प्रायोजित सरकारी महामारी 2023 श्रंखला का प्रथम चरण आरम्भ

माफियाओं, सरकारों और राजनैतिक पार्टियों के भक्तों, भेड़ों और जोम्बियों तैयार हो जाओ बिलों में दुबकने के लिए !!!

व्यावसायिक पर्यटन केन्द्रों में रूपांतरित हो चुके मंदिरों, तीर्थों में विराजमान ईश्वर/अल्लाह, देवी-देवताओं को चढ़ाये गए रिश्वत और कमीशन के एवज में जो भी काम करवाने हो, जल्दी करवा लो। क्योंकि वे भी प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर मंदिरों, तीरथों पर ताला लगाकर फरार होने वाले हैं ।
पढ़े-लिखे लोग क्यों नहीं हो पाये समझदार ?
सदियों से हम सुनते आए हैं कि पढ़-लिख लो अन्यथा ढ़ोर (मवेशी) बने रह जाओगे। अर्थात यदि पढ़ाई-लिखाई नहीं की तो पशु समान रह जाओगे।
लेकिन पढ़ने-लिखने और महँगी-महँगी डिग्रियाँ बटोरने के बाद भी लोग ढ़ोर ही रह गए, तो क्यों ?
जितने समझदार पढ़े-लिखों की भीड़ में मिलेंगे, उससे कई गुना अधिक समझदार अनपढ़ों यहाँ तक कि पशु-पक्षियों में मिल जाते हैं। क्यों ?

क्योंकि शिक्षा के नाम पर जो ज्ञान परोसा जा रहा है, वह इंसान को विवेकवान मानव नहीं, कोल्हू का बैल, ज़ोम्बी और गुलाम ही बना रहा है। सारा शिक्षातन्त्र इस प्रकार तैयार किया गया है कि डिग्रियाँ बटोरने के बाद इंसान सिवाय नौकरी करने के और कुछ न कर पाये। बचपन से ही यह बात बैठा दी जाती है कि इंसान का जन्म चाकरी और गुलामी करने के लिए हुआ है, इसीलिए पढ़ाई करो, वरना नौकरी नहीं मिलेगी।
और पढ़ाया कुछ इस प्रकार जाता है कि इंसान भूल ही जाता है कि वह इंसान है और उसमें बुद्धि-विवेक भी है चिंतन मनन करने के लिए। पशुओं के समान बिना कोई प्रश्न किए केवल आदेशों का पालन करता चला जाता है। इतना भी विचार करने की आवश्यकता नहीं समझता कि जिन आदेशों का वह पालन कर रहा है, वह मानवीय है भी या नहीं ?
जब फार्मा माफियाओं के आतंकियों ने प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाना शुरू किया था और देश के नागरिकों को पशुओं की तरह लाठी-डंडों से हाँककर घरों में कैद करना शुरू किया था, तभी मेरे मन में प्रश्न उठा था। और वह यह कि यह कैसी महामारी है जो राजनैतिक पार्टियों की रैलियों में नहीं जा रही, जबकि स्कूल, कॉलेज, मंदिर, बाजार यहाँ तक कि शादी ब्याह में भी पहुँच जाती है ?
सोशल मीडिया पर यह प्रश्न बार-बार उठाया, लेकिन पढ़े-लिखों पर कोई असर नहीं पड़ा। सभी भेड़ों-बत्तखों की तरह हाँके जाते रहे। उल्टे मुझे ही मेडिकल साइंस पढ़ाने लगे अपने-अपने घरों में दुबक कर। बड़े-बड़े डॉक्टर और साइंटिस्ट्स भी प्रश्न नहीं उठा पाये। बहुत आश्चर्य हुआ था मुझे इनकी शिक्षा पर और साथ ही विश्वास भी हो गया कि भले इनके पास महँगी-महँगी डिग्रियाँ हैं, लेकिन ये लोग शिक्षित और विवेकवान होने चूक गए। इन्होंने जो पढ़ाई की वह भी नौकरी पाने के लिए की थी, न कि शिक्षित होने के लिए। और यही कारण है कि आज ये लोग फार्मा माफियाओं और देश के लुटेरों द्वारा भेड़ों-बत्तखों की तरह हाँके जा रहे हैं।
फार्मा माफियाओं ने कहा कि वैक्सीन से सुरक्षा मिलेगी लेकिन नहीं मिली। फिर दूसरी डोज़ लायी गयी, फिर तीसरी डोज़ लायी गयी और अब चौथी भी आ गयी। लेकिन सुरक्षा नहीं मिली। उल्टे लोगों की इम्यूनिटी घट गयी वैक्सीन लेने के बाद और कई अन्य नयी बीमारियों से ग्रस्त हो गए। कई लोग पूरी तरह स्वस्थ होते हुए भी कार्डियक अरेस्ट से टपकने लगे। लेकिन पढ़े-लिखे भेड़ों और राजनैतिक पार्टियों के भक्तों पर कोई असर नहीं पड़ा।

एक खबर अब तेजी से फ़ेल रही है: नमक खाने से 2030 से पहले हो सकती हैं 70 लाख लोगों की मौत, WHO ने किया आगाह
वैक्सीनेशन से पहले कोई नहीं मर रहा था नमक खाकर और मर भी रहा था, तो डबल्यूएचओ को कोई चिंता नहीं थी। लेकिन अब चूंकि कोविड-19 वैक्सीन पर उँगलियाँ उठने लगीं हैं बेमौत मर रहे लोगों के कारण, तो नमक को दोषी बना दिया।
जागरूक लोग कोविड-19 वैक्सीन ठोंके जाने से पहले ही सावधान कर रहे थे कि कोविड वैक्सीन नागरिकों की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि जींस में छेड़-छाड़ करके इन्सानों को दिमाग से पैदल भेड़, बत्तख गुलाम बनाने के लिए लगाया जा रहा है। जागरूक लोग निरंतर कह रहे थे कि इन वैक्सीन से अधिकांश लोग बेमौत मारे जाएँगे और जो बच जाएँगे वो ज़ोम्बी और मोदीभक्तों की तरह दिमाग से पैदल गुलाम बन जाएंगे। लेकिन पढ़े-लिखे वैज्ञानिक सोच के लोग और राजनैतिक पार्टियों के भक्तों ने जागरूक लोगों को कोन्स्पिरेसी थियरिस्ट कहकर मज़ाक उड़ाया और वैक्सीनेशन का न केवल प्रचार-प्रसार किया, बल्कि स्वयं भी लिया और अपने परिवार को भी लगवाया।
और अब नयी खबर आयी है जो कह रही है कि कोरोना से जींस परिवर्तन हो रहा है। यानि यहाँ भी वैक्सीन दोषी नहीं, दोषी है फर्जी महामारी।
पूरे विश्व की जनता को फार्मा माफिया और शैतानी ताक़तें मिलकर इतनी आसानी से मूर्ख कैसे बना पा रहीं हैं ?
केवल एक ही कारण है और वह यह कि शिक्षा पद्धति ही ऐसी बनाई गयी है कि चाहे कोई कितनी ही बड़ी बड़ी डिग्रियाँ अर्जित कर ले, रहेगा वह ढ़ोर ही। और हाँका जाएगा ढोरों की तरह क्योंकि विवेकबुद्धि का प्रयोग करना सिखाया ही नहीं गया कभी माफियाओं द्वारा स्थापित शिक्षण केन्द्रों द्वारा। और यही कारण है कि आज समस्त विश्व माफियाओं और लुटेरों का गुलाम बनकर रह गया। भूल ही गया इंसान कि उसका जन्म भेड़-बत्तख बनने के लिए नहीं, विवेकवान इंसान बनने के लिए हुआ था।
~ विशुद्ध चैतन्य
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