दुर्भाग्य से आज गुरु दुर्लभ हो गए

पिता, शिक्षक #Teacher और गुरु में अंतर होता है। गुरु को पिता से भी अधिक महत्व दिया गया है।
जानते हैं क्यों ?
पिता अपने बच्चे को अपनी तरह बनाना चाहता है या फिर वह बनाना चाहता है, जो वह स्वयं नहीं बन पाया। क्योंकि पिता अपनी संतानों को अपनी संपत्ति और अपना विस्तार (वंश) मानता है।
शिक्षक के लिए छात्र आय और आजीविका का स्त्रोत होता है। इसलिए वह छात्र को वही पारम्परिक, रट्टामार ज्ञान सिखाता है, जो उसने नंबर और नौकरी प्राप्त करने के लिए अर्जित किया। जो शिक्षक जितनी अच्छी तरह से कूड़ा-कर्कट रटा देता है छात्र को, वह उतना ही महान कहलाता है। क्योंकि उस रट्टामार शिक्षा से छात्र को अच्छे नंबर मिलते हैं और उन नंबरों के कारण अच्छी नौकरी मिलती है और नौकरी मिलने के बाद वह छात्र एक उच्चकोटी का गुलाम या कोल्हू का बैल बनकर माता-पिता और समाज का गौरव बढ़ाता है।
जबकि गुरु उपरोक्त दोनों से बिलकुल अलग होता है। गुरु अपने शिष्य के भीतर छुपी हुई प्रतिभा को खोजता है, तराशता है, निखारता है और समाज को एक कीमती हीरा भेंट करता है।
दुर्भाग्य से आज गुरु दुर्लभ हो गए !
क्योंकि गुरु केवल दीक्षा देने और गुरु-दक्षिणा लेने के सिवाय और कोई योग्यता नहीं रखते। बहुत से गुरु तो ऐसे हैं थोक में दीक्षा देते हैं और फिर उन्हें अपना या अपनी संस्था का प्रचारक बनाकर भूल जाते हैं।
आज गुरु शिष्य भी बनाते हैं तो इस आस में बनाते हैं कि वह शिष्य उनकी तस्वीर या प्रतिमा की पूजा करेगा, उसके नाम का मंदिर बनाएगा। बाकी उन्हें अपने शिष्यों से कोई मतलब नहीं रहता।
अधिकांश गुरु या तो शिक्षक (Teacher/Tutor) होते हैं, या फिर पंडा, पुजारी, मौलवी, पादरी होते हैं। अर्थात रट्टामार ज्ञान थोपने वाले। और इसीलिए चैतन्य और जागृत मानवों की संख्या लुप्त होती चली जा रही और माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलामों और भक्तों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।
गुरु का बहुत महत्व है जीवन में

Ip Man taught all of his students differently, depending on their natural ability, personality, understanding, how he felt Wing Chun would best suit them and the level of trust that he had with them.
गुरु किसी भी क्षेत्र का हो, वह सभी शिष्यों को एक ही तरह से नहीं सिखाएगा।
उदाहरण के लिए ब्रूसली के गुरु आईपी मेन अपने प्रत्येक शिष्यों को अलग अलग तरह से सिखाते थे। इसका कारण यह था कि प्रत्येक शिष्य की सीखने की क्षमता, लगन, मानसिक संतुलन आदि अलग-अलग होती है। सभी को एक ही साथ बराबर की शिक्षा नहीं दी जा सकती यदि उसे वास्तव में शिक्षित बनाना है।
वर्तमान शिक्षा पद्धति में गुरु का कोई स्थान नहीं है। गुरु की जगह टीचर और ट्यूटर आस्तिव में आ गये हैं बिलकुल वैसे ही जैसे ऋषियों की जगह साधू-समाज के ट्रेंड साधू-संत और पंडित-पुरोहित आ गये।
ऋषियों और गुरुओं के लुप्त होने के साथ ही लुप्त हो गया शिक्षा और व्यक्तित्व विकास। शिक्षा की जगह ले ली डिग्रियों ने और आज आप भले ही शिक्षित न हों, डिग्रियाँ होनी जरुरी है। आज टीचर केवल आप पर वह थोपते हैं जिसका रट्टा लगाकर उन्होंने डिग्रियाँ बटोरीं। वे न तो बच्चों को कभी समझने का प्रयास करते हैं और न ही बच्चे की योग्यताओं को निखारने का। केवल किताबें रटा दी और अपनी तनखा बटोर ली उनका शिक्षक धर्म पूरा हो गया। बाकी सारी जिम्मेदारी ट्यूटर की होती है। बच्चे को फिर अलग से जाकर ट्यूटर के पास बैठना पड़ता है और उसकी अलग से फीस देनी पड़ती है।
यही कारण है कि भारत में अब शिक्षितों का अभाव हो गया और पढ़े-लिखे अशिक्षित डिग्रीधारियों की भरमार हो गयी। हर वर्ष लाखों डिग्रीधारी लावारिस छोड़ दिए जाते हैं स्कूलों द्वारा बेरोजगारों की लाइन में खड़े होने के लिए। और नौकरियां हैं कि हर वर्ष घटती ही चली जा रहीं हैं।
इसीलिए गुरु का बहुत महत्व है जीवन में। जिसे गुरु मिल गया, समझो उसका जीवन धन्य हो गया। लेकिन गुरु को खोजने से पहले खुद को खोजिये और जानिये कि आप स्वयं अच्छा शिष्य होने की योग्यता रखते हैं या नहीं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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