पैसा कमाने की मशीन या गुलाम बने बिना भी जिया जा सकता है

जिस दिन से भगवा चोला धारण किया था, पढे-लिखे गुलामों ने मुझे भिखारी, मुफ्तखोर, कामचोर कहना शुरू कर दिया था। बहुत समझाया उन्हें कि संन्यास लिया ही इसलिए जाता है कि व्यक्ति स्वयं को खोज सके, परतंत्रता से मुक्त हो सके और स्वतन्त्रता पूर्वक जी सके।
लेकिन पढे-लिखे गुलामों की समझ में नहीं आया कि कोल्हू का बैल, पैसा कमाने की मशीन, या गुलाम बने बिना भी जिया जा सकता है। आज भी लोग यही मानकर जीते हैं कि जो संन्यासी व्यापार नहीं कर रहा, नौकरी नहीं कर रहा, गुलामी नहीं कर रहा, वह दुनिया पर बोझ है। अक्सर पूछ बैठते हैं लोग मुझसे:
“अच्छा तो आप संन्यासी हैं ! काम क्या करते हैं ?”
जब भी ऐसा कोई प्रश्न आता है मेरे सामने तो मुझे उस बांसुरी वादक की याद आ जाती है, जो आकाशवाणी में बांसुरी वादक के रूप में कार्य करता था।
जब आकाशवाणी में उसकी नौकरी लग गयी बांसुरी वादक के रूप में, तब उसके घर में रिश्ते भी आने लगे। लड़की वाले उससे पूछते कि करते क्या हो, तो वह उत्तर देता, “जी बांसुरी बजाता हूँ।”
लड़की वाले कहते, “जी बहुत अच्छा शौक है, श्री कृष्ण भी बांसुरी बजते थे। लेकिन काम क्या करते हो ?”
बस मेरे साथ भी यही समस्या हो जाती है। इसीलिए जब भी कोई मुझसे ऐसा कोई प्रश्न करता था, तो उत्तर में यही कहना पड़ता है कि बेरोजगार संन्यासी हूँ और आश्रम में रहता हूँ।
कर्म किए जा मालिकों के लिए, फल की चिंता मत कर
गुलामों और कोल्हू के बैलों से भरी दुनिया में यदि कोई नौकरी या व्यापार नहीं कर रहा होता है, तो वह बेरोजगार माना जाता है। क्योंकि कोल्हू के बैलों को यही सिखाया गया है कि कर्म किए जा मालिकों के लिए, फल की चिंता मत कर।
इसीलिए राजनेताओं, पार्टियों, कंपनियों, संगठनों के लिए कार्य करने वाले फल की चिंता किए बिना कर्म किए चले जाते हैं। बदले में चारा और पानी मिलता रहता है, उसी में संतुष्ट रहते हैं। फिर भले उनके किए कर्म से देश लुट रहा हो, जनता का शोषण हो रहा हो, फर्जी महामारी के आतंकी पूरे विश्व को बंधक बनाकर लूट पाट कर रहे हों…..बैलों और गुलामों को कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि कर्म किए जा फल की चिंता मत कर।
मुझे लगा कि अब इन पढे-लिखों को समझाना ही पड़ेगा कि मानव का जन्म गुलामी और चापलूसी करने के लिए नहीं हुआ है। इन्हें यह भी नहीं पता कि बैलों, गधों, मवेशियों और इन्सानों के सिवाय दुनिया का कोई भी प्राणी चाकरी और गुलामी नहीं करता दो वक्त की रोटी के लिए। और जब से इस विषय पर लिखना शुरू किया, वे सभी सहयोगी और शुभचिंतक फरार हो गए, जो किसी जमाने में हर महीने कुछ न कुछ सहयोग राशि भेजा करते थे।
ऐसा होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि मैंने जो चोट की है अपने लेखों के माध्यम से, वह बहुत घातक थी और यह मैं जानता था। लेकिन ऐसे लेख मैंने केवल इसलिए लिखे ताकि गुलामों को होश में ला सकूँ। अब यदि कोई गुलामी को ही जीवन का उद्देश्य मान ले और मुझे अपना शत्रु मान ले, तो मेरा कोई दोष नहीं। मैं तो केवल इन्सानों को कोल्हू का बैल और गुलाम बनने से रोकना चाहता हूँ….बाकी आपकी मर्जी।
अपनी भावनाएं आहत करने की बजाए मुझे ब्लॉक कर दें
यदि आपको देश व जनता के लुटेरों और माफियाओं की गुलामी रास आ चुकी है, तो मेरा लेख पढ़कर अपनी भावनाएं आहत करने की बजाए मुझे ब्लॉक कर दें।
और हाँ यह कभी न सोचें कि आप मेरी सहायता नहीं करेंगे, तो मैं भूखों मर जाऊंगा। लेकिन अभी भी होश में नहीं आए, तो आपके भूखों मरने की दिन अवश्य आ जाएंगे। और कितनों के तो आ चुके हैं क्योंकि नौकरी चली गयी, कारोबार ठप्प हो गया लेकिन माफिया-भक्ति की लत नहीं गयी।
~ विशुद्ध चैतन्य
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