ग़ुलाम शेर के आतंक से आतंकित प्रजा

कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। एक महान देश में एक खूंखार शेर का शासन था। उसके आतंक से ना केवल पूरा देश, बल्कि पूरा विश्व सहम गया था। पूरे विश्व की प्रजा अपने-अपने घरों में दुबक गयी थी मंदिर, मस्जिद, तीर्थों पर ताला लगाकर। केवल सरकारी ठेके ही खुले थे, ताकि दारू पीकर अपना डर कम कर सकें।
जब तक शेर जीवित रहा, पूरे देश की प्रजा डरी सहमी रही। फिर एक दिन शेर को प्रायोजित महामारी ने जकड़ लिया और कार्डियक अरेस्ट का शिकार होकर परलोक सिधार गया।
प्रजा बड़ी खुशी हुई कि शेर के आतंक से मुक्ति मिली। लेकिन प्रजा की खुशी अधिक देर टिकी नहीं और शेर के अंडरवियर फ्रेंड ने सत्ता संभाल लिया। यह शेर पहले वाले से भी बड़ा आतंकी निकला। अब क्या खाना है, क्या पीना है, किस बीमारी के लिए कौन सा इलाज लेना है, किस चिकित्सा पद्धति से इलाज लेना है, कैसे जीना है….आदि सबकुछ नया शेर तय करने लगा।
जनता फिर अपने माथा पीटने लगी, किस्मत को कोसने लगी। लेकिन किसी ने भी शेर के मालिक को खोजने का प्रयास नहीं किया। किसी ने भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि जो शेर जंगल में भी जीव जंतुओं को परेशान नहीं करता, वह पूरे देश की जनता का जीवन क्यों नर्क बना रहा है ?
यदि जानने का प्रयास किया होता तो समझ में आ जाता कि पूरे देश में आतंक शेर नहीं, शेर का मालिक मचा रहा था। शेर तो बेचारा मालिक के इशारे पर निकल आता था यह सोचकर कि जनता उसे देखकर खुश होती है और थाली, ताली, बर्तन बजाकर नाचती है।
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