ति नहीं। शाकाहारियों के लिए तो ये लोग महान कार्य कर रहे हैं जनसंख्या नियंत्रण का प्रदूषण फैलाकर, नदियों, सागरों, और वायु को प्रदूषित करके।
और जिन्हें प्रदूषण फैलाने वाले लोगों से कोई समस्या नहीं, उन्हें मांसाहारियों से समस्या क्यों है ?
जिस प्रकार प्रदूषण फैलाने वाले लोग जनसंख्या नियंत्रण का नेक कार्य कर रहे हैं, वैसे ही मांसाहारी भी जनसंख्या नियंत्रण का नेक कार्य कर रहे हैं। बेमौत तो वे भी मर रहे हैं, जो एलोपैथ और फार्मा माफियाओं पर आश्रित शाकाहारी हैं और बेमौत वे भी मर रहे हैं जो मांसाहारी हैं।
पूरे विश्व में हत्याएँ हो रही हैं किसी ने किसी रूप में, पूरे विश्व में शिकार हो रहा है मानवों का माफियाओं और सरकारों के द्वारा। क्योंकि जो शाकाहारी दिख रहे हैं, उन्हें भी शिकार और हत्या करने का शौक होता है। जैसे कि शाकाहारी नेताओं द्वारा सैनिकों और नागरिकों की हत्याएँ कारवाई जाती हैं चुनाव जीतने के लिए, आदिवासियों की भूमि हथियाने के लिए।
और ये सब करने वाले वे लोग हैं, जो किताबी धार्मिक हैं। जो नियमित धार्मिक ग्रंथो का पाठ करते हैं, अपने अपने धार्मिक स्थलों पर जाते हैं ईश्वर से अपनी सफलता और सुख समृद्धि की याचना करने।
सनातन धर्मी विरोध करेगा अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण का चाहे कहीं भी हो। लेकिन आवश्यक नहीं कि वह शाकाहारी ही हो।
अब आप फिर कहेंगे कि मांसाहार तो अन्याय हो गया ?
लेकिन सत्य यह है कि मांसाहार अन्याय नहीं है, क्योंकि जीवो जीवस्य भोजनम सनातन धर्म है। जीव ही जीवों का भोजन है, निर्जीव पदार्थ जैसे पत्थर और रत्न खाकर कोई जीवित नहीं रह सकता। सभी भोज्य वनस्पतियों में प्राण होते हैं, सभी में भावनाएं होती हैं और यह वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है।
शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही सनातन धर्मी हो सकते हैं, यदि वे परस्पर घृणा नहीं रखते। यदि शाकाहारी यह मानकर जी रहा है कि मांसाहारी पापी होते हैं, अधर्मी होते हैं, तो फिर इसका अर्थ यह हुआ कि उसे सनातन धर्म का ज्ञान नहीं। ऐसे शाकाहारी पाप और अधर्म का भी ज्ञान नहीं रखते। बल्कि इनके पास वही ज्ञान है जो इनके गुरुओं ने रटा दिया है।
शाकाहारी और मांसाहारी होने का कोई संबंध नहीं है धार्मिक या अधार्मिक होने से
एक सनातन धर्मी शाकाहारी परिवार का कोई सदस्य मांसाहारी भी हो, तो सनातन धर्मी उससे घृणा नहीं करेगा। क्योंकि सनातन धर्मी जानता है कि जो व्यक्ति जिस प्रवृति का उसे उसके अनुरूप ही भोजन मिले तो उसके स्वास्थ्य और विकास के लिए उत्तम रहता है।
लेकिन किसी पर मांसाहार त्यागने का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डालना केवल यह मानकर कि मांसाहारी है इसीलिए वह पापी है, वह अधर्मी है सनातन धर्म के विरुद्ध है।
मैंने शाकाहारी अधर्मी भी देखा है और मांसाहारी अधर्मी भी। कितने राजनेता ऐसे हैं जो शाकाहारी हैं, लेकिन जनता का शोषण, विश्वासघात, देश व जनता को लूटने और लुटवाने जैसे अधार्मिक कृत्यों में लिप्त हैं। और कितने मांसाहारी ऐसे हैं, जो जनता की सहायता और सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध खुलकर लिखते और बोलते हैं।
इसीलिए सनातन धर्म को कभी भी शाकाहार, मांसाहार के तराजू में मत तोलिए। सनातन धर्मी शाकाहारी भी होता है और मांसाहारी भी।
~ विशुद्ध चैतन्य
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बहुत सुंदर व्याख्या
जी धन्यवाद 🙂