GMO कृषि: समस्त प्राणी-जगत के लिए अभिशाप

विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप भी। यदि विज्ञान का प्रयोग समस्त प्राणी-जगत के हितों को ध्यान में ना रखकर केवल वैश्यों, पूँजीपतियों और माफियाओं के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है, तो समस्त प्राणी जगत के लिए अभिशाप बन जाता है।
भले धन और सत्ता के बल पर मीडिया, राजनेताओं और सरकारों को खरीदकर, जनता को भ्रमित कर, सत्य को दबाकर, विज्ञान के नाम पर धन लोलुप माफिया और वैश्य ज़हर परोसने में सफल हो जाएँ, जनता के मन में यह धारणा बैठा दें कि विज्ञान और वैज्ञानिक जो कुछ करते हैं प्राणी जगत के हितों के लिए ही करते हैं, लेकिन सत्य अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता। एक न एक दिन सत्य सामने आ ही जाता है….लेकिन तब तक बहुत बड़ी हानि हो चुकी होती है।
भारत में बीमारियों को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान दिया हरित-क्रांति के नाम पर शुरू हुए रसायन युक्त कृषि ने। भारतीय पहले जैविक (#organic) कृषि किया करते थे, लेकिन फार्मा माफियाओं ने आर्थिक लाभ कमाने के लिए रसायन युक्त कृषि को भारत पर थोपा। सरकारों पर धन बल से दबाव बनाया कि रसायन युक्त कृषि को बढ़ावा दे। यह समझाया गया कि रसायन युक्त कृषि से अधिक पैदावार होगी और किसानों सहित सरकारों को भी बहुत लाभ होगा। लेकिन आज हम सभी जानते हैं कि हरितक्रांति ने भारत को बीमारों का देश बना दिया। आज भारत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति बचा होगा, जो किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त न हो।
फिर उन बीमारियों को दूर करने के लिए दुनिया भर की दवा कंपनियाँ आस्तित्व में आ गयीं। जो बीमारियाँ पहले घरेलू उपचार से ही दूर जाती हैं, उन बीमारियों का स्वरूप इतना बिगड़ गया कि आज बिना डॉक्टर और अस्पताल के ठीक नहीं हो पा रहे। और एक बीमारी ठीक होती है, अन्य कई दूसरी बीमारियाँ घेर लेती हैं। आम नागरिकों की अधिकांश कमाई फार्म माफियाओं, डॉक्टर्स और अस्पतालों की तिजोरी भरने में खर्च हो रही हैं। व्यक्ति पैदा होने के साथ ही फार्मा माफियाओं और डॉक्टर्स के बनाए चक्रव्युह में फंस जाता है और फिर आजीवन नहीं निकल पाता। मरने के बाद भी श्मशान घाट तक मृतक के परिवार को लूटा जाता है।
आज डॉक्टर सबसे अधिक सम्मानित प्रोफेशन माना जाता है। इसलिए नहीं कि ये लोगों को स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि फार्मा माफियाओं का महत्वपूर्ण एजेंट्स होते है और इलाज के नाम पर जनता को लूटने से लेकर नयी-नयी बीमारियों से ग्रस्त कर फार्मा माफियाओं को लाभ पहुंचाने का महान कार्य करते हैं। यही कारण है कि डॉक्टर बनने के लिए आज लोग कई लाख से कई करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। एक बार डॉक्टर बन गए तो फिर पैसों की बरसात होने लगती है। ना बीमारों की संख्या घटती है, न बीमारी घटती है। नयी नयी बीमारियाँ आती चली जाती हैं और उन बीमारियों के महंगे-महंगे इलाज आते चले जाते हैं।
जाग्रत लोग समझाने के लिए दिन रात एक किए रहते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से जागृत लोगों की बातें सुनने को कोई तैयार नहीं। क्योंकि सभी फार्मा माफियाओं और डॉक्टर्स से इतने सम्मोहित हो चुके हैं कि सिवाय उनके झूठे आश्वासनों और इलाजों के कुछ और ना तो देख पा रहे हैं और न ही सुन पा रहे हैं।
हरितक्रांति के कारण केंसर से लोग ग्रस्त होने लगे और पंजाब में केंसर के रोगी इतने बढ़े कि एक पूरी ट्रेन ही केंसर पीड़ितों के लिए चलानी पड़ी। केवल पंजाब ही नहीं, पूरे देश में केंसर रोगियों की बाढ़ आ गयी। रासायनिक कृषि से उत्पन्न अनाज, फल व सब्जियाँ खाने के कारण पाचन सम्बन्धी रोगों के साथ अनिद्रा, हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह से पीड़ितों की संख्या बढ़ी। और रोग और रोगी वरदान हैं फार्मा माफियाओं और डॉक्टर्स के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए। रोगी बढ़ेंगे तो इनकी कमाई बढ़ेगी और इनकी कमाई बढ़ेगी, तो इनका आर्थिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
हरित क्रांति की तरह ही अब GMO (Genetically Modified Organisms) फसल, अनाज, फल, सब्जियाँ विश्व भर में परोसी जा रही हैं। जैसे हरितक्रान्ति के लाभ बताए थे वैज्ञानिकों ने, वैसे ही अब इनके लाभ बताए जा रहे हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के तहत गठित जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने 25 अक्टूबर 2022 को ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड किस्म डीएमएच-11 की पर्यावरणीय मंजूरी दी थी। हालांकि जीएम फसलों के विपक्ष में खड़े लोग इस मामले को लेकर इतने गंभीर है कि उन्होने कोर्ट में पहुंच कर मांग की है कि इन फसलों को फूल आने से पहले ही नष्ट कर दिया जाए। उनके अनुसार परीक्षण के लिए अंकुरण के परिणाम पर्याप्त हैं। यदि ये पौधे पनप गए तो इनसे वातावरण के प्रदूषित होने की संभावना है।
जीएम फसलों का विरोध करने वालों का पहला तर्क है कि इससे किसानों की लागत बढ़ जाएगी। क्योंकि जीएम फसलों की बुवाई के लिए किसानों को हर बार बीज खरीदने पड़ते हैं। वहीं किसानों को कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़ेगा। विपक्ष में खड़े जानकार मानते हैं कि इससे फसलों में विविधता खत्म होने की आशंका है जिससे कई प्राणियों के आस्तित्व पर संकट छा सकता है।
जीएम का विरोध करने वालों की सबसे बड़ी आशंका ये भी है कि फिलहाल इन फसलों के साइड इफेक्ट की जानकारी नहीं है और इन्हें सामने आने में कुछ वर्षों के साथ कुछ दशक भी लग सकते हैं। वहीं एक रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जेनेटिफ मोडिफाइड फसलें पर्यावरण पर कई अन्य तरह से भी असर डाल सकती है उदाहरण के लिए सरसों के फूलों का सीधा संबंध मधुमक्खियों से है। फसल में कोई भी बदलाव इस नाजुक संतुलन को बिगाड़ सकता है।
यदि नीचे दिये गए मानचित्र पर नजर डालें तो विश्व में कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां की सरकार और नागरिक जागरूक हैं और उन्होंने GMO आधारित कृषि को मान्यता नहीं दी है।

इस मानचित्र में आप देख सकते हैं कि जिन देशों को लाल रंग से दर्शाया गया है, उन देशों के नागरिक और सरकारें जागरूक नहीं हैं। उन्हें चिंता नहीं है प्राणी जगत की, इसीलिए उन्होंने #GMO आधारित कृषि पर कोई रोक नहीं लगाया। जबकि हरे रंग से दर्शाये गए देश के नागरिक और सरकारें जागरूक हैं और उन्होंने ऐसी कृषि को मान्यता नहीं दी।
आनुवांशिक रूप से संशोधित (GM) अनाजों, फलों और सब्जियों के साथ जो सबसे बड़ी समस्या है, वह यह कि इनके बीज हर बार उन्हीं कंपनियों से खरीदने पड़ेंगे, जिनके पास इनके पेटेंट है। अर्थात आप एक बार बीज लेकर उपजाए फसलों से बीज निकालकर दोबारा नहीं उगा सकते। GM बीज केवल एक ही बार फसल दे सकते हैं, दोबारा नहीं। उदाहरण के लिए आप GM गेहूं, या चावल का बीज खरीदकर लाते हैं और पेड़ में फल आने के बाद उनसे बीज लेकर बोएँगे तो वे नहीं उगेंगे। आपको हर बार नए बीज मार्किट से खरीदना पड़ेगा।
जिन फसलों में वंश वृद्धि का गुण नहीं होगा, उन फसलों को खाने वाले प्राणियों में भी वंश वृद्धि का गुण नष्ट हो जाएगा। और एक समय ऐसा आ जाएगा, जब मानव को अपनी संतान के लिए भी फार्मा माफियाओं के गुलाम डॉक्टर्स द्वारा निर्मित लैब पर निर्भर रहना पड़ेगा। परिणाम यह होगा कि वह संतान वैसी नहीं होगी, जैसी आप हैं। वह संतान वैसी ही होगी, जैसे वैज्ञानिक चाहेंगे। और वैज्ञानिक वैसी ही संतान पैदा करके देंगे, जो गुलाम मानसिकता की हो, जो गुलामों की तरह माफियाओं के आदेशों का पालन करती रहे और कोल्हू के बैल की तरह दिन रात काम करती रहे।
तो क्या हम ऐसे उत्पादों का प्रयोग कर ऐसा विश्व बनाना चाहते हैं, जिसमें केवल माफियाओं के गुलाम रहते हों ?
बहुत से लोग होंगे जो कहेंगे कि वैज्ञानिक भला मानव जाति का नाश क्यों करना चाहेंगे, क्या वे स्वयं मानव नहीं हैं ?
सत्य तो यह है कि वैज्ञानिक, डॉक्टर और सरकारें माफियाओं के ही गुलाम हैं। और वे वही करते और कहते हैं जो माफिया चाहते हैं। एक और उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ कि डॉक्टर, वैज्ञानिक और सरकारें जनता की नहीं, माफियाओं की हितैषी होते हैं।
टॉन्सिल्स (Tonsils) के विषय में जानते ही होंगे आप ?
मनुष्य के तालु के दोनों ओर बादाम के आकार की दो ग्रंथियाँ होती है, जिन्हें हम गलगुटिका, तुंडिका या टॉन्सिल (Tonsils) कहते हैं।। टॉन्सिल का प्रमुख कार्य बाह्य संक्रमण से शरीर की रक्षा करना है अर्थात हानिकारक Bacteria और Virus को शरीर के भीतर प्रवेश करने से रोकता हैं। इसमें किसी भी प्रकार के इंफेक्शन होने से टॉन्सिल बढ़ने लगता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में दिक्कत होती है। Tonsils के सूजन को Tonsillitis कहा जाता हैं। बच्चे टॉन्सिल संक्रमण के अधिक शिकार होते हैं।
हमारे देश में Tonsils के सूजन अर्थात Tonsillitis का इलाज घरेलू चिकित्सा से ही हो जाता था। जैसे कि रात में सोने से पहले एक कप जौ को साफ़ पानी में भिगोकर रख दें। अगली सुबह को जौ छानकर पानी पिएं। उसी जौ को पीसकर गले पर लगा सकते हैं। इससे टॉन्सिल पर हुआ संक्रमण कम हो जाता है। साथ ही नमक पानी से गरारा करना भी फायदेमंद होता है। दही का सेवन करें और ग्रीन टी पिएं।
जबकि यूरोपीय देशों के बुद्धिमान वैज्ञानिक और डॉक्टर्स ने जनता को समझाया कि टॉन्सिल्स की कोई आवश्यकता नहीं है शरीर को। ये व्यर्थ की समस्याएँ उत्पन्न करता है, इसलिए ऑपरेशन द्वारा इन्हें हटा दिया जाना चाहिए। और चूंकि जनता वैज्ञानिकों और डॉक्टर्स को भगवान मानती है, तो वहाँ के नागरिकों ने अपने बच्चों के टॉन्सिल्स निकलवा दिये। परिणाम यह हुआ कि रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई और साथ ही फार्मा माफियाओं और डॉक्टर्स के आर्थिक स्वास्थ्य में भी वृद्धि हुई।
क्या अब भी आपको लगता है कि वैज्ञानिक और डॉक्टर जनता के हितों के लिए कार्य करते हैं ?
अभी हाल में ही कोरोना का आतंक फैलाया गया और Remdesiver नामक इंजेक्शन दिया गया रोगियों को। लेकिन परिणाम यह हुआ कि लोग ठीक होने की बजाए मरने लगे, तो WHO ने कोरोना रोगियों को देने से मना कर दिया। जबकि बहुत से मरीज घरेलू उपचार से ही स्वस्थ हो गए। मरे वही, जो आतंकित होकर अस्पताल भागे थे। अर्थात डॉक्टर्स और साइंटिस्ट्स को भी नहीं पता की सर्दी जुकाम और मौसमी बुखार का सही उपचार क्या है।
क्यों नहीं पता था ?
क्योंकि डॉक्टर्स को आदेश दिया गया था कि फार्मा माफियाओं की गुलाम WHO जो उपचार बताए वही करना है, अन्य कोई इलाज नहीं करना है। आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक चिकित्सकों को स्पष्ट लिखित आदेश दिया गया था कि आप लोग कोई इलाज नहीं करेंगे। यदि कोई कोरोना संक्रमित पाया गया, तो उन्हें एलोपैथी डॉक्टर के पास ही भेजना है, यदि ऐसा नहीं किया और स्वयं इलाज किया तो आपका लाइसेन्स निरस्त कर दिया जाएगा।
फिर लांच किया कोविड वैक्सीन जिसे पहले ही बनाकर रखा गया था। कहा गया कि इस वैक्सीन से कोविड से स्थायी सुरक्षा मिल जाएगी। लेकिन नहीं मिली सुरक्षा तो उससे अधिक पावर वाला वैक्सीन लांच हुआ, उससे भी नहीं मिली सुरक्षा तो बूस्टर लांच हुआ। बूस्टर लेने के बाद भी कोरोना से लोग संक्रमित होने लगे, तो कहा गया कि जरूरी नहीं कि इससे स्थायी सुरक्षा मिले। फिर वैक्सीनेटेड लोग बेमौत मरने लगे, चलते चलते, शादी-ब्याह में, जॉगिंग करते, टपकने लगे।
जागरूक लोग कोर्ट में गए, कोर्ट ने सरकार से सवाल किया, तो कहा गया कि जनता ने अपनी मर्जी से वैक्सीन लिया, हमने किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया था।
क्या सरकार ने सच कहा था कोर्ट में ?
नहीं सरकार इतनी बेशर्म होती है कि लाखों लोगों की हत्या करके भी साफ मुकर जाती है कि वह जिम्मेदार नहीं, लोग अपने-अपने मर गए। ना जाने कितने परिवार ने अपने सदस्यों को खो दिये वैक्सीन के दुष्प्रभाव से….लेकिन सब मौन हैं। क्योंकि अब कुछ कर नहीं सकते, जो ले चुके हैं उन्हें तो भुगतना ही होगा।
पहले कोरोना के नाम पर वैक्सीन बेचकर कमाया और अब जब लोग मरने लगे तो वैक्सीन के प्रभाव को कम करने के नाम पर कमाई शुरू हो गयी। तो कमाने वाले तो हर हाल में कमा रहे हैं, लेकिन जो मर गए इनके व्यवसायिक खेल में, उन्हें क्या वापस जीवित किया जा सकता है ?
नहीं किया जा सकता। लेकिन ये खेल चलता रहेगा क्योंकि जनता जागरूक नहीं है। और अब GM का खेल शुरू हो चुका है। जागरूक लोग समझा रहे हैं, लेकिन जनता होश में आने को राजी नहीं है। परिणाम कितना घातक होगा उसकी कल्पना भी नहीं की सकती।
~ विशुद्ध चैतन्य
5 reasons why cultivating GMOs is dangerous
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