प्रश्न फिर वही कि गर्व है क्यों ?

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं !!!
लेकिन प्रश्न यह कि गर्व है क्यों हिन्दू होने पर ?
गर्व से कहो हम मुस्लिम हैं !!!
लेकिन प्रश्न यह कि गर्व है क्यों मुस्लिम होने पर ?
गर्व से कहो हम कॉंग्रेसी हैं !!!
लेकिन गर्व है क्यों कॉंग्रेसी होने पर ?
गर्व से कहो हम भाजपाई, संघी, बजरंगी, मुसंघी हैं !!!
लेकिन गर्व है क्यों संघी, बजरंगी, मुसंघी या भाजपाई होने पर ?
गर्व से कहो हम सपाई हैं, बसपाई हैं !!!
लेकिन गर्व है क्यों सपाई, बसपाई होने पर ?
इन सब पर गर्व करने के बाद फिर गर्व करना पड़ता है अंबेडकरवादी, मोदीवादी, गांधी-वादी, गोडसेवादी, माओवादी, मार्क्सवादी, पैगंबरवादी, ब्राह्मणवादी, सवर्णवादी, दलितवादी होने पर। लेकिन प्रश्न वही कि गर्व है क्यों ?
इन सब पर गर्व करने के बाद गर्व करना पड़ता है अपने-अपने गुरुओं, बाबाओं पर आधारित संप्रदायों, संगठनों, संस्थाओं यानि दड़बों पर। लेकिन प्रश्न फिर वही कि गर्व है क्यों ?
हैं तो सभी कायर, स्वार्थी, लोभी और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीने वाली मवेशियों के झुण्ड ही, जिन्हें कुछ धनकुबेरों के गुलाम गड़रिये हाँकते हैं अपने पालतू कुत्तों के दम ??
दुनिया के बड़े-बड़े संगठनो, संस्थाओं, पार्टियों, संप्रदायों को देख लीजिये, सभी मवेशियों के झुण्ड ही नजर आयेंगे, इन्सानों का समाज नहीं।
जैसे मवेशियों को नहीं पता होता कि सही क्या है, गलत क्या है, केवल गड़रिये के पीछे चलते हैं आँखें बन्द कर, वैसे ही इन बड़े-बड़े दड़बों में कैद इन्सानों की शक्ल वाली मवेशियाँ चलती हैं आँखें बन्द कर।
फिर उपरोक्त सभी दड़बों के अलावा भी दड़बें हैं वैज्ञानिक सोच के पढ़े-लिखे डिग्रीधरियों का दड़बा और अवैज्ञानिक सोच के अनपढ़ों का दड़बा। फिर इन दड़बों के अलावा भी दड़बे हैं शाकाहारियों, मांसाहारियों, अंडाहारियों, फलाहारियों और बर्गर, पिज्जा वालों के दड़बे। और सभी को अपने अपने दड़बों पर बड़ा गर्व है।
प्रश्न फिर वही कि गर्व है क्यों ?
ये दड़बे, ये बड़े-बड़े संगठन आपकी सुरक्षा किससे करते हैं ?
क्या प्रायोजित महामारी और उनके प्रायोजित सुरक्षा कवचों से आपकी सुरक्षा करते हैं ?
क्या फार्मा माफियाओं, देश व जनता के लुटेरों से आपकी रक्षा करते हैं ?
क्या भूमाफियाओं, भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों से आपकी रक्षा करते हैं ?
क्या भुखमरी, बेरोजगारी, शोषण और अत्याचार से आपकी रक्षा करते हैं ?
यदि नहीं, तो फिर इन दड़बों में कैद मवेशियों की तरह जीने का लाभ क्या ?
हो सकता है कि मुझे कोई लाभ नजर नहीं आ रहा, आपको नजर आ रहा हो इसीलिए आपको अपने-अपने दड़बों पर बड़ा गर्व है। तो कृपया मुझे भी समझा दीजिये कि उपरोक्त किसी भी दड़बे का मवेशी बनने में लाभ क्या है ?
मेरे अब तक के जीवन अनुभव में कोई दड़बा मेरे किसी काम नहीं आया। जब भी कोई काम आया तो कोई व्यक्ति विशेष ही रहा। जब भी कोई सहायता मिली मुझे तो कुछ परिचितों/अपरिचितों से ही मिली। और सहायता करने वालों ने कभी मुझसे मेरा धर्म, जाति, आर्थिक स्थिति नहीं पूछी तब भी, जब मैं भगवाधारी नहीं था। और न ही मैं पूछता हूँ किसी की धर्म और जाति जब भी मिलता हूँ किसी से।
~ विशुद्ध चैतन्य
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