ईश्वर ने किसी को भी नौकर या ग़ुलाम बनाकर नहीं भेजा

निकम्मा अर्थात जो कमा न रहा हो या जिसके पास कमाई का कोई साधन न हो।
उदाहरण: बेरोजगार, अयोग्य, असफल व्यक्ति।
मुफ्तखोर अर्थात जो बिना कीमत चुकाए खा रहा हो।
उदाहरण: भिखारी, वे साधु-संन्यासी जिनके पास अपना कोई व्यवसाय न हो, जो भीख या दान पर आश्रित हों।
इन दो संबोधनों पर यदि ध्यान दें, तो ये दोनों ही सनातन धर्म #universal-law के विरुद्ध हैं।
क्योंकि ईश्वर ने किसी को भी नौकर बनाकर नहीं भेजा था और ना ही चाकरी, गुलामी करने के लिए भेजा था। ईश्वर ने प्रकृति की रचना ही ऐसी की है, जिसमें सभी प्राणियों को भरपूर आहार मिले, कोई भी प्राणी भूखा ना मरे।
प्रकृति ने कुछ भी व्यर्थ नहीं रचा, खाल से लेकर बाल तक, सभी का सदुपयोग हो जाता है प्राकृतिक जीवन चक्र में। यदि पत्ते भी पेड़ से टूट कर गिर जाते हैं, तो खाद बन जाते हैं।
प्रकृति ने विभिन्न स्वभाव, चरित्र व मानसिकता के प्राणियों का निर्माण किया और सभी परस्पर सहयोगी हैं और जीवन चक्र शृंखला को सुचारु रूप से चलाये रखने में योगदान देते हैं।
लेकिन कुछ धूर्त शैतानी शक्तियों ने मानव को अपना गुलाम बनाना चाहा। और उसके लिए उन्होंने विभिन्न षड्यंत्र किए और मानवों को यह समझाया कि जो नौकरी करता है, जो गुलामी करता है, जो अपने खेत, भूमि बेचकर डिग्रियाँ बटोरता है, करेंसी कमाता है, वही श्रेष्ठ है। लेकिन जो करेंसी नहीं कमा रहा, जो गुलामी नहीं कर रहा….वह मुफ्तखोर है, वह निकम्मा है।
कल ही कहीं पढ़ने मिला कि अंबानी अब बाल काटेगा यानि नाई की दुकान खोलेगा।
मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि अंबानी को अब इस उम्र में नाई की दुकान खोलने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
क्या अंबानी बेरोजगार है ?
क्या अंबानी असफल व्यक्ति है ?
क्या अंबानी के पास कोई डिग्री या डिप्लोमा नहीं है कि वह कहीं अच्छी नौकरी कर ले ?
एक गरीब नाई के बेटे को शर्म आती है डिग्रियाँ बटोर लेने के बाद अपने ही बाप की दुकान में करने में। कहता है कि इतनी पढ़ाई क्या बाल काटने के लिए की थी मैंने ? मुझे तो सरकारी नौकरी करनी है, मुझे तो मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करनी है, मुझे तो विलायत में सेटल होना, भले वहाँ झाड़ू-पोंछा ही क्यों करना पड़ेगा दूसरों के घरों में।
लेकिन अंबानी अब नाई की दुकान खोलेगा।
क्यों ?
क्योंकि उसकी हवस खत्म नहीं हो रही। वह हर किसी को अपना गुलाम बनाना चाहता है। और अंबानी, अदानी जैसे लोग स्वयं गुलाम हैं उनके, जो करेंसी का व्यापार करते हैं। जो आपसे आपकी प्राकृतिक धन-सम्पदा, स्वतन्त्रता, आजीविका छीनकर डिजिटल करेंसी नामक वहम सौंपना चाहते हैं। ऐसी करेंसी, जो न तो आपके हाथ में कभी होगी और ना ही आप उसके मालिक कभी बन पाएंगे। वे जब चाहेंगे आपको कंगाल कर सकते हैं।
आपके पास अपना कहने के लिए ना तो भूमि रहेगी, ना ही आजीविका का कोई साधन रहेगा, न ही कृषि के लिए बीज रहेंगे, न सिंचाई के लिए जल रहेगा। न ही पीने के लिए जल मिलेगा फ्री में। जो कुछ भी प्राकृतिक रूप से समस्त प्राणियों के लिए ईश्वर ने निःशुल्क दिया था, उन सभी पर इनहोंने आधिपत्य स्थापित कर लिया लिया। अब आपको एक एक बूंद जल की कीमत चुकानी पड़ेगी। और यदि आपके जेब में पैसा नहीं है और आप पीने के लिए जल मांगेगे, तो उनकी शर्तें माननी होगी। वरना आप मुफ्तखोर कहलायाएंगे, आप निकम्मे कहलएंगे।
क्या कभी किसी ने पूछने का साहस किया कि अंबानी, अदानी जो प्राकृतिक संसाधन लूट रहे हैं, उसकी कीमत किसे चुका रहे हैं ?
क्या जिन राज्यों से संसाधन लिया जा रहा है, वहाँ की जनता को शेयर दे रहे हैं अपनी कमाई का ?
आप कहेंगे कि सरकारों को दे रहे हैं, तो सरकारें भी तो उन्हीं की अपनी पालतू है। उन्हें शेयर देने से क्या जनता को मिल जाता है शेयर ?
चलिये मिल भी गया शेयर, तो फिर क्या जनता उनकी गुलाम हो गयी ?
जो संसाधन प्राकृतिक है, जो सभी के लिए है, समस्त प्राणी जगत के लिए ईश्वर ने निःशुल्क उपलब्ध करवाया है, उसका आधिपत्य कोई व्यक्ति या कंपनी या सरकार विशेष कैसे ले सकती हैं ?
क्या उन्होंने ईश्वर से पर्मिशन लिया है ?
यदि लिया है तो सार्वजनिक करे वह पर्मिशान लैटर ?
आप गरीबों से उसकी आजीविका का मध्याम तक छीन लेना चाहते हैं, केवल इसलिए कि पढे-लिखे लोग अब ज़ोमबी बन चुके हैं, दिमाग से पैदल हो चुके हैं विरोध नहीं करेंगे, बल्कि गुलाम बनने के लिए लाइन लगाकर खड़े मिलेंगे ?
इस तस्वीर को देखिये….ये बूढ़ा व्यक्ति क्यों लाचार है, क्यों उदास है, क्यों काम नहीं है इसके पास ?

क्योंकि बड़े बड़े मगरमच्छों ने इसका रोजगार छीन लिया। क्योंकि बड़े बड़े मगरमछों ने मोची का काम से लेकर नाई का काम तक छीन लिया। केवल इसलिए, क्योंकि उन्हें पूरी दुनिया को अपना गुलाम बनाना है। और पढ़े-लिखे मूर्ख इनकी मायाजाल में फँसकर पागलों की तरह डिजिटल करेंसी कमाने के लिए दौड़ रहे हैं।
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