संन्यासी या व्यवसायिक संस्थान के मार्केटिंग एजेंट्स ?

कहते हैं लोग कि जो सांसरिक मोह-माया से विरक्त हो जाते हैं, वे संन्यास ले लेते हैं। संन्यास अर्थात भेड़चाल और भौतिक पदार्थों का आवश्यकता से अधिक संग्रह करने की सांसरिक मानसिकता से मुक्त होकर जीना।
वास्तविक अर्थ तो यही था संन्यास का। लेकिन बेरोजगारी और व्यवसायिक जगत ने विवश कर दिया संन्यासियों को भी एक समाज बनाने लिए। ऐसा समाज बना लिया जो वह सारे कृत्य करता है, जो राजनेता, माफिया और लोभ व स्वार्थ में अंधी होकर भेड़चाल में दौड़ रही गुलाम जनता करती आ रही है। अर्थात जिस भेड़चाल से विरक्त होकर संन्यास लिया था, उसी भेड़चाल में फिर चलने लगे।
अंतर केवल इतना ही है कि साधु-समाज के संन्यासी धार्मिकता, सात्विकता और त्यागी, तपस्वी होने का ढोंग करते हैं, जबकि राजनैतिक समाज व अन्य समाज ढोंग करते हैं सेवा, देशभक्त, दानी और परोपकारी होने का। लेकिन मूल में सभी की भावना अधिक से अधिक धन संग्रह करना, दूसरों पर अपना आधिपत्य जताना या फिर देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करना ही होता है।
संन्यासी या व्यवसायिक संस्थान के मार्केटिंग एजेंट्स ?
अभी हाल ही में बाबा रामदेव ने घोषणा की 12 पास युवाओं को संन्यासी बनाने की। यह घोषणा ही संन्यास के विरुद्ध है। क्योंकि संन्यासी होने के लिए किसी भी प्रकार की शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि संन्यास लेने वाला व्यक्ति ना तो बिजनेस करने निकला है, न ही चाकरी करने निकला है। यदि संन्यास लेने के बाद भी चाकरी या बिजनेस ही करना ही, तो फिर संन्यास कैसा ?

आश्चर्य की बात तो यह कि बाबा रामदेव फ्री में संन्यासी बना रहे हैं ! इसका अर्थ तो यह हुआ कि बाकी सभी गुरु पैसे लेकर संन्यासी बना रहे हैं ?
यदि हम ध्यान से देखें साधु-समाज के संन्यासियों को, तो पाएंगे कि साधु-समाज स्वयं एक व्यवसायिक समाज यानि वैश्य-समाज में रूपांतरित हो चुका है। साधु-समाज के संन्यासी और गुरु धर्म और आध्यात्म के नाम पर चल रहे बाज़ार के मार्केटिंग मैनेजर, एक्ज़ेक्यूटिव और एजेंट्स होते हैं। इनका काम होता है अपनी-अपनी कम्पनी जिसे सामान्य भाषा में पंथ, सम्प्रदाय, समाज या अखाड़ा कहा जाता है, का प्रचार-प्रसार करना। सभी कम्पनियाँ अपने-अपने आराध्य गुरुओं की महानता का बखान करके, उनके कहे या लिखे गए विचारों का प्रचार-प्रसार करने का व्यवसाय कर रहे हैं।
यही कारण है कि आज धार्मिक माने जाने वाले पंथों, समाजों, संगठनों और राजनैतिक पार्टियों, सरकारी/गैर सरकारी संस्थाओं में कोई अंतर नहीं रह गया। सभी व्यवसाय कर रहे हैं और व्यवसाय करने के लिए चाकरों की आवश्यकता होती है। चाकर यदि अनपढ़ होगा, तो ना कार्यालय संभाल पाएगा, न व्यापार संभाल पाएगा और न ही अच्छे नस्ल का गुलाम बन पाएगा।
बेरोजगारी इतनी है कि रोजगार के लिए चाकरी करने के लिए बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ बटोरकर चपरासी की नौकरी के लिए लाइन पर लगे बैठे हैं। तो फिर संन्यासी बनने में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ? कम से कम संन्यासी बनकर भगवा डालकर चपरासी तो बेहतर ही जीवन जिएंगे।
मुझे ऐसा लग रहा है कि एक सुनियोंजित षड्यंत्र के अंतर्गत संन्यासियों की निजता, स्वतन्त्रता, मौलिकता छीनने का अभियान छेड़ा जा चुका है। यदि कोई संन्यासी किसी कम्पनी से सर्टिफाइड नहीं है, तो उसे ढोंगी पाखंडी घोषित कर दिया जाएगा। भले वह माफियाओं और देश के लुटेरों के सिवाय किसी अन्य का अहित न कर रहा हो। और जो माफियाओं और देश के लुटेरों की गुलामी स्वीकार ले, उनके इशारे पर जनता को बरगलाए कि माफियाओं और लुटेरों की पार्टी को वोट दोगे, तो 30 रुपए में पेट्रोल और 30 रुपए में डॉलर मिलेगा, विदेशों में पड़ा काला धन आएगा, सबके एकाउंट में 15-15 लाख रुपए आ जाएंगे, सोने की सड़कें बन जाएंगी….. तो उसे सच्चा संन्यासी, साधु या संत माना जाएगा।
संन्यास गुलामी नहीं स्वतन्त्रता है
मैंने जब संन्यास मार्ग चुना था तो केवल इसलिए चुना था, क्योंकि गुलामी मेरी प्रवृति नहीं है। ना तो मैं वैश्य हूँ और न ही शूद्र हूँ। क्योंकि इनकी तरह मैं माफियाओं और देश के लुटेरों का सहयोगी या गुलाम बनकर नहीं जी सकता।
ब्राह्मण, या क्षत्रिय का लेबल चिपकाए घूमने वाले माफियाओं और लुटेरों के गुलामों जैसा ब्राह्मण और क्षत्रिय भी नहीं हूँ। माफियाओं और देश को लूटने वालों की चापलूसी और जय-जय करने वाले साधु-समाज का संन्यासी भी नहीं हूँ। और मैं अब किसी भी समाज, सम्प्रदाय, पार्टी या सरकार के साथ सहज नहीं हूँ। क्योंकि मैं वर्णों, जातियों, पार्टियों, पंथों, संप्रदायों में खंडित नहीं हूँ। अब मैं सनातनी हो चुका हूँ।
यहाँ सनातनी होने से मेरा तात्पर्य माफियाओं के गुलाम साधु-समाज द्वारा स्थापित सनातनी नहीं, बल्कि प्राकृतिक सनातनी। अर्थात मैं उस सनातन धर्म का अनुसरण करता हूँ, जो किताबी नहीं प्राकृतिक है। मैं उस सनातन धर्म का अनुसरण करता हूँ, जिसका अनुसरण सिवाय किताबी धार्मिकों के ब्रह्माण्ड के समस्त आकाशगंगाओं, ग्रहों, उपग्रहों में स्वतन्त्र विचरण करने वाले समस्त दृश्य/अदृश्य, ज्ञात/अज्ञात प्राणी करते हैं। मैं माफियाओं और लुटेरों के द्वारा स्थापित दड़बों में कैद जीवन जीने के लिए नहीं आया हूँ इस दुनिया में।
धर्म और अध्यात्म का बाज़ार
यह और बात है कि धर्म और अध्यात्म के नाम पर माफियाओं और लुटेरों द्वारा खड़े किए बाजार में केवल वही जी सकता है जो बिकाऊ हो और कोल्हू का बैल बनकर जीने को तैयार हो। लेकिन मैं इस बाजार से स्वयं को अलग रखता हूँ। मैं ऐसे व्यक्ति को ना तो धार्मिक और आध्यात्मिक मानता हूँ और ना ही मानव मानता हूँ, जो केवल स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, कुरान, बाइबल, गीता पाठ करने के लिए आया है। मैं ऐसे व्यक्ति को धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं मानता जो समाज को अधर्म व अन्याय के विरुद्ध जागृत करने की बजाय माफियाओं और लुटेरों की चापलूसी, गुलामी और व्यवसाय करने में व्यस्त है।
सारांश यह कि संन्यासियों के वेश में अंतर्राष्ट्रीय माफियाओं और वैश्यों द्वारा तैयार किए जा रहे मार्केटिंग एजेंट्स का दूर-दूर तक तक कोई सम्बन्ध नहीं है संन्यास से। ये सब बिलकुल वैसे ही है, जैसे निजी व सरकारी कंपनियों के मार्केटिंग एजेंट्स और गुलाम मीडिया के उद्घोषक, संवाददाता, पत्रकार आदि। इनका काम समाज को जागृत करना नहीं, बल्कि प्रायोजित महामारी के आतंकियों के खरीदे हुए प्रचारकों की तरह जनता की आंखो में धूल झोंकना मात्र है। धूर्तों द्वारा तैयार किए गए ऐसे संन्यासियों, साधु-संतों से सावधान रहें।
~ विशुद्ध चैतन्य
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