शक्तिशाली ध्यान केवल उन्हें ही सिखाया जाना चाहिए जो निःस्वार्थी हों

ध्यान के दो अर्थ होते हैं। सामान्य प्रचलित अर्थ है किसी विषय, वस्तु, व्यक्ति, उद्देश्य पर मन और भाव को केन्द्रित करना। जिसे हम त्राटक के नाम से भी जानते हैं।
दूसरा अर्थ है विचारशून्य हो जाना, निष्क्रिय हो जाना, केवल दृष्टा मात्र बनकर रह जाना।
दोनों ही प्रकार के ध्यान का अपना अपना महत्व है, लेकिन दूसरे प्रकार का महत्व अधिक है, यदि स्वयं को जानना हो, स्वयं से परिचित होना हो।
पहले प्रकार के ध्यान में आप बाहर भाग रहे हैं और दूसरे प्रकार के ध्यान में आप अपने ही भीतर उतर रहे हैं। अपने ही भीतर उतरने से लाभ यह होगा कि आप स्वयं को जानेंगे, स्वयं से परिचित होंगे।
लेकिन सर्वाधिक प्रचलित ध्यान है पहले प्रकार का ध्यान, जिसमें आपका गुरु आपको कोई मंत्र दे देता है, कोई प्रतिमा पकड़ा देता है और कोई नामजाप दे देता है। और वह भी इसलिए, क्योंकि उनके गुरु ने भी ऐसा ही किया था….तो यह परंपरा चली आ रही है हजारों वर्षों से। इससे भौतिक लाभ भले मिल जाये, लेकिन आध्यात्मिक उत्थान नहीं हो पाता। और यही कारण है कि ध्यानी, ज्ञानी, तपस्वी साधु-संत, संन्यासी, बाबा लोग देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध मुँह नहीं खोलते, उल्टे उन्हीं के चरणों पर पड़े रहते हैं।
भले इनके पास बड़ी बड़ी सिद्धियाँ हों, बड़ी से बड़ी बीमारियों को दूर कर देते हों छूकर, भभूत देकर, चरणामृत पिलाकर, झाड़-फूंक करके…..लेकिन प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर घरों में दुबक जाते हैं। प्रायोजित सुरक्षा कवच चेप लेते हैं और अपने शिष्यों और भक्तों को भी चेपवा देते हैं। क्योंकि इन्हें अपनी ही आलौकिक शक्तियों पर विश्वास नहीं होता। ये लोग अस्पतालों के चक्कर लगाते रहते हैं, लाखों रुपए इलाज और दवा में फूँक देते हैं…लेकिन दुनिया को ध्यान, जाप, पूजा-पाठ की महिमा बताते फिरते हैं।
पहले प्रकार का ध्यान उनके लिए है, जो समाज से जुड़ना चाहता है, अस्पतालों से जुड़े रहना चाहता है, इलाज में लाखों रुपए खर्च करना चाहता है, प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर प्रायोजित सुरक्षा कवच लेना चाहता है, धन के पीछे भागना है।
लेकिन दूसरे प्रकार का ध्यान केवल उनके लिए है, जो अपनी स्वयं की शक्तियों से परिचित होना चाहते हैं। जो अपने भीतर की यात्रा करके स्वयं को जानना चाहते हैं। और ऐसे ध्यान सिखाने वाले दुर्लभ हैं। और मिल भी गए कभी, तो आवश्यक नहीं कि वे आपको अपने पास भी आने दें। क्योंकि यह ध्यान बहुत शक्तिशाली होता है, इसलिए हर किसी को नहीं सिखाया जा सकता। लोभी, कामी, कपटी, स्वार्थी, और सत्ता, धन, बंगला, कार, कोठी, छोकरी के पीछे भागने वालों को तो कभी नहीं सिखाया जा सकता।
शक्तिशाली ध्यान केवल उन्हें ही सिखाया जाना चाहिए, जो निःस्वार्थी हों, परोपकारी हों, देश व जनता के लुटेरों का विरोधी हो, प्रायोजित महामारी और प्रायोजित सुरक्षा कवच के प्रायोजित आतंकियों का विरोधी हो।
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