चाहे किसी भी पंथ या दड़बे से हों, पहुँचना सभी को एक ही जगह है

आप हिन्दू हैं या मुस्लिम, आप सिक्ख हैं या ईसाई, आप यहूदी हैं या पारसी, आप भाजपाई हैं या कॉंग्रेसी, आप सपाई हैं या बसपाई, आप वामपंथी हैं या दक्षिणपंथी, आप उदारपंथी हैं या उधारपंथी, आप आनंदमार्गी हैं या परमानन्दमार्गी, आप संघी हैं या मुसंघी, मोदीवादी हैं या अंबेडकरवादी, आप गाँधीवादी हैं या गोडसेवादी, आप आस्तिक हैं या नास्तिक, आप धार्मिक हैं या अधार्मिक, आप नैतिक हैं या अनैतिक, आप सरकारी हैं या गैर सरकारी, आप शाकाहारी हैं या मांसाहारी, आप फलाहारी हैं या दुग्धाहारी….या चाहे आप किसी भी अन्य मत-मान्यताओं, परम्पराओं, पंथों के अनुयायी हैं। परस्पर बैर मत रखिए, क्योंकि आप सभी भेड़ें ही हैं। केवल मार्ग भिन्न हैं, केवल मान्यताएँ भिन्न हैं, केवल परम्पराएँ, कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ, भजन कीर्तन, स्तुतिवंदन की शैलियाँ भिन्न भिन्न हैं। लेकिन मंजिल सभी की एक ही है और वह है माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की चाकरी और स्तुति-वंदन करना।
भले आपकी पूजा-पद्धतियाँ भिन्न-भिन्न हों, भले आपके दड़बे भिन्न-भिन्न हों, लेकिन नियति एक ही है और वह है पालतू मवेशियों की तरह माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के बनाए दड़बों में कैद रहना। आपके भोजन में कौन सी दवाई मिलाई जाएगी, आपके शरीर में कौन सा फर्जी सुरक्षा कवच चेपा जाए, कौन सी चिप लगाई जाएगी….यह सब माफिया और उनकी गुलाम सरकारें तय करती हैं। इसलिए स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की भूल ना करें। क्योंकि भेड़ें केवल भेड़ें ही होती है और भेड़ों और शूद्रों में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं होता।
और नैतिक अनैतिक, पाप-पुण्य जैसा भी कुछ नहीं होता। केवल दड़बों का ही अंतर है। आप गरीब हैं, कमजोर हैं, तो आप सच भी कहेंगे तो पाप हो जाएगा, अपराध हो जाएगा। लेकिन यदि आप अमीर हैं, सत्ता पक्ष के पाले में हैं, तो आप झूठ बोलें, पूरे देश को लूटें और लुटवाएँ, कत्ल-ए-आम करें, तो भी पुण्य हैं, न्याय है।
भेड़ों और शूद्रों (वेतन और पेंशनभोगी) की नियति है चाकरी करना, गुलामी करना और अधर्म, अन्याय, शोषण के विरुद्ध आवाज न उठाना, देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध आवाज न उठाना, माफियाओं के विरुद्ध आवाज न उठाना। लेकिन इस बात पर गर्व करना कि हम फलाने दड़बे से हैं, हमारे पूर्वज महान शिकारी थे, हमारे पूर्वज महान शाकाहारी थे, हमारे पूर्वज महान फलाहारी थे…..
यदि आप चाहते हैं कि अपराधबोध से मुक्त हो जाएँ, पाप भाव से मुक्त हो जाएँ, तो अपनी प्रवृति के अनुसार गुरु और दड़बों को चुनें। यदि आप ठग हैं, बदमाश हैं, लुटेरे हैं तो सत्ता पक्ष के दड़बों में चले जाएँ। वहाँ कोई आपको पापी, अपराधी नहीं कहेगा। यदि आप मांसाहारी हैं, तो गुरु और दड़बा वही चुनें जो मांसाहारी हो। क्योंकि शाकाहारी गुरु और दड़बा चुनेंगे, तो आजीवन आपको पापी, राक्षस, खूनी जैसे उपाधियों को स्वीकारना पड़ेगा, बार बार आपकी आत्मा को चोट पहुंचाई जाएगी। और यदि आप शाकाहारी हो भी गए, तो भी आपका तमाशा बना दिया जाएगा और जगह जगह आपको बुलाया जाएगा यह बताने कि देखो पहले मैं राक्षस था, मांसाहारी था, जीव हत्याएँ करता था फिर इस दड़बे में आया और दड़बे के गुरुजी के आशीर्वाद से मैं आज शाकाहारी बन गया और अब दुनिया का महान सात्विक इंसान बन गया। अब मैं देश को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी करूँ या गुलामी करूँ मैं सात्विक इंसान हूँ और मेरे दड़बे का इकलौता ईश्वर मुझसे बहुत प्रसन्न रहता है। मेरे दड़बे का इकलौते ईश्वर और गुरु मुझसे इतने प्रसन्न हैं कि मुझे नौकरी दिला दी, बंगला, कार दिला दिया और अब बड़े शान से देश व जनता के लुटेरों की चाकरी कर रहा हूँ। पूरी दुनिया में मेरा सम्मान हो रहा है।
सारांश यह कि चाहे किसी भी पंथ, मार्ग या दड़बे से हों, करना एक ही काम है और वह है पूजा, अर्चना, भजन-कीर्तन और अपने गुरु, आराध्य की जय-जय। पहुँचना सभी को एक ही जगह है और वह है माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के बाड़े में मवेशियों का जीवन जीने के लिए। क्योंकि दुनिया में आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की जय-जय करना ही पड़ेगा।
~ विशुद्ध चैतन्य
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