डिग्रीधारी विद्वानों की विद्वता पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है

गीता, कुरान, वेद, पुराण, बाइबल, कानून, चिकित्सा विज्ञान, शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान के विद्वानों और समस्त पढ़े-लिखे डिग्रीधारियों के ज्ञान पर से उसी दिन विश्वास उठ गया था, जिस दिन प्रायोजित महामारी के आतंकियों ने पूरे विश्व में लॉकडाउन लगाया लेकिन दारू के ठेके खुले रखे थे।
उसी दिन इनकी विद्वता पर प्रश्नचिन्ह लग गया था, जब इन्होंने यह प्रश्न उठाना आवश्यक नहीं समझा था कि प्रायोजित महामारी जब शादी ब्याह, स्कूल, कॉलेज, तीर्थ, मंदिर, बाजार में पहुंच सकती है, तो ठेका और राजनैतिक रैलियों में जाने से क्यों थर्राती है ?
आज भी किसी बच्चे को स्कूल में एडमिशन करवाना होता है, तब प्रायोजित महामारी का टेस्ट और सुरक्षा कवच लेना अनिवार्य है, अन्यथा एडमिशन नहीं मिलता। अस्पतालों में प्रायोजित महामारी का टेस्ट करवाना अनिवार्य है, अन्यथा इलाज नहीं होता।

और सरकारें कहती हैं कि देश में संविधान लागू है और कोई भी किसी पर किसी प्रकार का दबाव नहीं बना सकता टेस्ट या सुरक्षा कवच लेने का। संविधान तो यह भी कहता है कि यदि कोई एलोपैथिक इलाज नहीं लेना चाहता, तो भी उसे बाध्य करना व्यक्ति के मौलिक मानवाधिकारों का हनन है। लेकिन सबकुछ चल रहा है और ये बड़े बड़े विद्वान, शास्त्रों, कानूनों, और विज्ञान के ज्ञाता मुंह पर कच्छा पहनकर मूक-बघिर बने हुए बेशर्मी के साथ।
अब आप ही बताइए ऐसे गए गिरे हुए, बिके हुए कायर भेड़ों की विद्वता और शिक्षण पद्धति पर मेरे जैसा अनपढ़ विश्वास और सम्मान करे तो करे कैसे और क्यों ?
~ विशुद्ध चैतन्य
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