ना तो ये लोग प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पर विश्वास करते हैं ना ही Homeopathy पर

प्रायोजित #Sponsored फर्जी महामारी का आतंक फैलाकर घर-घर जाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेपने के बाद….अब ये कौन सी नयी नौटंकी शुरू कर दिया फार्मा माफियाओं के जरखरीद गुलाम सरकारों ने ?

जया किशोरी हो, या मुरारी बापू या ऐसे ही अन्य कोई कथावाचक कुछ भी गलत नहीं कर रहे। जनता के जीवन में इतना दुख और पीड़ा है कि यदि ये लोग न हों, तो आत्महत्या कर लेगी अधिकांश जनता। यही लोग हैं जिनकी वजह से जनता का मन बहल जाता है, भूल जाती है कि उनके चुने हुए नेता माफियाओं और देश के लुटेरों के साथ मिलकर पूरे देश को दीमक की तरह चट कर रहे हैं।
और जब लाखों जनता का ध्यान शोषण, भ्रष्टाचार, महंगाई, भुखमरी भुलाकर अच्छे दिनों के सपनों वाली गहरी नींद में ले जाकर सुख प्रदान करते हैं, तो दस-बीस लाख क्या, सौ-पचास करोड़ रुपए भी चार्ज करें तो कम ही है।
इन्हीं की माया है कि जनता देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध खड़े होने की बजाय ईश्वर, बाबा, गुरु, नेता, अभिनेता आदि की भक्ति के नशे में धुत्त पड़ी रहती है और लुटेरे शान से देश को लूटते और लुटवाते हैं।
दुनिया समझती है कि ये लोग समाज को धार्मिक और आध्यात्मिक बनाते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि इनका मुख्य कार्य होता है भीड़ को सम्मोहित करके ज़ोम्बी और दिमाग से पैदल भक्त और गुलाम बनाना। माफिया और देश व जनता के लुटेरों के बहुत प्रिय होते हैं ऐसे लोग और वे इनके सारे नखरे उठाने के लिए तैयार रहते हैं।
ऐसे गुरु किस प्रकार तैयार किए जाते हैं समझना हो तो Trance (2020) नामक फिल्म अवश्य देखिये।
अधिकांश जनता स्वतन्त्रता नहीं, पिंजरा और परतंत्रता खोजती है। क्योंकि स्वतन्त्रता बहुत महँगा सौदा है। जबकि पिंजरा और परतंत्रता बहुत सस्ता होता है…केवल अपना ईमान, ज़मीर, जिस्म, भूमि, खेत, गहने, जेवर नीलाम करके पाया जा सकता है।
इसीलिए दुनिया की अधिकांश जनता केवल नौकरी पाने के लिए पढ़ाई करती है, शिक्षित होने के लिए नहीं। यही कारण है कि अपने खेत, जमीन बेचकर महँगी से महँगी डिग्रियाँ बटोर लेने वाले लोग इतने भी शिक्षित नहीं हो पाते, जितने कि स्वतंत्र विचरण करने वाले पशु-पक्षी होते हैं।
यदि परतंत्रता यानि दासता (Slavery) की मानसिकता ना होती मानव प्रजाति में, तो मुट्ठीभर नरपिशाच अपने पालतू नेताओं, डॉक्टर्स, मीडिया, न्यायाधीशों, प्रशासनिक अधिकारियों और सरकारों के माध्यम से प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर फर्जी सुरक्षा कवच लेने के लिए बाध्य नहीं कर पाते किसी को और ना ही पूरे विश्व को बंधक बनाकर लूट-पाट कर पाते।
पाश्चात्य संस्कृति में रचे बचे आधुनिक साधु संतों, राजनेताओं और उनके भक्तों से बड़े ढोंगी-पाखंडी समस्त विश्व में और कोई नहीं हो सकता।
अपने ही देश की संस्कृति, शिक्षण और चिकित्सा पद्धति के विरुद्ध खड़े ये लोग न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के कट्टर समर्थक हैं।
आधुनिक साधु संत भले धोती, कुर्ता या भगवा वस्त्र धारण करते हों, भले संस्कृत के श्लोक, चंडी, गायत्री और गीता-रामायण बाँचते फिरते हों। लेकिन चिकित्सा पद्धति इन्हें पाश्चात्य ही रास आती है।
भले इन्हें पता हो कि डायबिटीज़ का कोई दवा या इलाज नहीं है एलोपैथी में, भले इन्हें पता हो कि प्रायोजित महामारी और उसका सुरक्षा कवच फर्जी है, लेकिन फिर भी विरोध नहीं करेंगे, बल्कि बढ़-चढ़कर उसका प्रचार करेंगे।
समझ में नहीं आता कि जब पाश्चात्य चिकित्सा और जीवन शैली से इतने ही प्रभावित हैं, तो फिर ढोंग क्यों करते हैं गायत्री, चंडी, पूजा, पाठ, हवन, यज्ञ का और क्यों बने फिरते हैं साधु-संन्यासी ?
ना तो ये लोग प्राकृतिक चिकित्सा पर विश्वास करते हैं, ना ही जर्मन की चिकित्सा पद्धति #Homeopathy पर विश्वास करते हैं और ना ही चाइनीज़ या जापानी चिकित्सा पद्धति पर विश्वास करते हैं। डॉक्टर जब तक अँग्रेजी ना झाड़े, तब तक इन्हें विश्वास ही नहीं होता कि वह डॉक्टर है और वह इलाज कर सकता है। लेकिन अँग्रेजी झाड़ने वाला डॉक्टर भले प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेपकर लाखों को मौत के मुँह में पहुंचा दे, किसी को कोई शिकायत नहीं होगी।
यही कारण है कि मैं इन जोम्बियों और ढोंगियों से दूर रहना पसंद करता हूँ।
~ विशुद्ध चैतन्य
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