अधार्मिक होना ही आधुनिक समाज में धार्मिक होना है

कुछ लोग #introvert अंतर्मुखी हो जाते हैं क्योंकि वे #name, #fame नहीं चाहते।
वे समझ चुके होते हैं कि दुनिया जिन्हें मान-सम्मान दे रही है, या तो वे माफियाओं के गुलाम हैं, या फिर देश व जनता के लुटेरों के सहयोगी। या फिर वैश्य और शूद्रों के लाभ के लिए बलि का बकरा बनो, ताकि मरणोपरांत लोग जय जय करें, प्रतिमाएँ बनाकर फूल माला चढ़ाएँ, मंदिर बनाएँ और उन मंदिरों पर आने वाले चढ़ावे से लक्ज़री जीवन जीएं।
दुनिया में जितने भी लोगों ने समाज, देश के कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुतियाँ दीं, वे सभी आज पूजनीय हैं, वंदनीय हैं। लेकिन अनुकरणीय नहीं। दुनिया उनका अनुकरण नहीं करती, केवल स्तुति-वंदन करती है।
इसीलिए पूरी दुनिया आज माफियाओं के अधीन है। स्वतन्त्रता सेनानियों ने क्यों अपने प्राणों की आहुतियाँ दी थी, उससे किसी को कोई मतलब नहीं। केवल पुण्यतिथि पर माला डाल दिया, देशभक्ति का गीत बजा दिया डीजे पर और बन गए देशभक्त। फिर देश व जनता के लुटेरों की चापलूसी करो, या गुलामी करो, आप देशभक्त ही कहलाएंगे।
साधु-संतों को ही देख लो….दुनिया भर के परहेज करते रहते हैं। प्याज लहसुन मत खाओ, मांसाहार मत करो, शराब मत पीओ…..लेकिन प्याज लहसुन, मांस और शराब युक्त एलोपेथिक दवाएं ले सकते हैं। अपना गिलास और बर्तन किसी दूसरे को छूने भी नहीं देते जो साधु-संत, वे अपना जिस्म सौंप देते हैं डॉक्टर्स को गिनी पिग की तरह प्रयोग करने के लिए।
साधू संतों का कार्य होना चाहिए था जनता को माफियाओं के चंगुल से बाहर निकलने के उपाय बताना। लेकिन आज साधु-संत स्वयं माफियाओं के एजेंट्स बने घूम रहे हैं। बड़े बड़े चमत्कारी साधु-संत भी प्रायोजित सुरक्षा कवच लिए घूम रहे हैं प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाने वालों के सहयोगी बनकर।
प्राकृतिक चिकित्सा से तो आधुनिक साधु-संतों का संबंध ही टूट गया, अपोलो, फोर्टिस, मेदानता जैसे अस्पतालों से नीचे उतरना गरिमा के विरुद्ध मानते हैं ये लोग।
आज अधिकांश लोग साधु संन्यासी इसलिए नहीं बन रहे, क्योंकि उन्हें कोई आध्यात्मिक उत्थान करना है। बल्कि इसलिए बन रहे हैं कि आज साधूपना भी एक प्रोफेशन है और ऐसा प्रोफेशन जिसमें हुनर हो, तो लाखों करोड़ों कमा सकते हैं और वह लक्ज़री लाइफ जी सकते हैं, जो किसी और प्रोफेशन में नहीं मिल सकता।
सारांश यह कि यदि आप मौलिक और स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं, तो समाज, सरकार और आपके अपने ही परिवार के लोग आपका सम्मान नहीं करेंगे। लेकिन यदि आप माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों की गुलामी करते हैं, उनके पालतू भेड़ बनकर जी सकते हैं, तो परिवार ही नहीं, समाज, सरकार और पूरी दुनिया सम्मानित करेगी, जय जय करेगी।
क्योंकि अधार्मिक होना ही आज धार्मिक होना है, देशद्रोही होना ही आज देशभक्ति है, अनैतिक होना ही आज नैतिकता है। और जो माफियाओं और लुटेरों का विरोधी है, वह देशद्रोही और अधर्मी माना जाता है।
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