नकारात्मकता और सकारात्मकता की परिभाषा

कहते हैं लोग मुझसे कि मेरे लेखों में सिवाय नकारात्मकता के और कुछ नजर नहीं आता। इसीलिए लोग मेरे लेखों को शेयर करना तो दूर, पढ़ना तक अब पसंद नहीं करते। केवल भक्त टाइप के लोग ही मेरे लेखों को पढ़ते हैं, समझदार लोगों को मेरे लेखों से कोई मतलब नहीं।
सभी समझदार लोग सकारात्मक लोगों के सकारात्मक लेखों को ही पढ़ना पसंद करते हैं। और इसीलिए सकारात्मक लोगों के फॉलोवर्स लाखों करोड़ों में हैं, जबकि मेरे फॉलोवर्स 10-12 हज़ार में सिमट कर रह गए।
सकारात्मक लोगों के अकाउंट में लाखों करोड़ों आ रहे हैं, मेरा अकाउंट मिनिमम बेलेन्स भी मेंटेन नहीं कर पा रहा।
यहाँ जो तस्वीरें दे रहा हूँ, वे उन लोगों की हैं, जो भारत के सर्वाधिक सकारात्मक व्यक्तित्वों में गिने जाते हैं।

लोग इनके दर्शन के लिए पागल रहते हैं, इनसे मिलने के लिए तरसते हैं। कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भविष्य में लोग इनके नाम पर नया पंथ, मजहब खड़ा कर लें, इनकी प्रतिमाएँ बनाकर पूजना शुरू कर दें, इनके नाम पर मंदिर, तीर्थ, दरगाह नामक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनाकर बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवा दें और स्त्रियाँ इनके नाम पर व्रत-उपवास करना शुरू कर दें।
कहते हैं लोग मुझसे कि मैं भी सकारात्मक लेख लिखा करूँ, सकारात्मकता फ़ैलाऊँ ताकि चारों और सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार हो और मेरी भी गरीबी दूर हो सके, धन की लक्ष्मी मुझपर भी अपनी कृपा बरसाए बिलकुल वैसे ही, जैसे दुनिया के इन महान सकारात्मक व्यक्तित्वों पर धनवर्षा कर रही है।
लेकिन क्या करूँ, मैं विवश हूँ। सकारात्मकता मेरे भीतर ही नहीं है, तो सकारात्मकता फैला कैसे सकता हूँ ?
जिसके पास पंख ही ना हो, वह पंख कैसे फैला सकता है ?
जिसके पास धन ही ना हो, वह किसी को दान कैसे कर सकता है ?
जो वस्तु हो ही ना जिसके पास, वह किसी को वह वस्तु दे कैसे सकता है ?
फिर सकारात्मक हर कोई हो भी नहीं सकता। जबतक मेरे जैसे नकारात्मक लोग दुनिया में रहंगे, तभी तक सकारात्मकता का महत्व है।
नकारात्मकता और सकारात्मकता की परिभाषाएँ भी स्थान, स्थिति और सत्ता के अनुरूप बदल जाती है। मगध नरेश धनानन्द के राज में चाणक्य नकारात्मक व्यक्ति था और समाज में नकारात्मकता फैला रहा था।
मुगलों के राज में गुरु तेग बहादुर जैसे महान व्यक्ति को नकारात्मक व्यक्ति मानकर मृत्युदंड दिया गया।
सुकरात को नकारात्मक व्यक्ति मानकर मृत्यु दंड दिया गया, क्योंकि वह नकारात्मकता फैला रहा था।
फिरंगियों के राज में स्वतन्त्रता सेनानी नकारात्मक लोग माने जाते थे और समाज में नकारमकता फैलाने के अपराध में उन्हें मृत्यु दंड दिया जाता था या जेलों में ठूंस दिया जाता था।
फिरंगी राज में ही श्री ठाकुर दयानन्द देव जी (1981-1937) को नकारात्मक्ता फैलाने का आरोप लगा जेल में डालकर कठोर यातनाएं दी गयीं थीं। लेकिन आज मुझे छोड़कर गुरुजी के सभी अनुयायी सकारात्मकता फैला रहे हैं।
कॉंग्रेस राज में आनन्दमार्ग के संस्थापक श्री आनन्द मूर्ति (प्रभात रंजन सरकार) को नकारात्मकता फैलाने वाला मानकर जेल में डाल दिया गया था और उनके 16 से अधिक शिष्यों को ज़िंदा जला दिया गया था। लेकिन आज सरिता प्रकाश जी को छोडकर उनके सभी अनुयायी सकारात्मकता फैला रहे हैं। इसीलिए दुनिया भर की माफिया, सरकारें और देश व जनता के लुटेरे खुश हैं उनसे और धन की लक्ष्मी भी खुश होकर धनवर्षा कर रही है उनपर।
भाजपा राज में जो भी पत्रकार या व्यक्ति मोदी या योगी सरकार की आलोचना करता है, या सत्य सामने लाने का प्रयास करता है, उसे नकारात्मकता फैलाने वाला माना जाता है। जो प्रभावी लोग होते हैं, उन्हें जेल भेज दिया जाता है, ईडी, आईडी, सीबीआई भेजकर आतंकित व प्रताड़ित किया जाता है।
तो यदि हम इतिहास उठाकर देखें, तो नकारात्मक ऊर्जा धारण किए लोग बहुत ही दुर्लभ होते हैं। जबकि सकारात्मक यानि देश व जनता के लुटेरों के सामने नतमस्तक रहने वाले लोगों से दुनिया भरी पड़ी है। इसलिए धूर्त, मक्कार देश व जनता के लुटेरे बड़ी सहजता से शासन कर लेते हैं किसी भी देश में।
आज लोग चीन का उदाहरण देते हैं विकास के नाम पर। लेकिन ये लोग थियानमेन चौक में हुए सामूहिक नरसंहार को भूल गए। वह नरसंहार केवल इसलिए हुआ था, क्योंकि वे सरकार के विरुद्ध नकारात्मकता फैला रहे थे। किसी भी देश में जब इस प्रकार सामूहिक नरसंहार किया जाता है, तो स्वाभाविक है कि उस देश की जनता भयाक्रांत हो जाती है और फिर कभी भी गलत का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाती। तब बहुत अमन-चैन दिखाई पड़ता है। लेकिन ये अमन-चैन मुरदों की बस्ती का अमन-चैन होता है। क्योंकि मुर्दे विरोध नहीं करते और लोग ऐसे मुरदों को शांति का दूत समझ लेते हैं।
खैर….लेख आवश्यकता से अधिक बड़ा हो गया…इसीलिए यहीं विराम दे रहा हूँ। लेकिन यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं आपके आदर्श सकारात्मक व्यक्तियों की तरह सकारात्मक कम से कम इस जन्म में तो नहीं हो पाऊँगा। क्योंकि मुझे ना तो धनवान बनने में रुचि, न ही मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित व्यक्तित्वों की तरह फ्रीमेशन का गुलाम बनकर सम्मानित जीवन जीने में रत्तीभर भी रुचि है।
अब तय आपको करना है कि आप मेरे जैसे नकारात्मक व्यक्ति के साथ जुड़े रहना चाहते हैं, मेरे लेखों को शेयर करके अपना समर्थन व्यक्त करना चाहते हैं, या फिर देश व जनता के लुटेरों के सामने नतमस्त्क रहकर सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य भोगना चाहते हैं।
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