पृथ्वी को ही गेस्ट हाउस समझ लिया
हमने पृथ्वी को ही गेस्ट हाउस समझ लिया। जिस प्रकार हम गेस्ट हाउस, फार्म हाउस में जाते हैं वैसे ही हम पृथ्वी पर भी आते हैं। जिस प्रकार गेस्ट हाउस के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं होता, वैसे ही पृथ्वी के प्रति भी हमारा कोई दायित्व नहीं है।
हम गेस्ट हाउस में छुट्टी मनाने के लिए ठहरते हैं, या अय्याशी के लिए या फिर बिजनेस डील के लिए.. ठीक वही सब हम पृथ्वी में भी करते हैं।
गेस्ट हाउस में नौकर रखते हैं जिनका दायित्व होता है साफ़ सफाई व व्यवस्था की और बदले में कुछ कागज़ के टुकड़े पकड़ा देते हैं उसे। वैसे ही हमने भी नौकर रख लिए हैं, पुलिस, नगरपालिका, दूरसंचार, सेना व अन्य प्रशासनिक अधिकारी के रूप में। हमारा दायित्व समाप्त हो गया अब।
हमको तो बस पैसे खर्च करने हैं और उनसे नैतिक-अनैतिक काम करवा लेने हैं। काम समाप्त हो गया निकल जाना है हमें, फिर कौन सा मुड़कर आना है ?
और कभी गलती से आ भी गये तो तब तक लोग भूल जायेंगे किसको याद रहता है इतना सबकुछ ?
भारतीय धर्मों में ही मान्यता है कि लौट के फिर आना होगा, यानि पुनर्जन्म होगा और अब कई उदाहरण उपलब्ध भी हैं। मोक्ष, जीवन-मरण से मुक्ति के लिए हर भारतीय प्रयत्नशील रहता है और मुझे लगता था कि ये लोग कोई सात्विक लोग होंगे जो ईश्वर को पाना चाहते हैं… लेकिन अब समझ में सबकुछ आ गया। ये लोग उस बच्चे की तरह हैं जो किचन में दूध का बर्तन गिरा कर चुपचाप अपनी माँ या पिताजी के गोद में दुबकजाना चाहते हैं कि कोई उस पर संदेह न करे।
ये लोग नफरत के बीज बोकर, जंगल और खेतों को हजम कर, कंक्रीट के जंगल खड़ा कर और दुनिया भर का कूड़ा करकट फेंककर… मोक्ष पाना चाहते हैं। विदेशी धर्मों और मतों के लोग तो मानते ही हैं कि एक ही जीवन है खुल कर जी लो.. जो उपद्रव करना है कर लो, जितनी गन्दगी फैलानी है फैला लो… कल इस गेस्ट हाउस में जो आएगा वह भुगतेगा या जो रह जाएगा वह भुगतेगा.. हमें तो लौट कर आना नहीं है।
जरा सोचिये यदि भारतीय मान्यताओं के अनुसार आपको फिर लौटना पड़ा तो क्या होगा ?
क्योंकि प्रकृति तो कोई भेदभाव नहीं करती। जिस प्रकार प्राकृतिक आपदाएं कोई भेदभाव नहीं करती, वह हिन्दू, मुस्लिम नहीं देखती, वह मंदिर-मस्जिद नहीं देखती… सभी को समान भाव से ध्वस्त करती है… ठीक उसी प्रकार पुनर्जन्म भी होगा ही। क्योंकि मोक्ष तब तक संभव नहीं जब तक आप जिस कार्य के लिए आये हैं, उसे पूरा नहीं कर लेते। जैसे एक विद्यार्थी तब तक अगली कक्षा में नहीं जा सकता जब तक वह शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेता।
हम पृथ्वी को नंगा करते चले जा रहे हैं, हरियाली नष्ट किये जा रहे हैं, प्लास्टिक और रासायनिक कूड़े से पृथ्वी को भरते जा रहे हैं…. कल हम जब लौट कर आयेंगे इसी पृथ्वी में तब बैठकर यही डायलॉग कहेंगे, “दुनिया अब रहने लायक नहीं रही, घोर कलियुग आ गया है… आदि इत्यादि।
ईश्वर ने यह पृथ्वी हमारे रहने के लिए दिया था घर के रूप में, लेकिन आपने दड़बों (फ्लैटों) को घर समझ लिया और पृथ्वी को गेस्टहाउस।
~विशुद्ध चैतन्य